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Baramulla Review: घाटी की घटनाओं से निकला दमदार हॉरर, थ्रिलिंग है नेटफ्लिक्स की नई फिल्म

नेटफ्लिक्स की पर नई फिल्म आई है 'बारामूला'. 'उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक' और 'आर्टिकल 370' बनाने वाले आदित्य धर इसके प्रोड्यूसर हैं. कश्मीर में घट रही इस हॉरर कहानी का माहौल ट्रेलर में ही दमदार नजर आ रहा था. इस रिव्यू में जानिए कि फिल्म कैसी है.

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'बारामूला' रिव्यू: कश्मीर से निकली ये हॉरर फिल्म जीत लेगी दिल (Photo: IMDB)
'बारामूला' रिव्यू: कश्मीर से निकली ये हॉरर फिल्म जीत लेगी दिल (Photo: IMDB)
फिल्म:बारामूला
3.5/5
  • कलाकार : मानव कौल, भाषा सुम्बली, अरिस्ता मेहता, रोहन सिंह
  • निर्देशक :आदित्य सुहास जंभाले

बारामूला में कुछ बहुत भयानक चल रहा है. एक जादूगर जादू दिखाने आया है और उसकी पेटी में घुसने वाला बच्चा गायब हो गया है. आप कहेंगे कि जादूगर का खेल यही दिखाने का तो था— कि बच्चा एक बक्से में जाएगा और गायब हो जाएगा. लेकिन खेल पूरा तो तब होता न जब जादूगर अंत में बच्चे को वापस ले आता! मगर ये नहीं हुआ. तो क्या जादूगर के इरादों में कुछ गड़बड़ है? या जादूगर खुद किसी और बड़ी शक्ति का शिकार हुआ है? और उसे खुद नहीं पता कि उसके साथ ही खेल हो गया है. 

नेटफ्लिक्स की फिल्म 'बारामूला' ने यही माहौल बनाया है. मानव कौल और एक सॉलिड कास्ट की एक्टिंग इस माहौल में आपको उलझाए रखती है. हर जादूगर के खेल का बेसिक यही है कि जितना आपको दिख रहा है, सिर्फ उतना ही नहीं है. असली सेटअप पर्दे के पीछे है. 'बारामूला' का सीन भी कुछ ऐसा ही है.

तमाम जादूगरों के जादू का मंच— बारामुला 
दशकों तक आतंकवाद, हत्याओं और पॉलिटिक्स की भूलभुलैया में उलझा कश्मीर किसी जादूगर के रहस्य जैसा ही हो चुका है. जादूगर आते हैं, जादू दिखाते हैं, लोग गायब हो जाते हैं. निजी पॉलिटिक्स और श्रद्धा के साथ आप ये तय कर सकते हैं कि आप इनमें से किस जादूगर की तरफ हैं. 

'बारामूला' की कहानी ने कश्मीर की दंतकथाओं में से निकले शैतानी किरदार पासिकदार को उठाया है. इसे कश्मीर की रियलिटी से निकली कहानियों में बुना है और एक फिक्शनल कहानी तैयार की है. हॉरर फिल्में कल्पना की सुरंग से ऐसी दिलचस्प कहानियां लेकर आती हैं जो दर्शकों की आंखों को झपकने से रोक देने वाला थ्रिलिंग एक्सपीरियंस डिलीवर करें. मगर बड़े जानकार लोग कहते हैं कि रियलिटी से ज्यादा भयावह शायद कोई दूसरा हॉरर नहीं हो सकता. और बिल्कुल यही बात 'बारामूला' को एक बेहतरीन हॉरर फिल्म बनाती है. 

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डायपर-टेररिज्म यानी बच्चों को बचपन से ही आतंकवाद की ट्रेनिंग देने की कहानियां घाटी से खूब आती रही हैं. इस रियलिटी को 'बारामूला' कश्मीर के एक और यथार्थ से जोड़ती है— कश्मीरी पंडितों का पलायन. और एक दंतकथा को नए अंदाज में इस्तेमाल करते हुए एक थ्रिलिंग कहानी रचती है. 

