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आपने देखी है 80S में आई कमल हासन की ये साइलेंट मूवी? बिन डायलॉग हुई थी शूट

एक ऐसी फिल्म जिसमें कोई डायलॉग नहीं थे. एक ऐसी फिल्म जिसमें कोई संवाद अगर था तो बस सिर्फ एक्सप्रेशन से था. ऐसे में जरा सोचिए कि किसी एक्टर के लिए कितना मुश्किल होता होगा कि वो बिना कुछ बोले अपने चहरे के भावों से भावनाएं व्यक्त कर रहा है.

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कमल हासन
कमल हासन

फिल्म इंडस्ट्री में कमल हासन ने जो काम किया है वो शायद ही कोई दूसरा एक्टर कर पाया हो. जिस एफर्ट के साथ उन्होंने अलग-अलग कैरेक्टर निभाए सही माएने में फिल्म इंडस्ट्री का मिस्टर परफेक्शनिस्ट उन्हें ही माना जाना चाहिए. कमल हासन उन कुछ चुनिंदा एक्टर्स में से हैं जिन्हें सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि भारत के बाहर भी पहचान मिली. कमल हासन की यूनीक फिल्मों में से ही एक है फिल्म पुष्पक. एक ऐसी फिल्म जो ये दावा कर सकती है कि उसकी जैसी कोई दूसरी फिल्म भारत में नहीं बनी.

एक ऐसी फिल्म जिसमें कोई डायलॉग नहीं थे. एक ऐसी फिल्म जिसमें कोई संवाद अगर था तो बस सिर्फ एक्सप्रेशन से था. ऐसे में जरा सोचिए कि किसी एक्टर के लिए कितना मुश्किल होता होगा कि वो बिना कुछ बोले अपनें चहरे के भावों से भावनाएं व्यक्त कर रहा है. मगर कमल हासन, अमाला, और टीनू आनंद ने ऐसा कर दिखाया. फिल्म बिना किसी डायलॉग के शूट हुई. और फिल्म की स्क्रिप्ट इतनी शानदार थी कि शुरू से लेकर अंद तक ये मूवी सभी को बांध पाने में कामयाब रही. बिना डायलॉग के सिर्फ एक्सप्रेशन के बलबूते पर ऐसा कर पाना इतना आसान नहीं.

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फिल्म में एक ऐसे बेरोजगार शख्स की कहानी दिखाई गई थी जो रोजगार ढूंढ़ने के लिए मेहनत और पढ़ाई मन से नहीं करना चाहता है मगर वो खुद को ओवरस्मार्ट समझता है. वो गलती से एक बड़े होटल के कमरे की चाभी पा जाता है और वहां पर कुछ दिनों के लिए आलीशान जीवन जीता है. मगर जल्द ही उसे पता चल जाता है कि उसने अपने जीवन में खुद कुछ नहीं किया और वो दूसरों के पैसे पर अइय्याशी कर रहा है. उसे एक लड़की से प्यार हो जाता है मगर वो उसे कभी नहीं मिलती. धीरे-धीरे उसे इस बात का अंदाजा होता है कि उसका जीवन व्यर्थ है जब तक वो अपने जीवन को लेकर गंभीर नहीं होगा. कहानी में इतने शानदार सीन्स हैं कि उन्हें अगर ध्यान से देखे तो लगभग हर एक सीन एक नया मैसेज देत है. अगर कहा जाए कि बैचलर्स के लिए गुरुकूल है ये फिल्म तो ऐसा कहना गलत नहीं होगा.

और दूसरी कोई नहीं बनी ऐसी फिल्म

बता दें कि ऐसी कोई भी फिल्म भारतीय फिल्म जगत में बनी ही नहीं. 60 के दशक में सत्यजीत रे की एक फिल्म आई थी जो इस तरह थी. फिल्म का नाम टू था और ये एक शॉर्ट फिल्म थी. खुद सत्यजीत रे ने पुष्पक की तारीफ की थी और इस फिल्म के लिए फिलम के निर्देशक सिंगीतम निवासन रॉव ने साल 1987 में की थी. फिल्म ने कई सारे अवार्ड जते थे और खूब नाम कमाया था.

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