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'द फैमिली मैन 3' रिव्यू: देश के मिशन पर श्रीकांत चले सपरिवार, जयदीप अहलावत हैं दमदार

'द फैमिली मैन' के पिछले दो सीजन बहुत दमदार रहे. क्रिटिक्स की भी खूब तारीफ मिली और जनता से प्यार भी. लंबे इंतजार के बाद फाइनली शो का तीसरा सीजन आ गया है. इस बार जयदीप अहलावत की भी कहानी में एंट्री हुई है. क्या 'द फैमिली मैन 3' पिछले दो सीजन जैसा माहौल बना पाया?

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'द फैमिली मैन 3' रिव्यू (Photo: IMDB)
'द फैमिली मैन 3' रिव्यू (Photo: IMDB)
फिल्म:द फैमिली मैन 3
3/5
  • कलाकार : मनोज बाजपेयी, जयदीप अहलावत, निमरत कौर, प्रियामणि
  • निर्देशक :राज एंड डीके

नॉर्थ-ईस्ट में एक ऐतिहासिक समिट होने वाली है जो इस क्षेत्र की शांति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. वहां के बागी गुट साथ आ रहे हैं. मगर इस समिट से कुछ लोगों के लिए बिजनेस के लिए दरवाजे बंद हो सकते हैं. नॉर्थ-ईस्ट के एक बड़े लीडर की हत्या करके इस समिट को डिरेल कर दिया गया है. 

बिजनेस करने वालों की कोशिश है कि ये समिट अब कभी हो ही नहीं. देशहित सोचने वालों की कोशिश है कि जल्द सबकुछ सामान्य किया जाए ताकि समिट हो सके. और इन सब के बीच में देश का एक सिपाही है, जो जान दांव पर लगाए फिर रहा है. कभी वो ड्रग डीलर्स के निशाने पर है, कभी नॉर्थ-ईस्ट के बागियों के सामने. ये 'पाताल लोक 2' का प्लॉट नहीं है, 'द फैमिली मैन 3' का है.

दोनों में ही जयदीप अहलावत हैं. दोनों में समानताएं भी काफी हैं. शायद इसलिए कि थ्रिलिंग कहानियों के लिए अब भारत-पाकिस्तान-कश्मीर-आतंक वाले प्लॉट पर कहानियां बनाना थोड़ा ज्यादा रिस्की हो रहा है. पॉलिटिक्स और सोशल मीडिया पर उगे एनालिस्टों से पंगे हो सकते हैं. इसलिए नॉर्थ-ईस्ट शायद सस्पेंस थ्रिलर कहानियों के लिए ज्यादा मुफीद होता जा रहा है. 

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सपरिवार मिशन पर चले श्रीकांत तिवारी
'द फैमिली मैन' इस प्लॉट को 'पाताल लोक' से काफी अलग ट्रीट करती है. इसमें जनता का फेवरेट स्पाई श्रीकांत तिवारी है. वो पहले दो सीजन के बाद आइकॉनिक किरदार बन चुका है. इस बार एक अच्छी खबर ये है कि फाइनली श्रीकांत और उसका परिवार अपने ड्रीम होम में पहुंच चुके हैं. हालांकि उसके बच्चे आपको तुरंत बता देंगे कि ये घर उनकी मम्मी, सुचित्रा उर्फ सुची के पैसों से आया है. घर तो आ गया पर क्या इसमें रहने वाले लोग एक परिवार की तरह साथ बचे हैं? 

ये हमें पहले से पता है कि इस परिवार के बिखरने की वजह श्रीकांत की नौकरी है. अपनी रियल नौकरी छुपाने के लिए उसने ना जाने कितने झूठ बोले हैं. इन कहानियों से उसने अपने जो सच्चे मिशन छुपाए, उन्होंने भी उसे परिवार से दूर किया है. 'द फैमिली मैन' के दूसरे सीजन में हमने देख लिया था कि उसकी ये स्पाई वाली जॉब, कैसे उसके परिवार में कलह की वजह बन रही है. एक तरफ श्रीकांत को फील्ड में, दूसरी तरफ उसके घर के क्लेश देखकर दिमाग में यही बात आती थी— कुछ ऐसा हो कि श्रीकांत के परिवार को भी उसकी स्पाई-लाइफ का फर्स्ट हैंड अनुभव मिले. शायद तभी वे समझें कि जिन झूठों के पर्दे के पीछे वो अपने परिवार को छुपाकर रखता है, वो पर्दे जरूरी क्यों हैं. और 'द फैमिली मैन 3' में यही हो रहा है. 

