उत्तर प्रदेश में पांच चरण के चुनाव के बाद अब अगले दो चरण के लिए पूर्वांचल में सियासी बिसात बिछ चुकी है. राजनीतिक दलों ने पूर्वांचल पर पूरा फोकस कर दिया है, जहां चुनावी रण में मोदी-योगी की परीक्षा तो होनी है. वहीं, पिछड़ी जाति के दिग्गज नेताओं का असल इम्तिहान भी होना है. ओमप्रकाश राजभर के कंधों पर साइकिल का बेड़ा पार लगाने की बड़ी जिम्मेदारी है तो अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद के कंधों पर बीजेपी का भार है. पूर्वांचल से तय होगा कि यूपी में पिछड़ों का पुरौधा कौन है?
यूपी की सियासत ओबीसी की इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. माना जाता है कि सूबे में करीब 50 फीसदी ये वोट बैंक जिस भी पार्टी के खाते में गया, सत्ता उसी की हुई. 2017 के विधानसभा और 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पिछड़ा वर्ग का अच्छा समर्थन मिला. नतीजतन वह केंद्र और राज्य की सत्ता पर मजबूती से काबिज हुई. ऐसे में बीजेपी और सपा दोनों ही पार्टियां ओबीसी वोटों का साधने के लिए तमाम जतन इस बार किए हैं.
यूपी के दो अंतिम चरणों के चुनाव 3 और 7 मार्च को है. इन दो चरणों में 19 जिलों के 111 विधानसभा सीटों पर वोटिंग होनी है. ये सभी सीटें पूर्वांचल के इलाके की है, जहां पर ओबीसी वोटर सबसे अहम है. ओबीसी जातीय आधार वाले ये दल भले ही अपने दम पर कोई करिश्मा न दिखा सके, लेकिन बड़ी पार्टियों के साथ हाथ मिलाकर किसी भी दल का सियासी खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. ऐसे में सपा और बीजेपी ने इन जातियों के बीच आधार रखने वाले दलों के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी हैं.
ओमप्रकाश राजभर की असल परीक्षा
ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा ने 2017 चुनाव में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी और 4 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. लेकिन, इस बार राजभर ने बीजेपी का साथ छोड़कर साइकिल की सवारी कर रखी है. ओमप्रकाश राजभर के कंधों पर सपा का बेड़ा पार लगाने की बड़ी जिम्मेदारी है. सुभासपा ने 18 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं, जिनमें से ज्यादातर सीटें पूर्वांचल के इलाके की हैं, जहां पर छठे और सातवें चरण में चुनाव होने हैं. ओमप्रकाश राजभर को पूर्वांचल में निषाद पार्टी और अपना दल (एस) से कड़ी लड़ाई लड़नी पड़ेगी. इस बार ओमप्रकाश और उनके बेटे अरविंद राजभर भी चुनाव मैदान में हैं.
सुभासपा का गठन तो 2002 में ही हो गया था, लेकिन खाता 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी से गठबंधन करने के बाद खुला. सुभासपा ने 8 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से चार पर जीत दर्ज की थी. आठों सीटों पर 34.14 फीसदी वोट मिला था. इस बार सुभासपा सपा के साथ मिलकर भाजपा के खिलाफ लड़ रही है, ओमप्रकाश की सियासत राजभर के अलावा बिंद, कुम्हार, प्रजापति, कुशवाहा, कोइरी जैसी पिछड़ी जातियों पर केंद्रित है और इन्हीं जातियों से जुड़े मुद्दे उठाकर मैदान में उतरते रहे हैं.
निषाद पार्टी का पूर्वांचल में होगा टेस्ट
डा. संजय निषाद की निषाद पार्टी की असल परीक्षा पूर्वांचल की सीटों पर होनी है. निषाद पार्टी पहली बार बीजेपी के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी है और 16 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार रखे हैं. संजय निषाद के कंधों पर पिछड़ों पर उनके प्रभाव को साबित करने की जिम्मेदारी रहेगी. संजय निषाद का दावा है कि 403 में से 160 सीटों पर निषाद समाज का प्रभाव है. इनमें से अधिकांश सीट पूर्वांचल में ही हैं. कोई भी दल उनके सहयोग के बिना चुनाव नहीं जीत सकता.
