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Film Review: जंगल और बाघ का खूबसूरत खौफ है 'रोर' में

बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर खारे पानी के ज्वार भाटे के बीच पनपा नायाब जंगल है सुंदरबन. इसके सफेद बाघ दुनिया भर में मशहूर हैं. इनकी सुंदरता को क्लिक करने पहुंचता है वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर उदय. उसे पोचर्स के तार में फंसा मिलता है बाघ का बच्चा. उदय उसे रेस्टहाउस ले आता है. बच्चे की खोज में मां आती है. मगर बच्चा तो जंगल डिपार्टमेंट वाले ले गए. बची है उसकी गंध और अपनी डायरी में वाइल्ड लाइफ की हालत को लेकर चिंता लिखता उदय. बाघिन को आता है गुस्सा. उदय अस्त हो जाता है.

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फिल्म 'रोर' का पोस्टर
फिल्म 'रोर' का पोस्टर

रोर- टाइगर्स ऑफ सुंदर बन
एक्टरः अभिनव शुक्ला, हिमार्षा वेंकटसामी, अचिंत कौर, सुब्रत दत्ता, नोरा फातेही, अली कुली मिर्जा, आदिल चहल, वरिंदर सिंह घुमन
डायरेक्टरः कमल सदाना
ड्यूरेशनः 2 घंटा 3 मिनट
रेटिंगः 2.5 स्टार

बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर खारे पानी के ज्वार भाटे के बीच पनपा नायाब जंगल है सुंदरबन. इसके सफेद बाघ दुनिया भर में मशहूर हैं. इनकी सुंदरता को क्लिक करने पहुंचता है वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर उदय. उसे पोचर्स के तार में फंसा मिलता है बाघ का बच्चा. उदय उसे रेस्टहाउस ले आता है. बच्चे की खोज में मां आती है. मगर बच्चा तो जंगल डिपार्टमेंट वाले ले गए. बची है उसकी गंध और अपनी डायरी में वाइल्ड लाइफ की हालत को लेकर चिंता लिखता उदय. बाघिन को आता है गुस्सा. उदय अस्त हो जाता है. फिल्म रिव्यू: कन्फ्यूजन के कोने में फंसी कहानी 'सोनाली केबल' की.

लाश के वास्ते आता है उसका कमांडो भाई जिसका कोड नेम है पंडित. अब उसकी जिंदगी का एक ही मकसद है. बाघिन से बदला. इसके लिए वह कानून को ताक पर रखकर हथियारों की खेप, एक लोकल गाइड और कमांडो साथियों के साथ घुसता है सुंदरबन में. इस काम में उसके साथ बतौर खोजी एक स्थानीय लड़की झुंपा जुड़ती है. जंगल में उन्हें अवैध शिकारियों का एक दस्ता भी मिलता है. और फिर शुरू होता है शिकार. पर कौन है शिकारी और कौन बनेगा शिकार. यही दिलचस्प दास्तान है रोर की. Film Review: जानिए कैसी फिल्म है 'हैप्पी न्यू ईयर'.

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जहां एक तरफ इंसान की अकल, हथियार और योजना है. दूसरी तरफ अपने घर में घुस आए लोगों के प्रति हमलावर जंगली जानवर. फिल्म रोर को देखकर पहला स्टेटस मैसेज क्या छपता है. गुड अटेम्प्ट. फिल्म की लोकेशन यानी सुंदरबन अपने गीले हरेपन के साथ एक किस्म का झुरझुरीदार सम्मोहन रचते हैं. बाघ की हरकतें हो या हमला या फिर घड़ियाल और सांप, सब कुछ असली हैं और वीएफएक्स तकनीक से उन्हें असरदार ढंग से जंगल में प्रोजेक्ट किया गया है.

फिल्म की एक और खूबी है इसकी कमोबेश तेज रफ्तार. कुल मिलाकर यह एक मजेदार, रोमांचक और हिंदी फिल्म के लिहाज से नया प्रयोग बन जाती है. लेकिन...फिल्म में कुछ झोल भी हैं. पहला, ज्यादातर एक्टर्स सिनेमा के बड़े पर्दे को संभाल नहीं पाते. कुछ टीवी से आए हैं, कुछ शरीर दिखाने आए हैं और कुछ सीधे अखाड़े से उठकर चले आए हैं. इन सबके बीच पोचर बीरा के किरदार में सुब्रत दत्ता ने अच्छा काम किया है. मंझी हुई एक्टर अचिंत कौर के जिम्मे बतौर जंगल वॉर्डन ज्यादा कुछ करने को आया नहीं.

फिल्म के लीड पेयर हैं पंडित के रोल में अभिनव शुक्ला और झुंपा के रोल में किंगफिशर कैलेंडर फेम मॉडल हिमार्षा. अभिनव टीवी की दुनिया से आए हैं मगर यहां वह औसत ही रहे. हिमार्षा को जितनी फुटेज मिली, उतनी उन्हें एक्टिंग करनी नहीं आई. कमांडो टीम के मेंबर के तौर पर अली कुली मिर्जा मजेदार लगे. आजकल वह बिगबॉस में भी भरपूर मजा दे रहे हैं.

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नोरा फातेही को हिमार्षा के साथ जंगल में मंगलनुमा माहौल पैदा करने के लिए रखा गया. इसलिए इनकी एक्टिंग के बारे में नो कमेंट. वरिंदर सिंह घुमन मिस्टर इंडिया फेम अर्नाल्ड मार्का पहलवान हैं. तो वह बोले न के बराबर और देह दिखाई जमकर. नोरा और हिमार्षा को उन्होंने ही अंग प्रदर्शन में कड़ा मुकाबला दिया.

एक्टिंग के अलावा स्टोरी में कहीं कहीं हिंदी सिनेमा की पुरानी बीमारियों का दखल भी अखरता है. बन में भटकते भटकते कमांडो एक जंगली जाति के गांव पहुंच जाती है. और फिर झिंगा लाला हू नुमा नाच शुरू हो जाता है. आखिर में बाघ को भी मां की ममता के भावुक शिकंजे में कस दया की मूर्ति दिखा दिया जाता है. और सबसे आखिर में बाघ के दूसरे बच्चे को मुक्त करने के बाद जंगल के दलदल में चुम्मा, या रब, आंखें भर आती हैं.

फिल्म दर्शन के स्तर पर भी कुछ अटकी भटकी है. एकबारगी तो अंत तक आते आते फिल्म सेव द टाइगर कैंपेन का विस्तार लगने लगती है. इसके अलावा झुंपा का वनदेवी नुमा अवतार हो या फिर उसके पुराने संबंध की अधूरी दिखाई गई कहानी. बीरा की साजिशों के प्रति कमांडो की टीम का बोदापन हो या फिर जंगल डिपार्टमेंट की चुनिंदा चुस्ती. सब कुछ देखकर लगता है कि कहानी पर और मेहनत की जानी चाहिए थी.

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रोर उनके लिए है, जिन्हें एनाकोंडा टाइप जंगली रोमांच पसंद है. भारत में इस तरह की कोशिशें शुरू हो गई हैं, इसके लिए कभी एक्टर रहे डायरेक्टर कमल सदाना बधाई के पात्र हैं. नए तरह की फिल्म है ये. बच्चों और बालकों को खूब पसंद आएगी. हैप्पी न्यू ईयर का डंक निकालने का भी एक जरिया हो सकती है ये. दहाड़ पसंद हो तो जाएं रोर देखने.

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