
कोक स्टूडियो भारत का गाना 'सोनचढ़ी' इन दिनों सोशल मीडिया पर लोगों की चर्चाओं में छाया हुआ है. कुमाऊंनी फोक लेकर आया ये गाना यूट्यूब पर लगातार ट्रेंड कर रहा है और इसकी पहाड़ी मेलोडी अब तक डेढ़ मिलियन से ज्यादा व्यूज बटोर चुकी है. जानीमानी सिंगर नेहा कक्कड़ और दिग्विजय सिंह परियार उर्फ DigV के साथ कुमाऊंनी फोक की दुनिया की आइकॉन कमला देवी की आवाज इस गाने में पहाड़ों के देसी फोक को रिप्रेजेंट कर रही है.
रीजनल म्यूजिक की दुनिया को कन्टेम्परेरी म्यूजिक के साथ एक्सप्लोर करते कोक स्टूडियो के इस गाने में कमला देवी का होना, कुमाऊं के लोकगीत सुनने वालों के लिए एक गर्व की बात है. मगर पहाड़ की सबसे यादगार आवाजों में से एक कमला देवी ने जिस संघर्ष के बावजूद अपने संगीत को जिंदा रखा है, वो एक कलाकार के अपनी कला के प्रति प्रेम की मिसाल है.

पिता से मिली संगीत की विरासत
अपनी गायकी में कुमाऊंनी फोक की विरासत को संजोने वालीं कमला देवी, उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के लखानी गांव से आती हैं. वो उत्तराखंड से पहली सिंगर हैं जिन्हें कोक स्टूडियो भारत के इनवाइट किया है. टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ एक इंटरव्यू में 50 साल की कमला देवी ने बताया था कि उनके पिता ने उन्हें लोक संगीत की विरासत सौंपी थी. उन्होंने बताया, 'मैंने अपने पिता, बीर राम से फोक गाना सीखा था. वो ट्रेडिशनल पहाड़ी फोक, जागर गाते थे. उन्हें गाते देखकर मुझमें भी गाने की ललक पैदा हुई जिसकी वजह से कई चैलेंज फेस करने के बावजूद मैं फोक सिंगर बनी.'
कोक स्टूडियो भारत के साथ एक बातचीत में उन्होंने बताया, 'मुझे पिता जी का ही आशीर्वाद रहा. उन्होंने कहा कि बेटा जब मैं नहीं गा पाऊंगा तो आप ही इस चीज को गाना. ' उन्होंने आगे कहा, 'ये धरोहर मेरे पिता जी की ही धरोहर है और उनके ही आशीर्वाद से आज मैं कोक स्टूडियो पर हूं.'
ए-ग्रेड सिंगर मगर बस कुछ हजार की कमाई
टाइम्स के साथ इंटरव्यू में कमला देवी ने बताया था कि उत्तराखंड के कल्चरल डिपार्टमेंट से उन्हें ए-ग्रेड आर्टिस्ट के रूप में मान्यता मिली हुई है, मगर इसके बावजूद उनके जीवन में बहुत चैलेंज हैं. चार बच्चों की मां, कमला देवी ने बताया था कि उन्हें साल में 5-6 लोकल शोज और राज्य के कल्चर डिपार्टमेंट से दो शोज मिलते हैं.

उन्होंने बताया, 'लोकल शोज से मुझे 2000-3000 मिल जाते हैं. मैंने पिछले साल राज्य के कल्चर डिपार्टमेंट के लिए दो शोज किए थे, हालांकि अभी भी उनके लिए पेमेंट नहीं मिली है.' उन्होंने बताया कि उनके पति गोपाल राम दिहाड़ी पर काम करने वाले लेबर हैं और वही घर का खर्च चलाते हैं.
ढाबे पर खाना खाने से ज्यादा, कमला देवी का गीत सुनने आते थे लोग
यूट्यूब चैनल घुघूती को एक इंटरव्यू में कमला देवी ने बताया कि वो पहाड़ी खेतिहर बैकग्राउंड से हैं. इसलिए बचपन से गाने का शौक और लोकगीतों पर पकड़ होने के बावजूद उन्हें कभी वो मंच नहीं मिला जो उनके टैलेंट के साथ न्याय कर सके. अपना घर चलाने के लिए उन्होंने भोवाली, नैनीताल में एक ढाबा खोला था, जहां लोग खाने के साथ-साथ उनके गीत सुननेमें भी बहुत दिलचस्पी लेते थे. लोग कहते थे कि 'खाना बाद में खाएंगे, पहले आप गीत सुनाइए.'
15 साल की उम्र से गा रहीं कमला देवी जागर, राजुला मालूशाही, हुड़की बौल, पतरौल गीत, झौड़ा-चांचरी, छपेली, भगनौल और दूसरे कई पहाड़ी लोकगीत गाने में पारंगत हैं. वो अपने ढाबे पर चांचरी गा रही थीं और रानीखेत के लोकगायक शिरोमणि पंत ने उन्हें गाते सुना. उन्हीं के मार्गदर्शन में उन्होंने कार्यक्रमों में परफॉर्म करना शुरू किया. नैनीताल का शरदोत्सव वो पहला प्रोग्राम था जिसमें उन्होंने परफॉर्म किया.
कमला देवी बताती हैं कि जब बहुत से लोगों ने यूट्यूब चैनल बनाए और उनके पॉपुलर गीतों को रिकॉर्ड करके वहां शेयर करना शुरू कर दिया. उन्हें जब इस चीज की समझ आई तो उन्होंने भी अपना एक यूट्यूब चिनाल बनाया, जहां वो अपने गीत शेयर करती हैं. उनके ऑफिशियल यूट्यूब चैनल का नाम 'कमला देवी लोक गायिका' है.
यहीं से दिग्विजय ने उन्हें सुना और कहा कि वो एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं, जिसमें उन्हें गाने का मौका देना चाहते हैं. और आखिरकार दो-तीन साल के इंतजार के बाद, कोक स्टूडियो भारत के जरिए आज कमला देवी की आवाज पूरा देश सुन रहा है.