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उत्तराखंड: हरीश रावत और हरक सिंह में मिट रही दूरियां, चुनाव से पहले दिखाया 'भाईचारा'

कैबिनेट मंत्री हरक सिंह ने पूर्व सीएम हरीश रावत को अपना बड़ा भाई बताया तो हरीश ने हरक सिंह को फोन करके आपदा प्रभावित लोगों को मदद करने की गुहार लगाई. साथ ही कहा कि आपदा के समय सांप और नेवला भी एक हो जाते हैं और हम तो भाई हैं.

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हरीश रावत और हरक सिंह रावत
हरीश रावत और हरक सिंह रावत
स्टोरी हाइलाइट्स
  • हरक सिंह ने हरीश रावत को बड़ा भाई बताया
  • हरीश ने हरक सिंह को फोन करके बात की
  • क्या बदल रहे उत्तराखंड में सियासी समीकरण

उत्तराखंड में एक सप्ताह पहले तक एक-दूसरे को फूटी आंख न सुहा रहे कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और मौजूदा बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के बीच सियासी दूरियां मिटती नजर आ रही हैं. हरक सिंह ने हरीश रावत को अपना बड़ा भाई बताया. वहीं, पूर्व सीएम ने हरक सिंह को फोन करके आपदा प्रभावित लोगों को मदद करने की गुहार लगाई.

साथ ही कहा कि आपदा के समय सांप और नेवला भी एक हो जाते हैं और हम तो भाई हैं. इससे जाहिर होता है कि दोनों नेताओं के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलने लगी है. 

माना यह भी जा रहा है कि हरक सिंह रावत की हरीश रावत से नजदीकियां उत्तराखंड की सियासत में बड़ा फेरबदल कर सकती है. हरीश रावत ने भले ही हरक सिंह से आपदा गर्स क्षेत्रों को गांव में विस्थापन को लेकर बात की है, लेकिन उन्होंने जिस तरह से सांप और नेवले का उदाहरण देकर समझाने की कोशिश की है. इसके कई सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं, क्योंकि अभी तक दोनों ही नेता के बीच छत्तीस के आंकड़े रहे हैं. 

हरक सिंह ने हरीश रावत को भाई बताया

दरअसल, साल 2016 में हरीश रावत सरकार गिराने की पटकथा लिखने में हरक सिंह रावत की अहम भूमिका थी. इसीलिए हरीश रावत उसी वक्त से हरक सिंह रावत से बहुत ज्यादा खफा थे. इसीलिए हाल ही में पूर्व मंत्री यशपाल आर्य के कांग्रेस में घर वापसी करने के बाद हरक सिंह के भी पाला बदलने की कयास लगाए जा रहे थे, जिसके चलते हरीश रावत ने बगावत करने वाले नेताओं को अपराधी, पापी जैसे शब्दों से नवाजा था तो हरक सिंह ने भी उन्हें फंसाने और षड्यंत्र रचने का आरोप लगा डाला था. 

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उत्तराखंड की सियासत में अचानक अब दो दिन पहले हरक सिंह का हृदय परिवर्तन हो गया और उन्होंने हरीश रावत को बड़ा भाई करार देकर उनके शब्दों को खुद के लिए आशीर्वाद बता दिया. 2022 के चुनाव से ठीक पहले सियासी बिसात पर हरक सिंह और हरीश रावत के द्वारा चली जा रही सियासी चाल ने सूबे की राजनीति को गर्म कर दिया है. 

हरीश रावत ने हरक सिंह से बात की

हरीश रावत रविवार को रामनगर के पास स्थित चुकुम और सुंदखाल गांव में आपदा के पीड़ितों से मिलने पहुंचे थे. दोनों गांव के विस्थापन को लेकर फाइल लंबे समय से अटकी हुई है, जिसके बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने ग्रामीणों के सामने वनमंत्री को फोन कर कहा कि मैंने सोचा दोनों भाईयों को मिला दूं. इसके बाद गोदियाल ने फोन पूर्व सीएम को थमा दिया, जिसके बाद अपने अंदाज में बात करते हुए कहा कि हम दोनों तो भाई हैं और आज हमारे लोगों पर बड़ी आपदा आई है. ऐसे में इनकी मदद करें. इस तरह दोनों के बीच हुई इस बातचीत को लेकर अब सूबे की राजनीति में भी तमाम चर्चाएं हो रही हैं. 

दरअसल, उत्तराखंड में जिस तरह से राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं, उससे बीजेपी के लिए सत्ता में वापसी की चुनौती बढ़ती जा रही है. सत्ताविरोधी लहर दो सीएम बदलने के बाद भी खत्म नहीं हो रही है. किसान आंदोलन ने कुमाऊं के सियासी समीकरण को बिगाड़ कर रख दिया है. उत्तराखंड में अब तक हुए चार विधानसभा चुनाव में दो बार सत्ता कांग्रेस के हाथ रही है. हर बार सत्ता के बदलाव का मिथक है, तो कांग्रेस को भरोसा है कि 2022 में बाजी उसके हाथ रहेगी. वहीं, बीजेपी नेताओं के अंदर बेचैनी बढ़ती जा रही है. 

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बीजेपी नेताओं में क्यों बेचैनी

धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे यशपाल आर्य और उनके विधायक बेटे संजीव आर्य के बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो जाने के बाद मंत्री हरक सिंह रावत ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है. इसके अलावा बीजेपी विधायक उमेश शर्मा काऊ का रुख भी बदला-बदला नजर आ रहा. कैबिनेट मंत्री धनसिंह रावत की मौजूदगी में उमेश शर्मा काऊ अचानक अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं पर बरस पड़े. 

धनसिंह रावत मुख्यमंत्री धामी के साथ राहत कार्यों का जायजा लेने पहुंचे तो विधायक पूरण सिंह फत्रयाल मीडिया के सामने ही अपनी सरकार के मंत्रियों को कठघरे में खड़ा करने से नहीं चूके. विधायक का कहना था कि मंत्री सभी आपदा प्रभावित क्षेत्रों में क्यों नहीं पहुंच रहे हैं. बीजेपी नेताओं के बेचैनी के बीच हरक सिंह रावत और हरीश रावत के बीच भाईचारा बढ़ रहा है, जो सूबे की सियासत में एक नई इबारत लिख सकता है. 

बता दें कि 2016 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाने वाले नेता 2017 में खुद को मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शुमार कर रहे थे, लेकिन इन्हें मौका नहीं मिला. बीजेपी ने अपने पुराने नेता त्रिवेंद्र सिंह रावत को सत्ता की कमान सौंप दी, लेकिन चुनाव से पहले उन्हें हटाकर तीरथ सिंह रावत को सीएम बनाया और फिर 3 महीने के बाद जुलाई में बीजेपी ने युवा चेहरे के तौर पर पुष्कर सिंह धामी को सरकार की कमान सौंपने का निर्णय लिया. ऐसे में जिस उम्मीद के साथ बीजेपी में गए थे, उस पर तगड़ा झटका लगा है. इसीलिए नए सियासी समीकरण की तलाश में जुट गए हैं?  

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