मोहम्मद आजम खान उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक बड़ा चेहरा हैं. AMU की छात्र राजनीति से निकलकर आजम खान ने प्रदेश की सियासत में अपनी धाक जमाई. रामपुर में नवाब परिवार को चुनौती दी और लगातार सियासी शिकस्त दी. प्रदेश में खुद को एक मुस्लिम चेहरे के रूप में स्थापित किया. सपा राज में कहा जाता था कि आजम खान को मुख्यमंत्री जैसी ताकत हासिल रहती है. वक्त का पहिया घूमा है तो आजम खान महीनों से जेल में बंद हैं. पूरा परिवार सलाखों के पीछे जा चुका है.
14 अगस्त, 1948 को आजम खान का जन्म यूपी के रामपुर में हुआ था. मोहम्मद मुमताज खान के सामान्य परिवार में जन्मे आजम खान ने खुद को तालीम से जोड़े रखा. जमकर पढ़ाई की. बीए (ऑनर्स) और एमए (ऑनर्स) की पढ़ाई की. LLM की पढ़ाई की और कानून की डिग्री ली.
AMU में पढ़ते हुए ही आजम खान ने राजनीति शुरू कर दी. छात्रसंघ का चुनाव भी जीते. कानून की डिग्री थी और उर्दू के जानकार थे, ऊपर से AMU के माहौल में जिंदगी को समझने वाले आजम खान एक बेहतर वक्ता बन गए. धीरे-धीरे उनकी पहचान बनने लगी. कहा जाता है कि आजम खान के अल्फाज कितने भी तीखे हों, बोलने का अंदाज बहुत मीठा होता है.
आजम खान के परिवार में कितने लोग?
17 मई 1981 को आजम खान की शादी डॉक्टर तंजीन फातिमा से हुई. हरदोई में जन्मीं तंजीन फातिमा भी AMU से पढ़ी हैं. उन्होंने एमए, एमफिल के बाद पीएचडी भी की. इसके बाद बतौर एसोसिएट प्रोफेसर पॉलिटकल साइंस भी पढ़ाया. आजम और तंजीन के दो बेटे अब्दुल्ला और अदीब हैं. अब्दुल्ला आजम भी राजनीति में सक्रिय हैं, जबकि दूसरे बेटे अदीब रामपुर में बाकी कामकाज संभालते हैं.
आजम खान ने रामपुर में नवाबों को दी चुनौती
आजम खान ने रामपुर में अपनी पैदाइश से ही नवाब परिवार का कब्जा देखा था. राजनीतिक और सामाजिक तौर पर नवाब परिवार और उनके समर्थकों का ही दबदबा था. आजम खान ने इन सबको चुनौती दी.
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1977 में जब देश आपातकाल का दंश झेल रहा था, आजम खान ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा. हालांकि, इस चुनाव में उन्हें कांग्रेस के शन्नू खान से शिकस्त मिली, लेकिन आजम खान ने हार नहीं मानी.
आजम खान कितनी बार बने विधायक?
1980 में आजम खान जनता पार्टी के टिकट पर लड़े और जीते. ये पहली बार था जब आजम खान विधायक बने. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1985 में लोक दल के टिकट पर विधायक बने. 1989 में जनता दल के टिकट पर निर्वाचित हुए और पहली बार यूपी सरकार में मंत्री बने.
इसके बाद 1991, 1993, 2002, 2007, 2012 और 2017 में भी आजम खान ने विधानसभा चुनाव में अपने विरोधियों को बैक-टू बैक शिकस्त दी. हालांकि, 1996 में उन्हें हार का स्वाद भी चखना पड़ा. कांग्रेस के अफरोज अली खान ने आजम खान को हराया. ये चुनाव हारे तो उन्हें राज्यसभा सदस्य बना दिया गया. कुल मिलाकर आजम खान नौ बार विधायक बन चुके हैं. एक बार राज्यसभा सांसद और एक बार 2019 में लोकसभा सांसद निर्वाचित हुए हैं. अब 2022 में वो रामपुर सीट से ही जेल में रहते हुए भी विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं.
सपा में कब शामिल हुए आजम खान?
आजम खान का राजनीतिक करियर जनता दल से होते हुए लोकदल और जनता पार्टी तक चला. फिर अक्टूबर 1992 में मुलायम सिंह यादव ने जब अपनी अलग समाजवादी पार्टी बनाई तो आजम खान उनके साथ जुड़ गए. देशभर में मंडल बनाम कमंडल की राजनीति चल रही थी. मुलायम सिंह पिछड़ों का झंडा बुलंद कर रहे थे, लिहाजा आजम खान भी एक मुस्लिम चेहरे के रूप में उनसे जुड़ गए. और ऐसा जुड़े कि हमेशा मुलायम सिंह के राइट हैंड बनकर रहे. उनकी सरकार में मंत्री रहे. हालांकि, 2009 में दोनों के बीच अनबन भी देखने को मिली. जया प्रदा के टिकट को लेकर आजम खान पार्टी से नाराज रहे. पार्टी से निष्कासन तक की नौबत आ गई लेकिन ये सब बस कुछ वक्त ही चला और मुलायम सिंह ने उन्हें मनाकर फिर अपने पास बुला लिया.
देश और प्रदेश की सियासत में कुछ भी चल रहा हो, रामपुर में आजम खान का सितारा हमेशा बुलंद रहा है. अपने साथ-साथ उन्होंने अपनी पत्नी और बेटे अब्दुल्ला को भी चुनावी राजनीति में उतार दिया है और वो दोनों भी जीत हासिल कर रहे हैं.
हालांकि, 2017 में यूपी में योगी सरकार आने के बाद से पूरा परिवार संकट में आ गया है. आजम खान ने रामपुर में जो मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी बनवाई वो विवादों में आ गई. आजम खान के खिलाफ जमीन से जुड़े केस लग गए. इसके अलावा भी कई केस लगे. बेटे अब्दुल्ला पर गलत बर्थ सर्टिफिकेट का आरोप लगा, पत्नी पर भी प्रॉपर्टी से जुड़े केस लगे. कुल मिलाकर पूरा परिवार घिर गया. बेटे की विधायकी गई. खुद फरवरी 2020 से जेल में हैं. बेटे और पत्नी भी जेल में लंबे समय तक रह चुके हैं, फिलहाल बेल पर बाहर हैं.
ये पहली बार हो रहा है जब राजनीतिक तौर पर बहुत कुछ हासिल कर चुके आजम खान को जीवन के इस पड़ाव में मुश्किल वक्त देखने को मिला है. राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों के बीच कहा जाने लगा है कि अगर 2022 में भी यूपी में सपा की सरकार नहीं बनती तो इस बात की संभावना कम है कि आजम खान और उनके परिवार को राहत मिल पाए.