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लंदन से पढ़ाई-किसानों की लड़ाई... चौधरी चरण सिंह की विरासत बढ़ाने में जुटे जयंत

Jayant Singh RLD: जयंत सिंह ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से अंडरग्रेजुएट किया, इसके बाद वो लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़े. जयंत ने दिल्ली में जॉब भी की. काफी दिनों तक पार्टी के लिए प्रचार करने के बाद जयंत ने 2009 में पहला चुनाव लड़ा.

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RLD के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत सिंह
RLD के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत सिंह
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 2009 में मथुरा से लड़ा था पहला लोकसभा चुनाव
  • 2012 में जयंत ने विधानसभा चुनाव भी लड़ा, जीता
  • पिता अजित सिंह की मौत के बाद RLD अध्यक्ष बने

2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जिस राष्ट्रीय लोकदल के खाते में महज एक सीट आई थी वो पार्टी 2022 के चुनाव में एक अहम कड़ी नजर आ रही है. फिलहाल, इसके सूत्रधार हैं चौधरी जयंत सिंह.

राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत सिंह (Jayant Singh) उस राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं जो उनके दादा चौधरी चरण सिंह ने शुरू की थी. चौधरी चरण सिंह देश के पूर्व प्रधानमंत्री रहे और उनकी राजनीति के केंद्र में हमेशा किसान रहे.

चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) की विरासत को पहले चौधरी अजित सिंह (Chaudhary Ajit Singh) ने आगे बढ़ाया और उनके देहांत के बाद अब बेटे जयंत अपने दल के मिशन को परवाज दे रहे हैं. वो कह रहे हैं कि ये चुनाव चौधरी चरण सिंह की विरासत का है. और इसी नारे के साथ वो किसानों को एक कर रहे हैं, सभी संप्रदायों को एक कर कर रहे हैं और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी को चुनौती दे रहे हैं.

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जयंत सिंह को आरएलडी की कमान ऐसे वक्त में मिली जब पार्टी राजनीतिक तौर पर शून्य पर खड़ी थी. लेकिन इससे पहले उन्होंने पार्टी के सुनहरे पल भी देखे. 

2022 चुनाव में अखिलेश यादव और जयंत सिंह साथ-साथ

27 दिसंबर 1978 को जब जयंत सिंह का जन्म हुआ तब उनके दादा का केंद्र की राजनीति में सिक्का चल रहा था. वो यूपी के मुख्यमंत्री रह चुके थे, और उसके बाद केंद्र सरकार में वित्त और गृह मंत्रालय संभालते हुए वो डिप्टी पीएम और फिर 1979 में पीएम बने. जयंत सिंह का जन्म अमेरिका के टेक्सास में हुआ और इसका जश्न दिल्ली स्थित 12 तुगलक रोड पर चौधरी चरण सिंह की मौजूदगी में मनाया गया. राजनीतिक किस्सों में ये एक मशहूर पार्टी मानी जाती है जहां इंदिरा गांधी समेत अन्य बड़े नेताओं का जमावड़ा लगा था.

जयंत सिंह का परिवार 

जयंत के पिता स्वर्गीय चौधरी अजित सिंह राजनीति में आने से पहले अमेरिका में काम करते थे. वो IIT खड़गपुर से पढ़े हुए थे. वो एक बेहतरीन कंप्यूटर साइंटिस्ट थे और उस वक्त IBM कंपनी में काम करने वाले कुछ चुनिंदा भारतीयों में से थे. जयंत की मां का नाम राधिका सिंह है और जयंत की दो बहने हैं. 

जयंत की शादी चारू से हुई है और इनके घर में दो बेटियां हैं. चारू यूं तो चुनाव प्रचार के दौरान सार्वजनिक मंचों पर नजर आ जाती हैं लेकिन संगठन की राजनीति में वो सक्रिय नहीं हैं. जयंत के लिए चुनाव प्रचार करती रही हैं. 

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जयंत सिंह की एजुकेशन

जयंत सिंह भी अपने पिता की तरह ही एक हाईली एजुकेटेड शख्सियत हैं. जयंत ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के श्री वेंकटेश्वर कॉलेज से अंडरग्रेजुएट किया. जयंत ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से 2002 में मास्टर ऑफ फाइनेंस किया है. उन्होंने पॉलिटिकल साइंस में भी पढ़ाई की.
  
इसके बाद उन्होंने जॉब भी की. करीब दो साल जयंत ने दिल्ली में एक इंवेस्टमेंट बैंक में काम किया. यानी जयंत एक राजनेता होने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था और बैंकिंग सिस्टम के अच्छे जानकार भी हैं. 

जयंत ने बचपन से ही घर में राजनीतिक गतिविधियां देखी थीं, लिहाजा उनका भी मन इस तरफ चला गया. जयंत ने इंटरव्यूज में बताया है कि 1996 में एक उपचुनाव से उन्होंने चुनाव प्रचार में जाना शुरू किया था. इसके बाद 2002 के यूपी विधानसभा चुनाव में उन्होंने सही अंदाज में कैंपेनिंग की. इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में भी जयंत प्रचार करते रहे और सक्रिय हो गए.  2009 के लोकसभा चुनाव में जयंत ने खुद लड़ाई लड़ी.