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श्रीकांत को ये बीमारी है कि वो केस के पीछे, अपने लेवल से कहीं ऊपर के लोगों के लिए कांटा बनने लगता है. इस बार वो बहुत गलत लोगों के रास्ते में आ गया है. ये लोग कायदे से उसके परिवार के पीछे लग गए हैं. देश की सुरक्षा के चक्कर में सुची की कंपनी बंद हो गई है क्योंकि उसमें चीन की कंपनी का पैसा था. एक न्यूज चैनल पर जब वो अपनी कंपनी को डिफेंड करने की बहस में है, तो उसकी पर्सनल लाइफ उधेड़ी जाने लगती है. अब पूरे देश को पता है कि श्रीकांत और सुची डिवोर्स का प्रोसेस शुरू कर चुके हैं. 

वो चीन से फंडेड कंपनी में काम कर रही थी इसलिए 'एंटी-नेशनल' का तमगा भी लग चुका है. और इस तमगे से श्रीकांत-सुची के बच्चों, धृति और अथर्व को भी डील करना पड़ रहा है. श्रीकांत तिवारी को इस बार सिर्फ देश के लिए ही नहीं, परिवार के लिए भी मिशन पूरा करना है. और ये मिशन है उन लोगों का खुलासा करना, जो हथियारों के बिजनेस के लिए भारत की शांति को भंग करना चाहते हैं. 

ग्लोबल लेवल पर हथियार बेचने वाला एक सिंडिकेट है- द कलेक्टिव. द्वारकनाथ (जुगल हंसराज) वो ब्रोकर है जो भारत सरकार को कलेक्टिव के हथियार बेचने वाला है. द्वारकनाथ इस खेल का ब्रेन है, बुलेट है उसकी एजेंट मीरा ईस्टन (निमरत कौर). मीरा ने नॉर्थ ईस्ट की शांति के लिए चल रहे प्रोजेक्ट साहकार को बिगाड़ने के लिए रुकमा (जयदीप अहलावत) को काम पर लगाया है. रुकमा एक कुख्यात ड्रग डीलर और क्राइम लॉर्ड है. प्रोजेक्ट साहकार को बचाने के लिए श्रीकांत को इस बार जो मिशन पूरा करना है, वो ऑफिशियल है ही नहीं. वो खुद ही इस मिशन पर निकला है क्योंकि एक तो उसके बॉस कुलकर्णी (दलीप ताहिल) की हत्या उसकी आंखों के सामने कर दी गई है. ऊपर से वो खुद सस्पेक्ट है. और साथ में उसका परिवार भी इसमें फंस चुका है. 

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एक्शन से ज्यादा इमोशन पर फोकस करता है नया सीजन 
'द फैमिली मैन' शो का मुद्दा सिर्फ इतना है— बीवी बच्चों की उम्मीदों पर हमेशा कम पड़ता एक आम मिडल क्लास आदमी, देश की सुरक्षा के लिए रोज अपनी जान दांव पर लगा रहा है. दूसरे सीजन में श्रीकांत की एजेंट साइड पर फोकस ज्यादा था. ऐसा लगा कि उसकी फैमिली वाली साइड कहीं पीछे छूट रही है. तीसरे सीजन में श्रीकांत के परिवार पर फोकस लौटा है. ये श्रीकांत के सबसे गहरे डर, उसके सबसे वल्नरेबल पहलुओं का टेस्ट लेने वाला सीजन है. इस बार कहानी में इमोशन और ड्रामा ज्यादा है. एक्शन और थ्रिल कम. श्रीकांत के कूल डायलॉगबाजी वाले मोमेंट्स काफी कम. 

श्रीकांत ही नहीं, इस सीजन में कई किरदार इमोशनल कनेक्शन की तलाश में नजर आते हैं. यहां तक कि कहानी का विलेन रुकमा भी. पहले पांच एपिसोड्स तक तो ये चीज कहानी को मजबूत करती है. मगर छठे एपिसोड से ये कहानी को स्लो करने लगती है. श्रीकांत को आखिरकार मिशन तो पूरा करना ही है न. लेकिन रुकमा, मीरा, इस बार वापस लौटी एजेंट जोया (श्रेया धन्वन्तरी)... सबके किरदारों का अचानक से इमोशनल कनेक्शन तलाशने लगना कहानी को स्लो करता है. 

