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25 साल में पहली बार केक काटा था पंचायत के प्रधान जी ने, वो भी झूठा

पंचायत के प्रधानजी यानी एक्टर रघुबीर यादव बताते हैं, 'मैं एक गांव से आता हूं. हमारे यहां बर्थडे का कोई रिवाज ही नहीं है. मैंने अपना पहला जन्मदिन एनएसडी के दिनों में मनाया था. क्लास के दोस्त और सीनियर्स ने उकसाया कि बताओ बर्थडे कब है, तब से बर्थडे के कल्चर की शुरूआत हुई है.'

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वेब सीरीज पंचायत के एक सीन में रघुबीर यादव और फैजल मलिक
वेब सीरीज पंचायत के एक सीन में रघुबीर यादव और फैजल मलिक
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बर्थडे सेलिब्रेशन पर बोले प्रधानजी
  • रघुबीर ने काटा फेक केक
  • एनएसडी के दिनों में मनाया था बर्थडे

डिजिटल शो पंचायत में घर-घर जा बसे प्रधान जी यानी कि रघुबीर यादव का आज बर्थडे है. अपने जन्मदिन के खास मौके पर आजतक डॉट इन बात कर उन्होंने पहली बार केक काटने का अनुभव शेयर किया है. साथ ही बताया कि किस तरह पहली बार उन्होंने अपना झूठा बर्थडे मनाया था और एक साल में दो-दो बार केक काटने पड़े थे. 

एनएसडी में मनाया था पहला बर्थडे 
मैं एक गांव से आता हूं. हमारे यहां बर्थडे का कोई रिवाज ही नहीं है. मैंने अपना पहला जन्मदिन एनएसडी के दिनों में मनाया था. क्लास के दोस्त और सीनियर्स ने उकसाया कि बताओ बर्थडे कब है, तब से बर्थडे के कल्चर की शुरूआत हुई है. आपको जानकर ये हैरानी होगी कि मैंने अपना पहला जन्मदिन ही 25 साल की उम्र में मनाया है. उस वक्त राजू बारोत, दिपक कादिल, राजा बुंदेला, पंकज कपूर, रंजित कपूर, राज बब्बर, अनिल चौधरी जैसे कई लोगों के साथ मिलकर मैंने अपने जीवन का पहला केक काटा था.  

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रघुबीर आगे बताते हैं, मजेदार बात यह है कि स्कूल के दिनों में मेरे सर्टिफिकेट पर 20 अप्रैल का बर्थडेट रहा है. एनएसडी में 20 अप्रैल को सेलिब्रेट किया. मैं जबलपुर घर गया, तो वहां जन्मकुंडली देखी, तो 25 जून निकला बर्थडे. फिर वापस जाकर मैंने उनको बताया कि मेरा असल बर्थडे तो 25 जून को है. तो उन्होंने दोबारा उतने ही उत्साह से मनाया. अब ये सोचें कि मेरे जैसे इंसान ने जिसने कभी बर्थडे ही नहीं मनाया था. उसने मनाया भी तो एक साल में दो-दो बार. ये जिंदगीभर नहीं भूल सकता हूं.

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अब अपने बर्थडे सेलिब्रेशन के तरीकेकार में रघुबीर कहते हैं,  जबसे मुंबई आकर बसा हूं, तो हर साल लोगों का प्रेशर रहता ही है कि बर्थडे मनाऊं और अपने इस खास दिन को सबके साथ सेलिब्रेट करूं. पिछले कुछ सालों में मैंने यह रिवाज बनाया है कि अपने बर्थडे के दिन मैं किसी म्यूजिक शॉप में चला जाता हूं. वहां कोई इंस्ट्रूमेंट लेकर आ जाता हूं और उसे सीखने में पूरा एक साल निकाल लेता हूं. फिर दूसरे साल एक नया वाद्ययंत्र खरीदता हूं. इससे मुझे फायदा यही हो गया है कि अब मैं बांसुरी बजा लेता हूं और भी कई म्यूजिक टूल्स सीख चुका हूं.

 

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