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'सैयारा' की सक्सेस का सबक- प्यार को प्यार ही रहने दो, मैसेज का लोड ना दो

'सैयारा' सिनेमाई फॉर्मूलों को तोड़कर बनाई गई, फिल्मों का डिजाईन बदल देने वाली कोई लैंडमार्क फिल्म भी नहीं है. तो फिर 'सैयारा' ने ऐसा क्या किया है जो जनता इसके टिकटों के लिए गिरी जा रही है? चलिए बताते हैं कि 'सैयारा' की सक्सेस क्या कहती है.

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इस वजह से 'सैयारा' के दीवाने हुए जा रहे हैं दर्शक (Instagram/@yrf)
इस वजह से 'सैयारा' के दीवाने हुए जा रहे हैं दर्शक (Instagram/@yrf)

आज से दो हफ्ते पहले शायद ही किसी ने सोचा होगा कि दो एकदम नए चेहरों वाली कोई फिल्म आकर थिएटर्स इस तरह भर देगी कि कामकाजी दिनों में भी शाम के शोज का टिकट मिल पाना मुश्किल होगा. मगर अहान पांडे और अनीत पड्डा स्टारर 'सैयारा' का क्रेज कुछ ऐसा चल रहा है कि कामकाजी दिनों में भी इसकी कमाई, साल की सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर 'छावा' को टक्कर दे रही है. 

फिल्म लवर्स 'सैयारा' के शोज में जुट रही भीड़ और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर इसकी बुकिंग देखकर आंखें मल रहे हैं. जबकि ट्रेड एक्सपर्ट्स का सारा गुणा-गणित ये जोड़ने में फेल हो चुका है कि बिना किसी जोरदार प्रमोशन के ये फिल्म ऐसी तगड़ी कमाई कर कैसे रही है. जबकि 'सैयारा' सिनेमाई फॉर्मूलों को तोड़कर बनाई गई, फिल्मों का डिजाईन बदल देने वाली कोई लैंडमार्क फिल्म भी नहीं है. तो फिर 'सैयारा' ने ऐसा क्या किया है जो जनता इसके टिकटों के लिए गिरी जा रही है? 

इस सवाल का जवाब 'सैयारा' में ही छुपा है. डायरेक्टर मोहित सूरी ने इस फिल्म में बहुत कुछ ऐसा किया है जो एकसाथ मिलकर ऐसी कहानी बन जाता है जिसने एक बहुत बड़ी खाली जगह भर दी है. 

रूटीन लव स्टोरी होने के बावजूद कैसे अलग है 'सैयारा'?
मोटे तौर पर 'सैयारा' एक म्यूजिकल लव स्टोरी ही लगती है. मगर थोड़ा गहराई में जाकर देखने पर आप पाएंगे कि इस लव स्टोरी को कहानी और स्क्रिप्ट, दोनों लेवल पर बड़ी संजीदगी से गढ़ा गया है. 

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दो बिल्कुल अलग तरह के लोगों का मिलना, एक दूसरे की शख्सियत पर अपने रंग छोड़ना, प्यार भरे सफर की शुरुआत करना और फिर कहानी में किस्मत का लिखा एक ट्विस्ट... आइकॉनिक फिल्मी लव स्टोरी में ये प्लॉट लाइन अलग-अलग तरह से पाई जाती है. बस इसका ट्रीटमेंट हर फिल्म में अलग तरह से होता है. ऐसी लव स्टोरीज को एक दूसरे से अलग करता है कहानी का ट्विस्ट और ट्रीटमेंट. जहां आमिर खान-जूही चावला की 'कयामत से कयामत तक' (1988) में दो परिवारों की दुश्मनी कहानी का कनफ्लिक्ट थी, वहीं 'एक विलेन' (2014) की कहानी में ये कनफ्लिक्ट था एक साइको किलर. 