हालांकि 2017 के चुनाव में संजय निषाद ने 72 उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन सिर्फ 3.58 फीसदी वोट ही हासिल हुए थे और एक सीट पर जीत मिली थी. यह जीत भी बाहुबली विजय मिश्रा ने अपने बल पर दर्ज की थी. ऐसे में पूर्वांचल में कामयाबी हासिल करने के लिए संजय निषाद को कड़ी परीक्षा से गुजरना होगा.
अपना दल के दोनों गुटों की होगी परीक्षा
कुर्मी समुदाय के सियासी आधार रखने वाले अपना दल दो गुटों में बंटा हुआ है, जिसमें एक धड़ा केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की अगुवाई में बीजेपी के साथ है तो दूसरा कृष्णा पटेल की नेतृत्व में सपा के साथ है. पूर्वांचल में कुर्मी जाति की काफी संख्या है और अनुप्रिया को ही इनका सर्वमान्य नेता माना जाता है. 2017 के चुनाव में अनुप्रिया की पार्टी 11 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और उसके 9 प्रत्याशी जीते थे. अपना दल (एस) को 11 सीटों पर 39.21 फीसदी वोट मिले थे. इस बार अपना दल (एस) ने 17 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं. इसलिए अनुप्रिया के सामने इन सभी सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों को जिताने के अलावा उन सीटों पर भाजपा को भी चुनाव जिताने की चुनौती होगी, जिन पर कुर्मी मतदाता अधिक हैं.
वहीं, अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल और बहन पल्लवी पटेल सपा के साथ मिलकर चुनावी मैदान में है, जहां उन्हें खुद को साबित करने की चुनौती है. कृष्णा और पल्लवी दोनों चुनावी मैदान में उतरी है, जहां पर चौथे चरण में वोटिंग हो चुकी है और अब सपा के लिए उम्मीदवारों के लिए पूर्वांचल में चुनावी प्रचार की कमान संभाल ली है. ऐसे में देखना होगा कि कुर्मी वोटर किसके साथ जाता है और कौन उनका सर्वमान्य नेता कह लाता है.
संजय चौहान की पार्टी का इम्तेहान
पूर्वांचल के कई जिलों में इन्हें स्थानीय भाषा में चौहान जातीय को नोनिया के नाम से जाना जाता है. विशेषकर मऊ, गाजीपुर बलिया, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़, महराजगंज, चंदौली, बहराइच और जौनपुर के अधिकतर विधानसभा क्षेत्रों में इनकी संख्या अच्छी खासी है. पूर्वांचल की सियासत में भले ही डेढ़ फीसदी वोट हो, लेकिन मऊ और गाजीपुर की सीटों पर बड़ी ताकत रखते हैं. नोनिया समाज के नेता डा. संजय चौहान ने जनवादी पार्टी बना रखी है, जो सपा के साथ गठबंधन कर चुनाव में उतरी है. ऐसे में संजय चौहान की परीक्षा अगले दो चरणों के चुनाव में होना है.
स्वामी प्रसाद और दारा सिंह चौहान
ओबीसी समुदाय के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान की असल परीक्षा पूर्वांचल के इलाकी की सीटों पर होनी है. स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान बीजेपी छोड़कर सपा में आए है. पिछले चुनाव में बसपा से बीजेपी में आए थे और अपने-अपने समुदाय के वोट को बीजेपी के पाले में लाए थे, लेकिन इस बार पाला बदलकर सपा की साइकिल पर सवार हैं. दोनों नेता इस बार सपा के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य कुशीनगर के फाजिलनगर सीट सीटे हैं तो दारा सिंह चौहान घोसी सीट से उतरे हैं. ऐसे में इस चुनाव में खुद के साथ अपने जातीय के वोटों को भी सपा में ट्रांसफर कराने की चुनौती है.