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'हमेशा टैक्सी-ऑटो में चलता था, उसकी फीमेल फ्रेंड भी बहुत थीं', दोस्त राकेश बेदी ने ऐसे किया फारुख शेख को याद

राकेश बेदी और फारुख शेख की दोस्ती 'चश्मेबद्दुर' के समय से रही है. राकेश बताते हैं फारुख और उनकी बॉन्डिंग में कभी कोई झिझक नहीं रही और शायद यही वजह है कि घर खरीदते वक्त राकेश ने फारुख को कॉल कर हक से पैसे मांगे थे.

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चश्मेबद्दुर पोस्टर
चश्मेबद्दुर पोस्टर

राकेश बेदी और फारुख शेख थिएटर के दिनों से ही बहुत करीब रहे हैं. राकेश और फारुख की बॉन्डिंग लगभग 35 साल की रही है. 'चश्मेबद्दुर' में ये दोस्त साथ नजर आए. अपने दोस्त फारुख को उनके जन्मदिन पर याद करते हुए राकेश कई दिलचस्प किस्से हमें बता रहे हैं.

फारुख संग अपनी शुरुआती मुलाकात पर राकेश कहते हैं, 'मैं और फारुख एक ही थिएटर ग्रुप से आते थे. हमने कभी नाटक तो साथ नहीं किया है लेकिन ग्रुप एक होने की वजह से हमारी मुलाकात अक्सर हो जाया करती थी. मुझे याद है फारुख उन दिनों हनी ईरानी के अच्छे दोस्त थे. लगभग 7 से 8 साल तक, फारुख और मैं रोजाना हनी के घर शाम को बैठकी लगाया करते थे. वहीं डिनर भी कर लिया करते थे. कितनी बहस, फिल्मों के किस्से, चर्चाएं, नाटक, इन सब पर हमारी घंटों बातें होती रहती थीं. फारुख को चर्चा करने का बड़ा शौक था. कभी भी कोई इंटरनेशनल या नेशनल लेवल की बात होती थी, तो हम फोन पर उसे डिसकस किया करते थे. थॉट्स एक्सचेंज होते थे,  बहस भी हुई, लड़ाई भी हुई लेकिन इसका असर फ्रेंडशिप पर नहीं पड़ा.' 

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मुझे फारुख ने दिए थे 15 हजार रुपये 
राकेश आगे बताते हैं, 'पता नहीं लेकिन आज के जनरेशन की दोस्ती देखता हूं, तो हैरानी होती है. हमारे समय में दोस्ती में किसी तरह की हिचक नहीं हुआ करती थी. मुझे फारुख को कुछ कहना हो या उसे कोई आदेश देना हो, हम कभी झिझके नहीं. जब मैं नया घर ले रहा था, तो उस वक्त मुझे कुछ पैसे कम पड़ गए थे. दरअसल 15 हजार रुपये कम पड़ रहे थे. आज से 35 साल पहले 15 हजार की वैल्यू 15 लाख के बराबर ही होती होगी. मैंने फारुख को कॉल किया और कहा कि सुनो मुझे तुम पैसे दो, मकान लेना है. तो उन्होंने कहा कि आकर ले जाओ.'

अक्सर ऑटो से करते थे ट्रैवल 
फारुख की सिंपलिसिटी पर बात करते हुए राकेश बताते हैं, 'फारुख के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि कभी भी किसी ने यह नहीं सुना होगा कि फारुख ने फलां कार ली या वो फलां कार से जा रहे थे. हो ही नहीं सकता. आज के एक्टर्स में इतना कॉम्प्लेक्स होता है, कि उन्हें अपनी गाड़ी लंबी चाहिए, ड्राईवर चाहिए. तमाम तरह की शो बाजी देखते हैं. यकीन मानों फारुख एक ऐसा एक्टर था, वो जहां खड़ा होता ऑटो रिक्शा पकड़ता और अपने घर को चला जाता था. मैंने कभी नहीं देखा कि फारुख ने गाड़ी खरीदी हो या वो किसी कार में ड्राइवर संग आ रहा हो. हमेशा वो टैक्सी और रिक्शा से ही आता था. मेरा एक दोस्त है, वो टीवी शो 'एफआईआर' में काम करता था. उसने मुझे बताया कि एक दिन अचानक किसी रास्ते में टकरा गए, जहां ऑटो में बैठे फारुख ने अपना सिर बाहर निकालते हुए उसे शो के लिए बधाई देते हुए कहा कि तुम अच्छा कर रहे हो.आज की तारीख में ऐसा कौन करता है भला. मुझे तो याद ही नहीं कि मैं कभी फारुख की गाड़ी में बैठा हूं.'

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'मुंबई में 'चश्मेबद्दुर' के री-रिलीज पर इवेंट रखा गया था. उसकी मौत के 6 या 7 महीने पहले ही इस फिल्म का प्रीमियर था. मैंने उसे कॉल कर पूछा कि तुम कैसे आ रहे हो, तो कहता है कि टैक्सी ले लूंगा. मैंने कहा रुको मैं तुम्हें लेने आ जाता हूं. मैं उनके घर गया उसे पिकअप कर इवेंट में पहुंचा और रात में ड्रॉप भी किया था. वो शायद हमारी आखिरी मुलाकात थी. ऐसा नहीं था कि फारुख के पास पैसा या स्टारडम नहीं था, लेकिन उसने कभी उसका शो ऑफ नहीं किया.'

कुर्ते के पीछे थी पत्थर वाली बॉडी 
राकेश फारुख की शौक के बारे में बताते हैं. 'फारुख को देखकर आपको कभी लगेगा नहीं लेकिन वो हेल्थ को लेकर बहुत ही सजग था. रोजाना जिम में घंटों पसीने बहाया करता था. कुर्ते के नीचे जो उनकी बॉडी थी, वो पत्थर की तरह स्ट्रॉन्ग होती थी. खाने-खिलाने का भी बहुत शौकीन था. कहीं भी जाता, तो बिल वो ही भरता था. उसे गंवारा नहीं कि कोई और पेमेंट करे. भले ही हफ्ते में सातों दिन ही हम बाहर खा रहे हों. भले ही बहुत सिंपल था लेकिन उसकी फीमेल फ्रेंड्स काफी रहीं. खूबसूरत लड़कियां उसकी दोस्त बन जाती थीं.'

35 साल का वो कमिटमेंट आज भी बरकरार है
अपनी बॉन्डिंग पर राकेश कहते हैं- हमारे ग्रुप में करीब 8 से 9 लोग हैं, जिसमें फारुख भी शामिल था. अवतार गिल, पंक्षी थापड़, जैसे कई नाम शामिल है. हम पिछले 35 साल से लगातार एक ही रेस्त्रां में हर मंडे को मिलते रहे हैं. सांताक्रूझ में एक बार है, जहां हम उसी सेम टेबल पर 35 साल से बैठते आ रहे हैं. फारुख भी इस मीटिंग का हिस्सा हुआ करता था. उस टेबल से जुड़े कई किस्से रहे हैं. हालांकि हमने आज भी वो मीटिंग की कमिटमेंट बरकरार रखी है. बीच में जब कोविड आया, तो हम हफ्ते में तीन बार ऑनलाइन वीडियो के जरिए मिला करते थे. अब जब चीजें नॉर्मल हो चुकी हैं, तो हमने दोबारा वही जगह मीटिंग शुरू कर दी है. आज भी हर सोमवार हम दोस्तों की बैठकी लगती है. 

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