उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के औपचारिक ऐलान के साथ ही यहां बड़ा सियासी उलटफेर हो गया है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने योगी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है. ओबीसी के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के साथ ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उनके साथ तस्वीर भी ट्वीट कर दी है. जिससे स्वामी प्रसाद मौर्य के भविष्य का रास्ता भी स्पष्ट हो गया है.
इतना ही नहीं, स्वामी प्रसाद के साथ-साथ मंत्री दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी के भी बीजेपी को अलविदा कह कर सपा में शामिल होने की अटकलें हैं. साथ ही स्वामी समर्थक कुछ विधायक भी बीजेपी का साथ छोड़ सकते हैं. बीजेपी नेतृत्व में इसे लेकर चिंता बढ़ गई है.
सूबे के सियासी गलियारों में कई दिनों से अटकलें तेज थी कि स्वामी प्रसाद मौर्य बीजेपी को छोड़ अखिलेश की साइकिल पर सवार हो सकते हैं. ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य ने मंगलवार को राज्यपाल को पत्र लिखकर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने कहा कि दलितों, पिछड़ों, किसानों, बेरोजगारों, नौजवानों, एवं छोटे लघु और मध्यम श्रेणी के व्यापारियों की घोर उपेक्षा के चलते मंत्री पद से इस्तीफा दे रहा हूं.
स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी छोड़ने से पार्टी को तगड़ा झटका लगा है. ऐसे में सवाल उठता है कि स्वामी प्रसाद मोर्य ने आखिर बीजेपी को क्यों छोड़ा?
क्यों छोड़ी बीजेपी?
दरअसल, 2017 के चुनाव में बीजेपी को सत्ता में पहुंचाने का श्रेय पिछड़ी जातियों को जाता है और इस बार अखिलेश यादव हर हाल में पिछड़ी जातियों को अपनी तरफ मोड़ने में लगे हैं. यही वजह है कि अखिलेश ने छोटे-छोटे दलों से गठबंधन के अलावा पिछड़े नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कराने का अभियान छेड़ रखा है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने 2017 के चुनाव में बीजेपी में ओबीसी जातियों को जोड़ने में अहम भूमिका अदा की थी, लेकिन उन्हें बसपा जैसा सियासी कद हासिल नहीं हो सका.
मायावती के रहे हैं करीबी
स्वामी प्रसाद मौर्य ने लोकदल से अपना सियासी सफर शुरू किया था और जनता दल में रहे, लेकिन राजनीतिक कामयाबी बसपा में शामिल होने के बाद मिली. बसपा से चार बार विधायक रहे और एक बार एमएलसी बने जबकि बीजेपी से 2017 में विधायक चुने गए थे. मायावती के करीबी नेताओं में स्वामी प्रसाद मौर्य का नाम आता था. वो बसपा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय महासचिव तक रहे, लेकिन 2017 के चुनाव से पहले उन्होंने बसपा छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था.
बीजेपी से स्वामी प्रसाद मौर्य और उनके बेटे को टिकट मिला. स्वामी खुद तो जीत गए, लेकिन उनका बेटा विधायक नहीं बना. स्वामी प्रसाद जीतकर योगी कैबिनेट में मंत्री बने, लेकिन बसपा की तरह उन्हें बीजेपी में सियासी अहमियत नहीं मिल सकी. इतना ही नहीं स्वामी प्रसाद शुरू से दलित, ओबीसी की राजनीति करते रहे हैं, जिसके चलते बीजेपी के खांचे में भी खुद को फिट नहीं कर पा रहे थे. इसके चलते बीजेपी में रहते हुए कशमकश में थे, लेकिन चुनाव से ठीक पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया है.
बीजेपी से सांसद हैं बेटी
पिछले दिनों स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी व बदायूं से सांसद संघमित्रा मौर्य लखनऊ के बीजेपी कार्यक्रम में जब बोलने के लिए खड़ी हुई, उसी दौरान टोका-टोकी की गई थी. संघमित्रा मौर्य ने उसी दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के सामने ही अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए माइक छोड़ दिया था. यह बीजेपी का मौर्य-कुशवाहा-सैनी समाज का सम्मेलन था. हालांकि बाद में उन्हें मना कर वापस भाषण देने के लिए कहा गया. इसी दिन तय हो गया था कि स्वामी प्रसाद मौर्य अब ज्यादा दिन बीजेपी में नहीं रहेंगे.
वहीं, स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कृष्ट मौर्य रायबरेली जिले की ऊंचाहार सीट से पिछले बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे. हालांकि, बहुत कम अंतर से वह सपा से चुनाव हार गए थे. ऊंचाहार में उन्हें न तो बीजेपी संगठन का साथ मिला था और न ही संघ के लोग उनकी मदद कर सके थे. बीजेपी का हार्डकोर वोटर माने जाने वाले ठाकुर और ब्राह्मण समाज का वोट उत्कृष्ट मौर्य को नहीं मिला था.
बेटे को जिताने की चिंता
वहीं, ऊंचाहार सीट पर बीजेपी के सियासी समीकरण को देखते हुए स्वामी प्रसाद के बेटे का जीतना बेहद मुश्किल नजर आ रहा था. ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कृष्ट मौर्य के जीतने की संभावना समाजवादी पार्टी से बनती दिख रही है, क्योंकि इस सीट पर यादव, मौर्य और मुस्लिम समाज का वोट अच्छा खासा है. ऐसे में तीन समाज के वोटों के जरिए उत्कृष्ट मौर्य के विधानसभा पहुंचने का सपना साकार हो सकता है.
स्वामी प्रसाद मौर्य की उम्र करीब 68 साल की हो गई है. ऐसे में वो अपने बेटे का सियासी कैरियर हर हाल में सुरक्षित करना चाहते हैं, जिसके लिए बीजेपी में रहते हुए यह संभव नहीं था. सूत्रों के मुताबिक बीजेपी एक बार फिर स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे को ऊंचाहार सीट से टिकट देने को तैयार है, स्वामी प्रसाद मौर्य को लगता है कि उनके लिए समाजवादी पार्टी के लिए ही सबसे मुफीद है.
स्वामी का सियासी कद
स्वामी प्रसाद मौर्य ओबीसी के कद्दावर नेता हैं. वो दलित और पिछड़ों की राजनीति करते रहे हैं. बसपा में कभी नंबर दो की हैसियत रही है. यूपी में मौर्य समाज के बीच अच्छी खासी पकड़ मानी जाती है. इसी का नतीजा है कि प्रतापगढ़ में जन्म लेने के बाद उन्होंने अपनी सियासी कर्मभूमि के लिए रायबरेली को चुना और ऊंचाहार सीट से दो बार विधायक रहे. इसके बाद पूर्वांचल के कुशीनगर की पडरौना सीट से तीसरी बार विधानसभा पहुंचे और अपनी बेटी को बदायूं से सांसद बनवाया. वहीं, अब अपनी पुरानी सीट से बेटे उत्कृष्ट मौर्य को विधायक बनाने के लिए सपा की साइकिल पर सवार हो गए हैं.