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समाज के स्याह चेहरे से नकाब खींचती है 'ब्लैक होम'

पिछले कुछ वर्षों से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में 3 तरह की फिल्मों का चलन ज्यादा हो गया है , रोमांटिक, रीमेक और रिसर्च आधारित फिल्में. पहली बार फिल्म डायरेक्ट कर रहे आशीष देव ने काफी रिसर्च के बाद एक अलग तरह के विषय पर 'ब्लैक होम' बनाई. अपनी बात कहने का बेहद अलहदा तरीका उन्होंने चुना है.

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फिल्म 'ब्लैक होम' का पोस्टर
फिल्म 'ब्लैक होम' का पोस्टर

फिल्म का नाम: ब्लैक होम
डायरेक्टर: आशीष देव
स्टार कास्ट: आशुतोष राणा , चित्राशी रावत ,मुरली शर्मा ,सिमरन सहमी, अचिंत कौर ,मोहन जोशी
अवधि: 105 मिनट
सर्टिफिकेट: A
रेटिंग: 3 स्टार

पिछले कुछ वर्षों से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में 3 तरह की फिल्मों का चलन ज्यादा हो गया है , रोमांटिक, रीमेक और रिसर्च आधारित फिल्में. पहली बार फिल्म डायरेक्ट कर रहे आशीष देव ने काफी रिसर्च के बाद एक अलग तरह के विषय पर 'ब्लैक होम' बनाई. अपनी बात कहने का बेहद अलहदा तरीका उन्होंने चुना है. आप ये सोच रहे होंगे कि आखिरकार ये काला घर यानी ब्लैक होम है क्या? आइए सबसे पहले जिक्र फिल्म की कहानी की.

कहानी
ब्लैक होम कहानी है राजवाड़ी रिमांड होम की जहां किशोर उम्र की लड़कियों को रखा जाता है और जिसकी संचालिका है मीना (अचिंत कौर ). उस रिमांड होम में कुछ ऐसी ऐसी घटनाएं घटने लगती हैं जिसकी जांच के लिये एक न्यूज चैनल के ब्यूरो चीफ डी के (आशुतोष राणा ) अपनी रिपोर्टर अंजलि (सिमरन सहमी ) को नियुक्त करते हैं.

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इसके बाद शुरू होती है जंग राजनीति और वर्चस्व की. जहां एक तरफ रिमांड होम के भीतर होने वाली वारदातों के ऊपर तंज कसा जाता है तो वहीं दूसरी तरफ इससे जुड़े हुए राजनीति के नुमाइंदों के ऊपर भी बड़ा सवाल आ खड़ा होता है. आखिरकार कुछ बलिदानों के साथ बहुत बड़ी बात कह जाती है ये फिल्म.

फिल्म में कई अहम मुद्दों पर भी बात की गयी है जैसे भारत में हर 20 मिनट में एक रेप की घटना होती है, साल भर में करीब 5 लाख बच्चों को सेक्स की दुनिया में जबरन भेजा जाता है. इसके अलावा रिमांड होम की सच्चाई बताने की कोशिश भी निर्देशक ने की है.

क्यों देखें
फिल्म में भारी भरकम संवादों का खजाना है. आशुतोष राणा की मौजूदगी ही आपको खूश होने की खुराक मुहैया करा देती है. रिमांड होम में कैद लड़कियों में से एक मिर्ची (चित्राशी रावत ) को देखकर आप कई दफा भावुक हो उठेंगे. अगर आप को रिमांड हाउस में हो सकने वाली वारदातों का पता नहीं है तो आपको ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए.

आपके समाज की कुछ ऐसी भी कड़वी सच्चाई है जिससे आप जितनी जल्दी अवगत हो जाएं उतना बेहतर है. फिल्म रिमांड हाउस में बच्चों पर होने वाले अत्याचार के ऊपर सीधा वार है और शायद समाज के इस वर्ग की तरफ भी ध्यान रखने के लिए अपील भी है.

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क्यों ना देखें
बच्चों पर होने वाले जुल्म की यह कहानी आपको भावुक कर सकती हैं, तो अगर आप कमज़ोर दिल के हैं या वयस्क (Adult ) नहीं हैं तो आप के लिए यह फिल्म नहीं है.

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