कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र और गांधी परिवार के गढ़ माने जाने वाले रायबरेली की सदर सीट पर बीजेपी प्रत्याशी अदिति सिंह के खिलाफ कांग्रेस ने भले ही अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है. अदिति सिंह के खिलाफ सपा ने राम प्रताप यादव उर्फ आरपी यादव को टिकट दिया है. रायबरेली की सीट पर सपा और बीजेपी के बीच मुकाबला रोचक हो गया है.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मंगलवार को आरपी यादव को ए-बी फॉर्म दे दिया है, जिसके बाद वो बुधवार को रायबरेली सीट से अपना नामांकन पत्र दाखिल करेंगे. गांधी परिवार के गढ़ की इस सीट पर बीजेपी ने खाता खोलने के लिए कांग्रेस से विधायक रही अदिति सिंह को प्रत्याशी बनाया है. लेकिन, आरपी यादव के चुनावी मैदान में उतरने से अदिति सिंह के लिए अपने पिता की सियासी विरासत को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है.
जानिए आरपी यादव के बारे में...
किसान परिवार में जन्म लेने वाले आरपी यादव का पूरा नाम राम प्रताप यादव है और उनके पिता का नाम स्वर्गीय गरीब यादव है. आरपी यादव कुल तीन भाई है, जिनमें वो सबसे छोटे हैं. रायबरेली के राही ब्लाक के समोहिया गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई सरकारी स्कूल से की है. आरपी यादव ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत छात्र जीवन से की थी और सपा से जुड़े थे. वह समाजवादी युवजन सभा के जिला अध्यक्ष रहे चुके हैं. आरपी यादव 2009 में सपा के जिला अध्यक्ष भी बने. आरपी यादव ने पंचायत चुनाव के जरिए चुनावी राजनीति में किस्मत आजमाया था.
रायबरेली के राही ब्लॉक से साल 2000 में जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़े, लेकिन गणेश मार्य के हाथों 100 वोटों से हार गए. इसके बाद 2005 में राही के ब्लॉक प्रमुख बनने के मकसद से क्षेत्र पंचायत सदस्य (बीडीसी) का चुनाव लड़े. इस तरह उन्हें पहली जीत मिली, लेकिन राही के मौजूदा ब्लॉक प्रमुख धीरेंद्र सिंह यादव के परिवार के सियासी वर्चस्व के आगे वो नहीं टिक पाए. हालांकि, सपा प्रमुख अखिलेश यादव के करीबी होने के चलते आरपी यादव ने जिला में सपा की सियासत में अपना वर्चस्व बनाए रखा.
अखिलेश यादव ने साल 2012 के विधानसभा चुनाव में रायबरेली सदर सीट से आरपी यादव को टिकट दिया, पर बाहुबली अखिलेश सिंह के आगे वो नहीं जीत सके. हालांकि, 50 हजार वोट हासिल करने में जरूर कामयाब रहे और 2017 में सदर सीट गठबंधन के तहत कांग्रेस के खाते में चली गई. इसके चलते वो चुनाव नहीं लड़ सके और उन्होंने अखिलेश सिंह की बेटी और कांग्रेस प्रत्याशी रही अदिति सिंह को समर्थन किया था.
कौन हैं अदिति सिंह?
अदिति सिंह 2017 में रायबरेली सीट से विधायक बनने के बाद कांग्रेस के खिलाफ बगावती रुख अपना लिया था. हाल ही में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया और अब चुनावी मैदान में है. ऐसे में सपा ने आरपी यादव को एक बार फिर से रायबरेली सीट से प्रत्याशी बनाया है. ऐसे में आरपी यादव अगर रायबरेली सीट के सियासी समीकरण को साधने में कामयाब रहते हैं तो अदिति सिंह के लिए जीतना आसान नहीं होगा.
रायबरेली सीट पर करीब 65 हजार यादव मतदाता हैं. इसके अलावा 42 हजार मुस्लिम, 40 हजार ब्राह्मण और 45 हजार मौर्य समुदाय के मतदाता हैं. इतना ही नहीं, दलित वोटर करीब 75 हजार हैं, जिनमें सबसे ज्यादा पासी समुदाय से हैं.
मुस्लिम-यादव वोटों पर है आरपी यादव की नजर
आरपी यादव रायबरेली सीट पर यादव-मुस्लिम वोटों के साथ दूसरे समाज के कुछ वोटों को अपने पक्ष में करने की कवायद में है. रायबरेली सदर सीट पर मुस्लिम वोट अभी तक अखिलेश सिंह के पक्ष में हुआ करते थे. जो पिछले चुनाव में अदिति सिंह के साथ था. इस बार अदिति सिंह के बीजेपी में जाने से मुस्लिम वोटर फिलहाल सपा के साथ हैं. इसके अलावा स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी छोड़कर सपा में आने से मौर्य समाज के वोट भी आरपी यादव को मिलने की संभावना दिख रही है.
सपा, कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला
वहीं, अदिति सिंह के साथ ठाकुर और ब्राह्मण वोटों के साथ-साथ कायस्थ वोटर एकजुट माना जा रहा है, पर बीजेपी प्रत्याशी होने के चलते मुस्लिम छिटक गया है. इस तरह सपा और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला होता दिख रहा है. ऐसे में कांग्रेस अगर इस सीट पर ठाकुर या ब्राह्मण प्रत्याशी उतारती है तो रायबरेली सदर सीट पर चुनावी लड़ाई काफी रोचक हो सकती है.