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'तैयब अली- प्यार का दुश्मन' दिलीप कुमार का वो एक्टर दोस्त जो उन्हें डांट भी सकता था, उनके बेड में सो भी जाता था

'अमर अकबर एंथनी' में तैयब अली का किरदार बहुत पॉपुलर हुआ था. फिल्म में इस किरदार पर बाकायदा एक गाना था- 'तैयब अली प्यार का दुश्मन'. इन्हीं एक्टर ने नत्थूलाल का भी किरदार निभाया, जिनकी मूंछों की मिसाल अमिताभ बच्चन ने 'शराबी' में खूब दीं. इस एक्टर को चेहरे से तो बहुत लोग पहचानते हैं, मगर नाम कुछ को ही याद रहता है. आइए बताते हैं इनके बारे में.

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'अमर अकबर एंथनी' में मुकरी (क्रेडिट: ट्विटर)
'अमर अकबर एंथनी' में मुकरी (क्रेडिट: ट्विटर)

देविका रानी और उनकी कंपनी बॉम्बे टॉकीज, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की नींव के सबसे मजबूत पिलर्स में गिने जाते हैं. हिंदी ही नहीं, इंडियन सिनेमा के प्रोडक्शन स्टैण्डर्ड को लगातार बढ़ा रही इस कंपनी ने ही दिलीप कुमार को भी मौका दिया, जिन्हें आगे चलकर लेजेंड का दर्जा मिला. 1944 में दिलीप कुमार बॉम्बे टॉकीज की 'ज्वार भाटा' से डेब्यू कर चुके थे, लेकिन उन्हें ज्यादा अच्छा रिस्पॉन्स मिला नहीं. देविका रानी को दिलीप कुमार के टैलेंट पर भरोसा था इसलिए उन्हें लेकर एक और फिल्म 'प्रतिमा' (1945) बना रही थीं. 

'प्रतिमा' के सेट पर एक असिस्टेंट डायरेक्टर के साथ दिलीप खूब मौज-मस्ती किया करते. असल में ये दोनों अंजुमन-ए-इस्लाम स्कूल में साथ पढ़े हुए थे. इस असिस्टेंट डायरेक्टर की कद काठी, बॉडी लैंग्वेज और हंसने का अंदाज काफी अलग था. अक्सर दिलीप कुमार के जोक का टारगेट वही होता. बॉम्बे टॉकीज चलाने वाली देविका रानी को भी इसे देखकर हंसी आ जाती. उन्होंने तय किया कि इस असिस्टेंट डायरेक्टर को वो 'प्रतिमा' में कास्ट करेंगी और कॉमेडी करवाएंगी. और इस तरह हिंदी सिनेमा को अपने सबसे बेहतरीन कॉमेडी एक्टर्स में से एक मुकरी मिले. दिलीप कुमार को 'ज्वार भाटा' की ही तरह 'प्रतिमा' से भी कुछ बड़ा फायदा नहीं हुआ, लेकिन मुकरी का कॉमिक अंदाज लोगों ने नोटिस किया.

मुकरी (क्रेडिट: ट्विटर)

तैयब अली और नत्थूलाल
दिलीप कुमार और मुकरी का साथ तो ऐसा था कि सुपरस्टार की फिल्मों में उनका रोल जरूर रखा जाता था. मुकरी के किरदार बड़े नहीं होते थे और उन्होंने तमाम छोटे-छोटे किरदार निभाए. दिलीप साहब के अलावा, मुकरी को अगले सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की फिल्मों में खूब देखा गया. 

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फिल्मों में लीड एक्टर के किरदार पर बना गाना, उसके स्टारडम का एक सिंबल बन जाता है. जैसे गोविंदा के लिए 'पक चिक पक राजा बाबू', अमिताभ बच्चन के लिए 'शहंशाह' का टाइटल ट्रैक, शाहरुख के लिए 'बादशाह' का टाइटल ट्रैक 'बादशाह ओ बादशाह'. लेकिन मुकरी शायद उन कॉमिक एक्टर्स में विरले हैं, जिनके कैरेक्टर के नाम पर फिल्म में गाना था. 'अमर अकबर एंथनी' में ऋषि कपूर की प्रेमिका बनीं नीतू सिंह के पिता, तैयब अली का किरदार मुकरी ने निभाया था. फिल्म में इन दोनों प्रेमियों के बीच वो इतना अड़े कि उनके नाम के साथ गाना रखा गया- 'तैयब अली प्यार का दुश्मन'!

