उत्तर प्रदेश विधानसभा उपाध्यक्ष के चुनाव के ऐलान के साथ ही सूबे में राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ीं हैं. सपा के बागी विधायक नितिन अग्रवाल को बीजेपी चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है तो सपा के पास नंबर आंकड़े न होते हुई भी डिप्टी स्पीकर के कुर्सी पर नरेंद्र वर्मा को बैठाने की तैयारी कर रही है. ऐसे में उपाध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज होना नेता महज चार महीने ही अपने पद रह सकेगा. इसके बावजूद डिप्टी स्पीकर के पद पर सपा और बीजेपी दोनों ही पार्टियों की क्यों नजर है?
बीजेपी नितिन अग्रवाल को बना सकती प्रत्याशी
यूपी में चार महीने के बाद विधानसभा चुनाव के लिए सपा और बीजेपी के बीच शह-मात का सियासी खेल चल रहा है. ऐसे में 18 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा उपाध्यक्ष पद के लिए दोनों ही पार्टियां प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है. सपा छोड़कर बीजेपी में आए पूर्व सांसद नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल को प्रत्याशी बनाने की चर्चाएं है. माना जा रहा है कि बीजेपी चुनाव से पहले सूबे के वैश्य समुदाय को सियासी संदेश देने के मकसद से नितिन अग्रवाल को उपाध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाना चाहती है.
बीजेपी की राह में अपना दल (एस) बनी रोड़ा
बीजेपी नितिन अग्रवाल को विधानसभा उपाध्यक्ष पद के लिए प्रत्याशी बनाती है तो जीत निश्चित है. विधानसभा में बीजेपी के पास मौजदूा समय पर्याप्त नंबर से ज्यादा संख्या है. बीजेपी के इस सीधी राह में कलह-कोलाहल भी है. न सिर्फ विपक्षी सपा ने विरोध की तैयारी की है, बल्कि बीजेपी के सहयोगी अपना दल (एस) के सुर भी अलग ही हैं. अपना दल (एस) के कार्यकारी अध्यक्ष आशीष पटेल की ओर से योगी सरकार को पुनर्विचार का सुझाव देते हुए पिछड़े या दलित समाज से किसी को डिप्टी स्पीकर बनाने की मांग की है. उन्होंने कहा कि इससे बीजेपी सरकार के प्रति एक अच्छा संदेश जाएगा. पिछड़े और दलितों का विश्वास भी बढ़ेगा.
अखिलेश का खेलना चाहते सियासी दांव
सूबे के विधानसभा में सपा के पास ही नहीं बल्कि सभी विपक्षी दलों के विधायकों की संख्या मिलाने के बाद भी इतने नंबर संख्या नहीं है कि डिप्टी स्पीकर को जिता सकें. इसके बावजूद सपा प्रमुख अखिलेश यादव विधानसभा उपाध्यक्ष के चुनाव लड़ाने की तैयारी में है, जिसके लिए सीतापुर के महमूदाबाद से छह बार के विधायक नरेंद्र वर्मा को प्रत्याशी बनाया जा सकता है. अखिलेश भी इस बात को बाखूबी समझ रहे हैं कि वो चाहकर भी डिप्टी स्पीकर को नहीं जिता सकेंगे, लेकिन 2022 के चुनाव के देखते हुए सियासी संदेश देने का रणनीति है.
लखनऊ विश्वविद्यालय से पढ़े नरेंद्र सिंह वर्मा सपा के साफ सुथरे छवि वाले नेता माने जाते. उत्तर प्रदेश के मध्य और तराई इलाकों के कुर्मी समुदाय में उनकी गहरी पैठ है. ऐसे में सपा नरेंद्र वर्मा को अधिकृत विधानसभा उपाध्यक्ष के पद पर प्रत्याशी बनाकर बीजेपी के परंपरागत माने जाने वाले कुर्मी वोटों को अपने पक्ष में करने का दांव माना जा रहा है. सपा लगातार कुर्मी वोटरों को साधने की कवायद में लगी है, जिसके लिए प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम की अगुवाई में एक यात्रा भी यूपी में चल रही है.
चार महीने का बचा है कार्यकाल
हालांकि, सपा और बीजेपी दोनों ही पार्टियां यह समझ रही है कि विधानसभा उपाध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने वाला नेता महज चार महीने ही अपने पद पर रह सकेगा. 2022 के चुनाव के बाद डिप्टी स्पीकर नहीं रह सकेगा. इतना ही नहीं चार महीने के दौरान अब सिर्फ शीतकालीन सत्र ही बचा है, जो उंगली पर गिनती के दिन ही चल सकेगा. इसी दौरान सूबे में विधानसभा चुनाव प्रचार अपने पूरे चरम पर होगा, जिसके चलते विधायक सदन से ज्यादा अपनी सीट जीतने के लिए मशक्कत कर रहे होंगे. ऐसे में विधानसभा उपाध्यक्ष के चुनाव के जरिए पार्टियां सियासी संदेश देने का मकसद साध रही हैं.