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क्या ढाका की सियासत को लग गया मालदीव का मोइज्जू रोग? भारत-विरोध बना चुनावी दांव

फरवरी में बांग्लादेश में आम चुनाव होंगे. इससे पहले वहां की पार्टियां भारत-विरोधी बयानबाजियां शुरू कर चुकीं. यहां तक कि नेशनल सिटीजन पार्टी के नेता हसनत अब्दुल्ला ने सारी हदें तोड़ते हुए भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को अलग-थलग कर देने की धमकी दी.

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बांग्लादेश में लगातार भारत-विरोधी बयानबाजियां हो रही हैं. (Photo- AP)
बांग्लादेश में लगातार भारत-विरोधी बयानबाजियां हो रही हैं. (Photo- AP)

अगस्त 2024 में बगावत के बाद बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देकर देश छोड़ना पड़ा. इससे पहले ढाका में जो भारत-विरोधी खुसपुसाहट थी, वो अब शोर में बदल चुकी. लीडर खुलेआम एंटी-इंडिया बातें कर रहे हैं. हाल में वहां की एक पार्टी के नेता ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को काटने तक की बात कर डाली. फरवरी में होने वाले आम चुनावों के बीच एंटी-इंडिया माहौल गरमाया जा रहा है. 

पॉलिटिक्स में यह आम है. दो महीने बाद वहां जनरल इलेक्शन हैं. इस बीच बांग्लादेश की तमाम बातें भारत के इर्दगिर्द सिमट गई हैं. बल्कि ऐसा लग रहा है कि जो दल दिल्ली के खिलाफ जितना जहर उगलेगा, उसे उतना ही फायदा मिलेगा. ये कुछ-कुछ मालदीव जैसा मामला लग रहा है. 

क्या हुआ था देश के इस समुद्री पड़ोसी के यहां

दो साल पहले मालदीव में जनरल इलेक्शन थे. इससे ठीक पहले प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव्स के नेता मोहम्मद मोइज्जू ने भारत के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया. उन्होंने तत्कालीन सरकार पर भारत के लिए दोस्ताना होने का आरोप लगाते हुए कहा कि दिल्ली उनके यहां दखल दे रही है. साथ ही मोइज्जू ने इंडिया आउट का नारा दे दिया. इसके तहत मांग की गई कि मालदीव में तैनात भारतीय सैनिक हटा लिए जाएं, साथ ही बाजार से भारतीय उत्पाद भी हटाए जाएं.

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मोइज्जू ने चीन को अपना प्रमुख साझेदार बताते हुए हर तरह से भारत से रिश्ता तोड़ने की बात कर डाली. ये हाल तब था, जबकि मालदीव की इकऩॉमी में बड़ा हाथ भारतीय टूरिस्टों का रहा. चुनाव में मोइज्जू के एंटी-इंडिया नैरेटिव की जीत हुई. ये बात और है कि बाद में उन्हें भूलसुधार करते हुए अपनी ही बात पर लीपापोती करनी पड़ी. 

hasnat abdullah controversial statement on india (Photo: ITG)
बांग्लादेशी नेता हसनत अब्दुल्ला ने पूर्वोत्तर के अलगाववादियों को शरण देने की बात कही थी. (Photo: ITG)

यानी भारत-विरोधी बयानबाजियां करके जीत हासिल करना आजमाया हुआ नुस्खा बन गया. अब, जबकि बांग्लादेश में हसीना सरकार नहीं, और भारत से उसके रिश्ते कुछ कमजोर पड़े हुए हैं, बचे-खुचे सारे दल विरोध को ही चुनावी एजेंडा बना चुके. 