गाने में मुकरी के एक्सप्रेशन बड़े मजेदार थे और 'अमर अकबर एंथनी' देखने वाले हर शख्स को 'तैयब अली' यानी मुकरी याद रह गए. 'शराबी' में अमिताभ बच्चन का डायलॉग 'मूंछे हों तो नत्थूलाल जैसी, वरना ना हों' भी मुकरी की पहचान बन गया. 

'शराबी' में मुकरी (क्रेडिट: ट्विटर)

पेशे से काजी-फिल्मों में काम
कोंकणी मुस्लिम परिवार से आने वाले मुकरी का पूरा नाम मोहम्मद उमर मुकरी था और वो पेशे से काज़ी थे. उन दिनों हिंदी फिल्म इंडस्ट्री बढ़ रही थी और लोगों को अच्छे मौके मिल रहे थे. टिकाऊ इनकम के लिए मुकरी भी फिल्मों से जुड़ गए. मुकरी के निधन के बाद उनकी बेटी ने बताया कि वो रियल लाइफ में भी बहुत जिंदादिल आदमी थे. मगर वो बहुत धार्मिक थे और घर में उन्होंने बच्चों को फिल्म देखने की इजाजत नहीं दी थी. हालांकि अपनी फिल्मों के प्रीमियर पर वो अपने परिवार को जरूर ले जाते थे. 

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जब दिलीप कुमार को अपने बेड में घुसे मिले मुकरी 
मुकरी और दिलीप साहब की यारी रील ही नहीं, रियल लाइफ में भी खूब लंबी चली. अपनी बायोग्राफी में मुकरी के बारे में दिलीप कुमार ने लिखा, 'मुकरी, अंजुमन-ए-इस्लाम में मेरे स्कूलमेट थे और वो मेरे बॉम्बे टॉकीज आने से पहले एक्टर बन चुके थे. तो इस वजह से उन्हें मुझपर ये हक हासिल था कि अगर मेरी किसी भी बात से उन्हें गुस्सा आया तो वो मुझे पलटकर बोल सकते हैं, क्योंकि वो मेरे सीनियर हैं. हम में शायद ही कुछ कॉमन हो, इसके बावजूद हमारी दोस्ती हो गई.'

हालांकि, मुकरी की बेटी ने एक जगह बताया है कि दिलीप कुमार उनके पिता से सीनियर थे. मुकरी के क्लासमेट दिलीप के भाई नासिर खान थे, लेकिन उनकी दोस्ती दिलीप साहब से ज्यादा रही. मुकरी को एक तरफ दिलीप साहब को पलटकर जवाब दे सकते थे, तो दूसरी तरफ एक रात दिलीप साहब को मुकरी अपने बेड में छुपे हुए मिले. अपनी बायोग्राफी में ही दिलीप साहब ने ये वाकया बताया है. वो कहते हैं कि एक रात वो होटल में जब अपने बेड में घुसे तो उन्हें चादर के नीचे मुकरी छुपे हुए मिले. और ये कोई प्रैंक भी नहीं था. बात ये थी कि मुकरी को अपने कमरे में अकेले सोने में डर लग रहा था. 

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दोनों की ये दोस्ती मुकरी की आखिरी सांस तक जारी रही. अगस्त 2000 में मुकरी को गॉल ब्लैडर में दर्द की शिकायत के साथ लीलावती हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया, जहां ब्लैडर में गैंगरीन होने की बात सामने आई. दिलीप कुमार और उनकी पत्नी सायरा बानो लगातार डॉक्टर्स से बात करते रहे और उनकी तबियत का ख्याल रखते रहे. आने वाले दिनों में उनकी तबियत थोड़ी सुधरने लगी थी. इसी बीच दिलीप कुमार लखनऊ गए, लेकिन मुकरी के सीरियस होने की वजह से सायरा मुंबई में ही रहीं. अपने दोस्त के लौटने से पहले ही मुकरी ने 4 सितंबर को दुनिया से विदा ले ली. 

लगभग 6 दशक लंबे करियर में 600 से ज्यादा फिल्में करने वाले मुकरी ऐसे मुस्कुराते थे कि उनके दांत नहीं दिखते थे. उनके कॉमेडी स्टाइल की ये खासियत थी कि हर कॉमिक लाइन बोलने के बाद वो खुद जरूर हंसते थे. उनके कद, काठी और अनोखे अंदाज ने उन्हें एक ऐसा पॉपुलर कॉमेडी एक्टर बना दिया, जिसे हिंदी सिनेमा फैन्स शक्ल से हमेशा पहचान जाते हैं. 

 

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