'सैयारा' के राइटर संकल्प सदाना ने कहानी और स्क्रिप्ट में चीजें बहुत सादी रखी हैं. इस लव स्टोरी का कनफ्लिक्ट हीरो का कोई पुराना दुश्मन, हीरोइन का कोई पुराना प्रेमी, दोनों प्रेमियों के परिवारों की दुश्मनी या कोई साइको किलर नहीं है. 'सैयारा' में कहानी का कनफ्लिक्ट है एक बीमारी, जिसके चलते हीरोइन चीजें भूलने लगी है और एक दिन अपने प्रेमी का नाम भी भूल जाती है.

दोनों लीड किरदारों की जिंदगियों से अलग और इंसान के कंट्रोल से बाहर का कनफ्लिक्ट रखने का सबसे बड़ा फायदा ये हुआ कि 'सैयारा' में हीरो के लिए चैलेंज का लेवल बहुत ऊंचा हो गया. अब उसे किसी इंसान से नहीं लड़ना है, हिंसक नहीं होना है. बल्कि जीवन के प्रति अपने गुस्सैल नजरिए से लड़ते हुए अपनी प्रेमिका के लिए नर्म होते जाना है. दोनों लीड किरदारों में जो उदासी है, वो उनके अपने पास्ट से और उनके हालात से निकली है और इसलिए यहां भी स्क्रिप्ट में बाहर से कोई एलिमेंट प्यार का विलेन बनकर नहीं आ रहा.

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'सैयारा' में कई ऐसी चीजें हैं जो राइटिंग में बहुत सिंपल रखी गई हैं, जैसे दोनों लीड किरदारों के पेरेंट्स का रिएक्शन. दोनों के ही पेरेंट्स में आपको चिंता तो नजर आती है मगर ये प्यार का नाम सुनकर बौखला जाने वाले 90s वाली फिल्मों के  पेरेंट्स नहीं हैं. चीजों को इतना बेसिक और सिंपल रखने का फायदा ये हुआ कि 'सैयारा' की लव स्टोरी का इमोशन शुरू से अंत तक दर्शकों पर असर डाले रखता है. 

किसी ओवर द टॉप सस्पेंस भरे ट्विस्ट, या किसी अविश्वसनीय ड्रामा की वजह से कहानी से आपका ध्यान नहीं भटकता. गाने और गानों का पिक्चराइजेशन ऐसा है कि वो कहानी का इमोशन, गंभीरता और फ्लो नहीं टूटने देता. इस तरह एक दर्शक लगातार उस मूड में बना रहता है जिसमें 'सैयारा' के डायरेक्टर मोहित सूरी उसे ले जाना चाहते थे. इन बारीक चीजों पर ध्यान देने की वजह से ही 'सैयारा' एक रेगुलर लव स्टोरी होने के बावजूद, अपने ट्रीटमेंट में फ्रेश फील होती है.
 
क्या थी वो खाली जगह जिसे भर रही 'सैयारा'?
राइटिंग के लेवल पर 'सैयारा' का अलग होना तो इसके दमदार होने की एक वजह बना ही. मगर पिछले कुछ सालों से एक इंटेंस और दिल में उतर जाने वाली लव स्टोरी की कमी भी इस फिल्म के पॉपुलर होने की बड़ी वजह बनी. 

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बॉलीवुड की आखिरी इंटेंस लव स्टोरी 'कबीर सिंह' थी. डायरेक्टर संदीप रेड्डी वांगा ने जिस तरह अपनी कहानी के दायरे में ही कनफ्लिक्ट खोजते हुए, अपने किरदारों के इमोशंस के साथ ईमानदारी बरतते हुए उनके प्रेम को पर्दे पर उतारा, उसने 'कबीर सिंह' को एक इंटेंस लव स्टोरी बनाया था. फिल्म के हीरो का बर्ताव, आदर्श सेंसिबिलिटी के चश्मे से भले परफेक्ट ना रहा हो मगर अपनी कहानी के संदर्भ में वो फिट था. इसीलिए 'कबीर सिंह' आलोचनाओं के बावजूद दर्शकों में पॉपुलर हुई. 

