न्यूटन, भूमि और हसीना पार्कर के अलावा एक और फिल्म इस हफ्ते बॉक्स ऑफिस पर रिलीज हुई है. ये ब्रिटिश फिल्म है. फिल्म का नाम है 'विक्टोरिया एंड अब्दुल'. फिल्म की कहानी का भारत से काफी गहरा कनेक्शन है.
यह फिल्म एक 24 साल के भारतीय मुलाजिम और जिंदगी के छठे दशक में कदम रख चुकी ब्रिटेन की महारानी के बीच की गहरी दोस्ती के बारे में है. महारानी के किरदार में जहां मशहूर ब्रिटिश एक्ट्रेस जूडी डेंच हैं, तो भारतीय मुलाजिम का किरदार फुकरे फेम अली फजल ने निभाया है. इसकी कहानी किसी कल्पना पर नहीं, सच्ची घटना पर आधारित है. इस नाते इससे उम्मीदें कुछ ज्यादा ही थीं, लेकिन देश से लेकर विदेशी मीडिया तक में इसे काफी खराब रिव्यूज मिले हैं.
इसकी कहानी 2010 में आई श्राबणी बासु की किताब ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल: द ट्रू स्टोरी ऑफ द क्वीन्स क्लोजेस्ट कॉन्फिडेंट’पर आधारित है. इसमें ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया और उनके मुलाजिम अब्दुल के बीच की गहरी दोस्ती को दिखाया गया है.
फिल्म को द ग्रिफ्टर्स, फिलोमेना, माई ब्यूटीफुल लॉन्ड्रेट जैसी बेहतरीन फिल्में निर्देशित कर चुके स्टीफन फ्रेअर्स ने निर्देशित किया है. पटकथा ली हॉल ने लिखी हैं. लेकिन निर्देशन और पटकथा दोनों को काफी कमजोर बताया जा रहा है. हालांकि कुछ समय पहले रिलीज हुए ट्रेलर ने काफी ध्यान खींचा था. 74वें वेनिस फिल्म फेस्टिवल में फिल्म का वर्ल्ड प्रीमियर भी हुआ था. मगर रिलीज के बाद कहा जा रहा है कि विक्टोरिया और अब्दुल के साथ निर्देशक पूरा इंसाफ नहीं कर पाए हैं, यहां तक कहा जा रहा है कि महारानी और उनके विश्वासपात्र मुलाजिम की दोस्ती को बहुत ही ठंडे अंदाज में पेश किया गया है.
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गार्जियन अखबार ने दो स्टार के साथ इसे ओल्ड फैशन्ड ड्रामा करार दिया है. फिल्म में जूडी डेंच के अभिनय की भी जमकर आलोचना की गई है. वहीं अली फजल की एक्टिंग भी वो असर पैदा नहीं कर सकी है, जिसकी उनके किरदार के अनुसार उम्मीद की जा रही थी. अखबार ने ली हाल की स्क्रिप्ट को भी बेहद कमजोर बताया है.
टेलीग्राफ अखबार ने इसे रियल लाइफ टेल से बिस्टिक टिन प्रपोरशन में तब्दील करना कहा है. अखबार के मुताबिक एक ऐतिहासिक महत्व की कहानी को बहुत ही कमजोर तरीके से पेश किया गया है. इस फिल्म को मिक्स से लेकर नेगेटिव रिव्यूज तक मिले हैं. द इंडिपेंडेंट ने फिल्म में दिखाए गए कई दृश्यों की कड़ी आलोचना की है. उनका कहना है कि फिल्म में दिखाई गई कई बातें ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से एकदम उलट हैं.
डेली एक्सप्रेस में भी फिल्म को सिर्फ दो स्टार दिए गए हैं. कहा गया है कि अब्दुल के कैरेक्टर को फिल्म में बहुत कमजोर तरीके से दिखाया गया है. हालांकि अखबार ने डेंच की एक्टिंग की तारीफ की है.
इरिश इंडिपेंडेंट के मुताबिक फिल्म में ब्रिटिश राज के इतिहास को बहुत ही सतही तौर पर पेश किया गया है, जिससे फिल्म कमजोर लगती है.
क्या है कहानी
कहानी के अनुसार सन् 1887 में महारानी विक्टोरिया के शासन के गोल्डन जुबली सेलिब्रेशन के दौरान एक नौजवान भारतीय अर्दली महारानी की सेवा के लिए इंग्लैंड भेजा जाता है. महारानी इस अर्दली को देखते ही काफी पसंद करने लगती हैं. उस समय अर्दली की उम्र 26 साल थी और महारानी अपनी उम्र के छठे दशक के आखिर में थीं. कुछ दिन बाद वह महारानी को भारतीय व्यंजन बनाकर खिलाता है. उसकी खातिरदारी से खुश होकर महारानी उसे खानसामे से ‘मुंशी’बना देती हैं. वह महारानी को हिंदुस्तानी भाषा भी सिखाता है. भारत से जुड़े मामलों पर उनके साथ अपनी राय-मशविरे भी करता है. धीरे-धीरे वह महारानी का सबसे करीबी और भरोसेमंद बन जाता है. दोनों के बीच की यह दोस्ती महारानी विक्टोरिया के दरबारियों और उनके बच्चों को नागवार गुजरती थी. 1901 में उनके निधन के बाद उनका बेटा किंग एडवर्ड VII महारानी और उनके मुंशी के बीच पत्राचार की सभी निशानियों को जलाकर अब्दुल करीम को भारत वापस भेज देता है.