तीसरे सीजन में 'द फैमिली मैन' बोल बहुत रहा है, दिखा कम रहा है. मतलब कहानी की सेटिंग दो लोगों की बातों में पता चल रही है. कहीं भी दो लोग टहल रहे हैं तो ड्रग डीलर्स और पॉलिटिक्स का बैकग्राउंड बता रहे हैं. उनकी बातों से पता चलता है कि कब क्या हुआ था. कौन क्या कर रहा है. ऐसा तब होता है जब प्लॉट में इनफॉर्मेशन ज्यादा होती है. मगर इनफॉर्मेशन को विजुअल में ना बदल के, कन्वर्सेशन में दिखाना भी कहानी की पेस स्लो करता है. 

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'द फैमिली मैन 3' की एक बहुत बड़ी दिक्कत रुकमा यानी जयदीप अहलावत का किरदार है. शुरुआत में बहुत खतरनाक लगने वाले इस किरदार की धार धीरे-धीरे कुंद होती लगती है. वो नैरेटिव के कंट्रोल में नहीं है. वो चाहता क्या है ये भी समझ नहीं आता. तगड़े बिल्ड अप और खतरनाक इरादों के साथ आया ये किरदार आगे चलकर सुस्त सा पड़ने लगता है. जयदीप की एक्टिंग और उनकी स्क्रीन प्रेजेंस ही इस किरदार को देखने लायक बनाए रखती है. वरना इस नेगेटिव किरदार की धार एक ही एपिसोड बाद कमजोर नजर आने लगी. हालांकि ये कमाल पूरी तरह जयदीप के दमदार काम का है कि वो कई जगह मनोज बाजपेयी पर भी भारी लगे. यही हाल मीरा के किरदार का भी हुआ. 

शो में एक सॉलिड कैमियो है मगर उसका स्ट्रक्चर भी ढीले तरीके से सेट था. बहुत पहले ये पता चल जाता है कि कौन आने वाला है. जैसे कॉप यूनिवर्स की एक फिल्म एन रणवीर सिंह ने चीख-चीख के पहले ही अजय देवगन की एंट्री अनाउंस कर दी थी. इसी तरह बहुत से प्लॉट ट्विस्ट आपको पहले से ही दिखने लगते हैं. रुकमा की शादी से ठीक पहले उसकी गर्लफ्रेंड को मार दिया गया. अचानक उसका बेटा रुकमा के साथ रहने की जिद क्यों करने लगता है समझ नहीं आता. उसके साथ होने से रुकमा पर क्या असर पड़ रहा है, ये भी साफ-साफ नहीं पता चलता.

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मगर ये सब पांच एपिसोड्स के बाद की बात है. यहां तक शो ने बहुत सारे दिलचस्प आईडिया छेड़ दिए मगर इन्हें पूरी तरह अंत तक सुलझाया नहीं. इसलिए भी अंत तक शो कुछ अधूरा लगता है. और इस अधूरेपन को शो की एंडिंग और बढ़ा देती है. मेकर्स ने इस सीजन में कहानी को एक ऐसे हुक पर टांग के छोड़ दिया है, जो अगले सीजन में जाकर उलझेगी. 

कुल मिलाकर 'द फैमिली मैन 3' एक मिक्स पैकेज है. ज्यादातर ये आपको एंगेज रखता है, एंटरटेन करता है. श्रीकांत की कहानी दिलचस्प मोड़ पर है और उसका परिवार अब उसकी अपनी कहानी का हिस्सा बन रहा है. टैलेंटेड मीमकारों को इस बार श्रीकांत से उतने दिलचस्प मीम्स नहीं मिलेंगे, जितने पहले दोनों सीजन्स में मिले थे.

जयदीप की एक्टिंग पर तो कोई सवाल हो ही नहीं सकता, मगर राइटिंग ने उन्हें पिछले सीजन में समांथा जैसा मजबूत रोल नहीं दिया. एक्टर्स वही हैं जो हमने पिछले सीजन्स में भी देखे हैं और हमेशा की तरह सभी ने ईमानदार-दमदार काम किया है. शो में अपने हिस्से की कमियां जरूर हैं, मगर उससे ओवरऑल एक्सपीरियंस बहुत ज्यादा कमजोर नहीं होता. 

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