फिल्म रिव्यूः द शौकींस
एक्टरः अनुपम खेर, अनु कपूर, पीयूष मिश्रा, लीजा हेडन, अक्षय कुमार
डायरेक्टरः अभिषेक शर्मा
स्क्रीनप्लेः तिग्मांशु धूलिया
ड्यूरेशनः 2 घंटे 5 मिनट
रेटिंगः 5 में 3.5
दिल्ली तीन बुड्ढों के लिए अब सेफ नहीं रही. केडी जिसने शादी नहीं की और फितरत से रंगीन मिजाज है. लौडों के हर ग्रुप के उस किलर चैंप की तरह, जो बाकियों को सिगरेट, शराब, पॉर्न और ऐसी ही कई चीजों से अवगत कराता है. लाली, शादीशुदा है, मगर फिर भी थ्रिल की तलाश है. और हां वह पढ़ा लिखा भी है. ये बताना इसलिए जरूरी क्योंकि इस तिगड्डी का तीसरा गुड्डा पिंकी इस मामले में सिफर है. मगर जिक्र आने पर वह हिचक और फिर हनक के साथ कहता है. तो क्या हुआ. मेरे पास ऑडी है.
तो जब उन्हें अपने रिहाइश के शहर यानी मुल्क की राजधानी में हवस का पुजारी बनने का मौका नहीं मिलता, तो तीनों निकल पड़ते हैं मॉरीशस. यहां वह रुकते हैं एक अजीबोगरीब सा फैशन सेंस रखने वाली यंग डिजाइनर अहाना से. जो अपने टूटे दिल का हाल वाया फेसबुक समेट रही है. उधर एक फिल्म स्टार भी है अक्षय कुमार. जिसकी एक ही तमन्ना है. नेशनल अवॉर्ड. इसके लिए एक बंगाली कुर्ता छाप डायरेक्टर उसे मेथड एक्टिंग की एबीसी बता अपनी अंगलियों पर नचाता है. उधर अक्षय का सेक्रेट्री है, जो उसे ये सब भूल 200 करोड़ क्लब पर फोकस करने को कहता है. और हां, अक्की एल्कोहलिक भी है.
अक्षय शूटिंग के लिए मॉरीशस जाता है. अहाना उसके प्यार में पागल हो जाती है. तीनों बुड्ढे अहाना के बदन के पीछे पागल हैं. प्यार के लिए प्यार का इस्तेमाल चुग्गे की तरह होता है. मगर आखिर में सबको जरूरी सबक मिलते हैं. प्यार के, जिंदगी के, दोस्ती के.
फिल्म द शौकींस 1982 में आई बासु चटर्जी की फिल्म शौकीन का रीमेक है. उस फिल्म में अशोक कुमार, उत्पल दत्त, एके हंगल, रति अग्निहोत्री और मिथुन चक्रवर्ती थे. इस फिल्म में रति एक छोटे से रोल में हैं. बाकी यूं समझ लीजिए कि पुराने प्लॉट का नई जमीन, सोच और समझ के बीच अवतरण करा दिया गया है. और ये काम बखूबी अंजाम दिया गया है. फिल्म की कहानी कोई बहुत पेचीदा नहीं है. मगर इसका स्क्रीनप्ले तिग्मांशु धूलिया ने चुस्त ढंग से लिखा है. फिल्म में कसावट भी है और रफ्तार भी. और इसे उम्दा बनाते हैं फिल्म के सहज मगर सुरसुरी पैदा करते डायलॉग. तीनों बुड्ढों की एक्टिंग भी एक दम धांसू है.
पिंकी के कुछ दब्बू, कुछ जज्बाती मसाला व्यापारी के रोल में पीयूष मिश्रा ने जबरदस्त काम किया है. अनु कपूर को विकी डोनर और अनुपम खेर को तो कई फिल्मों में हम इस तरह के रोल करते देख चुके हैं. मगर सबसे ज्यादा ताजगी पीयूष ही लेकर आते हैं.
फिल्म का एक और सरप्राइज पैकेज हैं अक्षय कुमार. खुद अपने ही नाम के फिल्म स्टार के किरदार को निभाते हुए उन्होंने मेनस्ट्रीम मसाला एक्टर्स की व्यथा तो बताई ही है. कैसे अपनी ही इमेज में कैद हो वह रिपीट करने को मजबूर कर दिए जाते हैं. अक्षय ने फिल्म में कॉमेडी और लाउड सींस, दोनों में ही अच्छी एक्टिंग की है. उन्हें इस तरह की फिल्में और करनी चाहिए, जिसमें असल खिलाड़ी स्क्रिप्ट हों और खेलने के लिए कई उम्दा एक्टर बतौर टीममेट्स.
लीजा हेडन भी अहाना के रोल में मादक और प्यारी लगी हैं. एक्टिंग के लेवल पर अभी काफी गुंजाइश बाकी है. यहां परतें कुछ साफ नुमाया होती हैं क्योंकि वह लीड किरदार में थीं. क्वीन में उनका काम अच्छा था, मगर फोकस आने पर ज्यादा सावधानी और निखार चाहिए. बिलाशक वह खूबसूरत तो हैं ही. अपनी काया को लेकर सहज भी हैं, जो उनकी एक्टिंग में भी नजर आता है.
फिल्म के कुछ गाने पहले ही हिट हो चुके हैं. मनाली ट्रांस उम्दा गाना है. मगर कुछेक गाने फिल्म के फ्लो को बाधित करते हैं. बेहतर होता अगर गाने कुछ कम रखे जाते. शायद डायरेक्टर का आग्रह इसे फुल एंटरटेनर बनाने का रहा हो. मगर वह काम तो डायलॉग और कहानी बखूबी कर रहे थे.
डायरेक्टर अभिषेक शर्मा इससे पहले तेरे बिन लादेन लेकर आए थे. वह ताजगी भरा व्यंग्य था. यह फिल्म कॉमेडी का एक दूसरा आयाम सामने लाती है. फिल्म की खासियत यह है कि तमाम आशंकाओं के बावजूद यह कहीं भी द्विअर्थी, घटिया या फिर अश्लील नहीं होती. और इसीलिए फिल्म को ज्यादा व्यापक दर्शक वर्ग मिलेगा. हालांकि फैमिली क्लास इसकी तरफ आएगी, इसको लेकर मुझे शुबहा है.मगर नौजवान हों या बूढे, अपने अपने झुंड में सब जाएंगे और भरपूर मजा पाएंगे.