घाटी के एक बड़े नेता का बेटा गायब हुआ है, जादूगर के बक्से से. डीएसपी रिदवान (मानव कौल) को जिम्मा मिला है बच्चे को खोजने का. मगर रिदवान साहब के अपने घर में कुछ चल रहा है. उनके खुद दो बच्चे हैं- नूरी (अरिस्ता मेहता) और अयान (रोहन सिंह). इन्हें अपने घर के एक हिस्से में कुछ रहस्यमयी स्पिरिट्स फील हो रही हैं. नौकर इकबाल उसी हिस्से में सबकी नजर बचाकर, चावल और मछली रख आया करता है. 

रिदवान की पत्नी, गुलनार (भाषा सुम्बली) को भी कुछ फील होना शुरू होता है. मगर रिदवान को लगता है कि 'उसे आराम की जरूरत है.' क्या रिदवान अपने घर के मसले सुलझा पाएगा. क्या वो गायब होते बच्चों का केस सॉल्व कर पाएगा? क्या उसके अपने परिवार पर कोई बड़ा खतरा है? यही 'बारामूला' की कहानी है. 


थ्रिलिंग कहानी का पॉलिटिकल खेल और दमदार एक्टिंग
'बारामूला' जिस तरह शुरू होती है, उससे एक तगड़ी हॉरर-थ्रिलर का माहौल बनता है. कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन को हॉरर फिल्म के नैरेटिव में जिस तरह बुना गया है वो यकीनन डायरेक्टर आदित्य सुहास जंभाले और फिल्म के राइटर-प्रोड्यूसर आदित्य धर की बड़ी कामयाबी है. मगर अपना मैसेज डिलीवर करने में फिल्म जिस तरह गुड मुस्लिम-बैड मुस्लिम वाले नैरेटिव का इस्तेमाल करती है, वो छिपाए नहीं छुपता. 

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त्रासदियों को बाहरी शक्तियों के दखल से ना जोड़कर, उसे किसी एक पीड़ित ग्रुप से जोड़ देना, बाकी पक्षों को विलेन बना देता है. नैरेटिव का ये खेल फिल्मों और कहानियों में पॉलिटिकल मैसेज को चिपकाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इस मामले में 'द कश्मीर फाइल्स' भी याद आती है. मगर 'बारामूला' की खासियत ये है कि ये एक मजबूत फिल्ममेकिंग आर्ट से बनी फिल्म पहले है बाकी सब बाद में. 

यही इस फिल्म को एंगेजिंग बनाता है. हालांकि मैसेजिंग को लेकर कहानी को एक तरफ झुकाने की कोशिश थोड़ी पकड़ी जरूर जाती है. कुछेक जगह फिल्म थोड़ी स्लो भी होने लगती है. क्लाइमेक्स में टिपिकल मसाला एंटरटेनर बनने की कोशिश, फिल्म के मूड को सूट नहीं करती. मगर कुल मिलाकर 'बारामूला' एक देखने लायक फिल्म है. मानव कौल ने एक बार फिर से अपनी दमदार परफॉरमेंस से लीड किरदार को जानदार बना दिया है. 

'द कश्मीर फाइल्स' फेम भाषा सुम्बली का काम एक बार फिर से दिल जीत लेता है. दोनों बच्चों का काम बहुत सॉलिड है और उनके काम ने ही असल में फिल्म को बांधा है. कुल मिलाकर 'बारामूला' बनाने की इंटेंशन पर सवाल जरूर हो सकते हैं, मगर वो बहुत सब्जेक्टिव मामला है. इसे साइड रख दें तो फिल्म के तौर पर ये एक दमदार हॉरर थ्रिलर है. इसे देखते हुए आप पूरी तरह फिल्म के साथ फंसे रहते हैं.

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