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Film review: एडल्ट कॉमेडी है फिल्म 'हंटर'

वात्स्यायन की प्रसिद्ध रचना 'कामसूत्र' हर सदी में अलग-अलग तरह से सामने आती है और इस बार उसी पृष्ठभूमि पर 21वीं  सदी का कामसूत्र, 'हंटर' के रूप में परोसने को तैयार हैं डायरेक्टर हर्षवर्धन कुलकर्णी, जो मुंबई के निवासी हैं और इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी कर चुके हैं.

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Film Hunterrr Poster
Film Hunterrr Poster

फिल्म का नाम: हंटर (Hunterrr)
डायरेक्टर: हर्षवर्धन जी. कुलकर्णी
स्टार कास्ट: गुलशन देवैया , राधिका आप्टे , साईं ताम्हणकर , सागर देशमुख , वीरा सक्सेना , हंसा सिंह
अवधि: 140 मिनट
सर्टिफिकेट: A
रेटिंग: 2.5 स्टार
वात्स्यायन की प्रसिद्ध रचना 'कामसूत्र' हर सदी में अलग-अलग तरह से सामने आती है और इस बार उसी पृष्ठभूमि पर 21वीं सदी का कामसूत्र, 'हंटर' के रूप में परोसने को तैयार हैं डायरेक्टर हर्षवर्धन कुलकर्णी, जो मुंबई के निवासी हैं और इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी कर चुके हैं. एक पति और पिता भी हैं, उन्होंने कॉलेज के जमाने से एक ख्याल अपने मन में बिठा रखा था और उनकी ये सोच आखिरकार 'हंटर' के रूप में सामने आई है. फिल्म का प्रमोशन बहुत ही अनोखे तरह से किया गया है, जहां कामुक भावना से भरे हुए फोटो की भरमार है. कभी केले के भीतर खड़े हीरो के साथ महिलाएं खड़ी हैं तो कभी 2 उंगलियों के बीच में से कामुक अंदाज में देखता हुआ हीरो लेकिन क्या ये फिल्म दर्शकों का दिल जीत पाएगी? आइए जानते हैं आखिरकार क्या है कहानी 'हंटर' की.

1989 से 2015 के बीच घटने वाली फिल्म 'हंटर' की कहानी में मंदार पोंकशे (गुलशन देवैया ) एक महाराष्ट्र के मध्यम वर्ग का लड़का है जिसे बचपन से ही लड़कियों को देखकर एक अलग तरह की भावना जागृत होती है, शर्माते हुए ही सही वो लड़कियों के पास जाकर दोस्ती करना चाहता है और वासना की भावना खुलकर सामने आती है. खुद को वासु (जिसका सेक्स पर कंट्रोल नहीं है) कहता है. कभी सविता,बेला, अल्का तो कभी शीला, सुषमा और सुनीता के संग लिप्त रहता है. लेकिन जैसे-जैसे उम्र आगे बढ़ती जाती है वैसे वैसे मंदार को एहसास होने लगता है की वासना की जिंदगी एक वक्त के बाद अजीब सी हो जाती है. उसके आस पास के सभी लोगों की शादी हो गई होती है और सभी को मंदार की शादी की फिक्र हो जाती है. फिर कहानी में अलग-अलग तरह के मोड़ आते हैं जिसमें हंसी भी आती है और कभी-कभी व्यस्कों जैसी हरकतों को देखकर लोग कंट्रोल नहीं कर पाते.

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फिल्म की कास्टिंग भी एकदम सटीक है, जहां एक तरफ मराठी लड़के का रोल अदा करते हुए गुलशन देवैया हैं तो वहीं ज्योत्सना के अहम किरदार में मशहूर मराठी अदाकारा साईं ताम्हणकर दिखाई देती हैं. अभिनेत्री राधिका आप्टे को पुणे की रहने वाली तृप्ति गोखले का रोल दिया गया है जो इंटरवल के बाद काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. फिल्म में कुछ ऐसे वाकये हैं जो आपको याद रह जाते हैं जैसे 'RSVP' का मतलब क्या होता है, बेस्ट और सेकंड बेस्ट का अंतर, Love is Color blind इत्यादि.

मेरा सबसे बड़ा सवाल है फिल्म की कहानी, जो हालांकि 2 घंटे 20 मिनट की ही है लेकिन देखते वक्त बहुत लंबी लगने लगती है, ऐसा लगता है की इस रात की सुबह कब होगी, अगर यह थोड़ी छोटी होती तो और भी प्रभावशाली होती. वहीं अगर आपने ट्रेलर को देखकर अपने मन में कई तस्वीरें बना ली हैं तो आपके सपने फिल्म देखते वक्त बिल्कुल भी सच नहीं होंगे. ट्रेलर जैसा खाना आपको फिल्म में नहीं परोसा गया है. फिल्म का ख्याल तो बहुत अच्छा और अनोखा था लेकिन बन जाने के बाद काफी हल्की स्क्रिप्ट लगती है हंटर और फिल्म को देखने के बाद एक जुमला सबसे ज्यादा फिट बैठता है 'नाम बड़े और दर्शन छोटे'.

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