जयंत को भारत की नागरिकता भी इस चुनाव से कुछ वक्त पहले ही मिली थी. दरअसल, जयंत अमेरिका में पैदा हुए थे, लिहाजा उनके पास वहीं का पासपोर्ट था. जयंत ने इस बारे में एक इंटरव्यू में बताया है कि मैच्योर होने के बाद एक प्रक्रिया के तहत उन्होंने भारत की नागरिकता के लिए आवेदन किया था, जिसके कुछ साल लग गए और अंतत: 2007 में उन्हें भारत की नागरिकता मिली.

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मथुरा से लड़ा पहला चुनाव

जयंत ने अपने जीवन का पहला चुनाव 2009 में मथुरा लोकसभा सीट से लड़ा. इस चुनाव में उन्हें पौने चार लाख से ज्यादा वोट मिले. दूसरे नंबर बसपा के श्याम सुंदर शर्मा और तीसरे नंबर पर कांग्रेस के मानवेंद्र सिंह रहे. सांसद रहते हुए संसद के अंदर और बाहर जयंत किसानों की आवाज उठाते रहे. उन्होंने जमीन अधिग्रहण बिल के खिलाफ खुलकर अपने विचार रखे. नोएडा, मथुरा, हाथरस, आगरा, अलीगढ़ समेत कई इलाकों में आवाज उठाई. इसी दौरान भट्टा पारसौल आंदोलन भी हुआ. वो 2011 में जमीन अधिग्रहण पर प्राइवेट मेंबर बिल भी लाए. खेती-किसानी से जुड़े मुद्दों को जयंत दूसरे मंचों पर भी उठाते रहे हैं. 

2012 में लड़ा विधानसभा चुनाव

यूपी में जब 2012 का विधानसभा चुनाव हुआ तो जयंत सिंह ने मथुरा की ही मांट सीट से चुनाव लड़ा. जयंत ने इस चुनाव में भी जीत दर्ज की. हालांकि, वो ये चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे. जयंत ने एक इंटरव्यू में बताया था कि चौधरी अजित सिंह के कहने पर उन्होंने ये चुनाव लड़ा था और सिर्फ एक जनसभा की थी. जयंत की पत्नी ने यहां पूरा चुनाव प्रचार संभाला था.  

हालांकि, 2014 में जब मोदी लहर चली तो जयंत भी उसमें बह गए. मथुरा से बीजेपी प्रत्याशी हेमा मालिनी ने उन्हें हरा दिया. बागपत सीट से जयंत के पिता चौधरी अजित सिंह भी हार गए. ये वो वक्त भी था 2013 का मुजफ्फरनगर दंगा हो चुका था और इसका असर पश्चिमी यूपी के चुनाव पर भी पड़ा. लोकसभा के बाद  विधानसभा चुनाव भी इसका असर पड़ा और 2017 में आरएलडी महज छपरौली सीट ही जीत पाई.

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इस चुनाव में सपा और कांग्रेस मिलकर लड़ी थी. आरएलडी अकेली पड़ गई थी. जयंत सिंह ने बताया था कि उनकी भी चाहत थी कि गठबंधन का हिस्सा बनें लेकिन ऐसा नहीं हो सका था. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी आरएलडी का ग्राफ नहीं उठ पाया. चौधरी अजित सिंह भी मुजफ्फरनगर सीट से हार गए. 

2021 में मिली RLD की कमान

इसके बाद चौधरी अजित सिंह के जीवन का सफर भी लंबा नहीं चल सका और वो मई 2021 में कोविड की चपेट में आकर स्वर्गवास हो गया. ये आरएलडी के लिए एक बड़ी हानि थी. ये जयंत और आरएलडी परिवार के दुख की घड़ी थी लेकिन संगठन को चलाने के लिए एक नेतृत्व की आवश्यकता भी थी. लिहाजा, जयंत को ही आरएलडी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान सौंपी गई. 

चौधरी अजित सिंह का जाना एक बड़ी क्षति जरूर थी, लेकिन अपने आखिरी दिनों में वो कुछ ऐसा कर गए जो आज पार्टी की ताकत बनी हुई है. दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर जब किसान आंदोलन को खत्म करने की खबर फैली और किसान नेता राकेश टिकैत के आंसू मीडिया के जरिए पूरे देश ने देखे तो चौधरी अजित सिंह एक्टिव हो गए. उन्होंने राकेश टिकैत को फोन किया और सहारा दिया. बताया जाता है कि चौधरी अजित सिंह ने इलाके से किसानों का हुजूम रवाना कर दिया. पार्टी नेताओं को बॉर्डर पर भेज दिया. जयंत भी खुद वहां गए और किसानों की आवाज उठाई. गाजीपुर की इस घटना के बाद किसान आंदोलन ने ऐसी मजबूती पकड़ी कि मौजूदा चुनाव में भी उसका असर दिखाई दे रहा है. 

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अब जयंत किसानों की आवाज उठा रहे हैं और भाईचारा कायम करने की कोशिश कर रहे हैं. वो हाथरस की पीड़िता को इंसाफ के लिए भी आवाज उठाते हैं, जब पूरे देश ने देखा कि कैसे यूपी पुलिस ने उनपर लाठियां बरसाईं. लखीमपुर में जब किसानों को जीप से कुचला गया तो जयंत प्रशासन की पाबंदी के बीच करीब 15 घंटा पैदल चलकर वहां पहुंच गए.  

कुल मिलाकर किसान आंदोलन के सहारे जयंत सिंह अपनी राजनीति को एक बार फिर जिंदा करने का प्रयास कर रहे हैं और उनकी नजर किसान पॉलिटिक्स को अन्य राज्यों तक ले जाने पर भी है. 


 

 

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