इसके बाद, खासकर लॉकडाउन के बाद जो लव स्टोरीज बॉलीवुड से आईं वो या तो राइटिंग के स्तर पर कमजोर थीं. या फिर उनमें प्रेम के बहाने सोशल मैसेज देने की होड़ सी छिड़ गई. 'सैयारा' के ही डायरेक्टर मोहित सूरी की 2020 में आई फिल्म 'मलंग' एक हद तक चली तो जरूर मगर लव स्टोरी में थ्रिलर और मसाला का डोज होने की वजह से उसका क्रेज बहुत सॉलिड नहीं था. उसी साल आई 'दिल बेचारा', सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म होने की वजह से खूब देखी तो गई मगर राइटिंग की कमजोरी ने उसे एक दमदार फिल्म नहीं बनने दिया. 

कमजोर राइटिंग और बहुत दमदार म्यूजिक ना होने की वजह से ही नए चेहरों के साथ आईं 'शिद्दत' (2021) और 'तड़प' (2021) जैसी फिल्में भी दर्शकों पर कुछ खास छाप नहीं छोड़ सकीं. दूसरी तरफ प्रभास जैसे सुपरस्टार की 'राधे श्याम' और वरुण धवन-जाह्नवी कपूर की 'बवाल' जैसी फिल्मों में लव स्टोरी का कनफ्लिक्ट कुछ ज्यादा ही उलझा हुआ हो गया. 

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लॉकडाउन के बाद वाले दौर में 'चंडीगढ़ करे आशिकी' (2021), 'तू झूठी मैं मक्कार' (2023) या 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' (2023) जैसी पॉपुलर फिल्मों ने भी लव स्टोरीज पर्दे पर लाने की कोशिश की. मगर इनमें फैमिली ड्रामा, कॉमेडी और सोशल मैसेज डालने की वजह से कहानी का फोकस सिर्फ लव स्टोरी की इंटेंसिटी पर नहीं रह गया. 

अपने दौर में लव स्टोरी के दम पर एक एंगेजिंग कहानी कहने वाली 'गदर' (2001) का सीक्वल 'गदर 2' (2023) भी दर्शकों को एक दमदार लव स्टोरी नहीं दे सका. यानी लॉकडाउन के बाद से ही पूरी तरह सिर्फ प्रेम का इमोशन और इसे जी रहे दो किरदारों का सफर दिखाने वाली, इमोशनल और इंटेंस लव स्टोरी दर्शकों को नहीं मिल रही थी. 

'सैयारा' ने ऐसी लव स्टोरी के इंतजार में बैठे दर्शकों, खासकर युवा फिल्म लवर्स का ये इंतजार पूरा किया. मोहित सूरी की ये फिल्म एक अनदेखी-अनसुनी लव स्टोरी दिखाने से ज्यादा, एक पॉपुलर टेम्पलेट की लव स्टोरी को बिल्कुल सही फिल्मी ट्रीटमेंट के साथ बड़े पर्दे पर उतारने का उदाहरण है. 'सैयारा' एक एंगेजिंग लव स्टोरी के बेसिक पैमानों पर पूरी तरह खरी उतरी और नए चेहरों का लीड रोल में होना इसे फ्रेश भी बना रहा है. फिल्म सिंपल है और इसे एन्जॉय करने के लिए आपको दिमाग नहीं बल्कि दिल लगाना है, जिससे यंग दर्शकों को इमोशनली इन्वेस्ट होने का मौका मिलता है.

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फिल्म के गानों में प्यार और दोनों किरदारों की उदासियों को दमदार म्यूजिक के साथ पूरी तरह उतर कर आया. एक अदद लव स्टोरी की डिमांड भी पूरी तरह बन चुकी थी. यही वजह है कि 'सैयारा' का बेसिक मगर इंटेंस प्रेम संसार दर्शकों को दीवाना बना रहा है और अगले कुछ हफ्तों तक बनाता रहेगा.

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