हसीना के बेटे ने जताई आशंका

पूर्व राष्ट्रपति हसीना के बेटे सजेब वाजेद ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में माना कि बांग्लादेश में चरमपंथी गतिविधियां भारत के लिए खतरा बन चुकी हैं. बकौल वाजेद,यूनुस सरकार ने जमात-ए-इस्लामी और दूसरी इस्लामिक पार्टियों को खुली छूट दे दी रखी है, जबकि अब तक इस्लामिक दलों को कभी भी पांच प्रतिशत से ज्यादा वोट नहीं मिले. आरोप है कि प्रगतिशील और उदार पार्टियों पर रोक लगाकर और चुनाव में धांधली कराकर, यूनुस सरकार इस्लामिक दलों को सत्ता में लाने के जुगाड़ में है. 

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लेकिन इससे पीएम यूनुस को क्या फायदा होगा

यूनुस अर्थशास्त्री और सिविल सोसायटी की शख्सियत रहे. राजनीति से उनका नाता नहीं था. इसके बाद भी वे कभी भी भारत को लेकर खुले हुए नहीं दिखे. उनकी तटस्थता का असल मतलब तब दिखा, जब उन्होंने अंतरिम सरकार बनाई. इसके तुरंत बाद ही ढाका में माइनोरिटी, खासकर हिंदुओं पर भारी हिंसा हुई. सरकार ने इसपर कोई कड़ा बयान नहीं दिया, एक्शन लेना तो दूर की बात. भारत और बाकी देशों के एतराज के बाद हिंसा का दौर कुछ थमा. 

उन्होंने भी पूर्वोत्तर का डर दिखाया था

कुछ महीने पहले यूनुस ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को समुद्र से कटे हुए इलाके के रूप में पेश करते हुए बेहद भड़काऊ बात कर डाली थी. भारतीय इलाके को लैंडलॉक्ड बताते हुए उन्होंने कहा कि बांग्लादेश इस क्षेत्र के लिए समुद्र का गार्जियन सरीखा हो सकता है. कोढ़ में खाज ये कि इसमें चीन एंगल भी आ गया था. खुद को चीन के करीब दिखाते हुए यूनुस ने भारत को बायपास करने की बात कर दी. ये डरावना इसलिए भी है कि क्योंकि चीन पहले से ही पूर्वोत्तर और आसपास अपनी मौजूदगी बढ़ाने के फेर में रहा. 

bangladesh (Photo- AP)
बांग्लादेश में चरमपंथी दलों का आना भारत के लिए खतरा बन सकता है. (Photo- AP)

बांग्लादेश में आतंकी प्रशिक्षण शिविर पहले ही बनने लगे हैं. वहां अल-कायदा से जुड़े आतंकी सक्रिय रहे हैं और अब तो लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर भी पब्लिक इवेंट में भाषण देने लगे हैं. इससे अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि बांग्लादेश में चरमपंथ बढ़ रहा है. चुनावों से पहले नेताओं की बयानबाजियां इसी तरफ इशारा करती हैं. 

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एकाएक क्यों आया बदलाव 

ढाका की राजनीति का भारत-विरोध के इर्दगिर्द सिमट जाना कोई संयोग नहीं, बल्कि सत्ता पलट का नतीजा कह सकते हैं. हसीना को लंबे समय तक भारत का सबसे भरोसेमंद साझेदार माना गया. उनके जाते ही आई नई सत्ता से दिल्ली से दूरी बनाने को ही सबसे अनोखा और बड़ा काम माना. 

एक और वजह ये भी है कि ढाका का किनमें उठना-बैठना है. हाल-हाल में चीन से उसके रिश्ते संवरे, जो कि भारत से तनाव के लिए ही जाना जाता है. यहां तक कि ढाका और इस्लामाबाद के बीच भी मेलजोल शुरू हो चुका, जबकि वे कट्टर दुश्मन रहे थे. अब साझा दुश्मन यानी भारत और साझा मजहब उन्हें जोड़ रहे हैं. 

बांग्लादेश में एक तरह से सत्ता शून्यता की स्थिति है. हसीना की अवामी लीग के ज्यादातर नेता या तो बाहर चले गए या जेल में हैं. खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी का भी यही हाल है. पूर्व पीएम जिया खुद बीमार हैं और लंदन में हैं. ऐसे में धार्मिक चरमपंथ पर चलते दल ही बाकी रहे.

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