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Explainer: जानिए पंजाब विधानसभा चुनावों को कितना प्रभावित करेगा किसान आंदोलन?

भाजपा ने भले ही अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत कर दी हो लेकिन किसानों की नाराजगी के चलते पंजाब में प्रचार करना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है. किसान संगठनों में कृषि कानूनों को लेकर इतनी ज्यादा नाराजगी है कि प्रदर्शनकारी भाजपा नेताओं की भनक लगते ही वहां जमा हो जाते हैं.

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कृषि कानूनों को लेकर दिवाली के आसपास हो सकता है फैसला
  • प्रदर्शनकारियों ने तहस-नहस कर दिया हेलीपैड
  • 'नवा पंजाब' चुनाव प्रचार अभियान पर भी किसान संगठनों की नजर

कृषि कानूनों को लेकर किसान संगठनों का विरोध झेल रही भारतीय जनता पार्टी ने गुरुवार को चंडीगढ़ में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों के प्रचार अभियान का डंका बजा दिया. इस अभियान को 'नवा पंजाब ,भाजपा दे नाल' का नाम दिया गया है.

इस प्रचार अभियान की शुरुआत करते हुए पंजाब चुनाव प्रमुख गजेंद्र सिंह शेखावत कृषि कानूनों को लेकर किसान संगठनों की नाराजगी पर पूछे गए सवालों के जवाब देने से बचते रहे. हालांकि शेखावत ने कहा कि बातचीत के लिए हमेशा सरकार के दरवाजे खुले हैं और पार्टी किसानों से पहले ही 11 बार बातचीत कर चुकी है.

भाजपा ने भले ही अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत कर दी हो लेकिन किसानों की नाराजगी के चलते पंजाब में प्रचार करना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है. किसान संगठनों में कृषि कानूनों को लेकर इतनी ज्यादा नाराजगी है कि प्रदर्शनकारी भाजपा नेताओं की भनक लगते ही वहां जमा हो जाते हैं.

गुरुवार को एक तरफ जहां भाजपा के शीर्ष नेता चंडीगढ़ पंजाब भाजपा कार्यालय में 'नवा पंजाब भाजपा दे नाल' अभियान की शुरुआत कर रहे थे वही प्रदर्शनकारी किसान काफी संख्या में वहां पहुंच गए और नारेबाजी शुरू कर दी. हालांकि बाद में प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया. 

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केवल यही नहीं मोहाली के करीब एक निजी विश्वविद्यालय में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का एक कार्यक्रम था जिसकी भनक लगते ही किसान वहां भारी संख्या में पहुंच गए. जिस हेलीपैड पर राजनाथ सिंह का हेलीकॉप्टर उतरना था उसे भी प्रदर्शनकारियों ने तहस-नहस कर दिया. हालांकि इस कार्यक्रम को पहले से ही रद्द कर दिया गया था.

बीजेपी के कार्यक्रमों को कई बार निशाना बना चुके हैं प्रदर्शनकारी

पंजाब में कृषि कानूनों के नाम पर शुरू हुए प्रदर्शन की आड़ में कई बार प्रदर्शनकारी अपनी सीमाएं लांघ चुके हैं. 11 जुलाई 2021 को प्रदर्शनकारियों ने राजपुरा में एक दर्जन बीजेपी नेताओं को बंधक बना लिया था. 27 मार्च 2021 को भाजपा के अबोहर विधायक अरुण नारंग के साथ न केवल मारपीट की गई बल्कि उनके कपड़े तक फाड़ दिए गए.

प्रदर्शनकारियों ने 10 फरवरी 2021 को फिरोजपुर में पंजाब बीजेपी अध्यक्ष अश्विनी शर्मा के वाहन पर हमला बोल दिया गया हालांकि अश्विनी शर्मा को चोट नहीं आई. इसी साल फरवरी माह में हुए नगर निकाय चुनावों में भी बीजेपी को किसानों के गुस्से को झेलना पड़ा था. विरोध इतना ज्यादा था कि पार्टी के प्रत्याशी ठीक से चुनाव प्रचार भी नहीं कर पाए.

बीजेपी नेताओं पर हुए प्रदर्शनकारियों के हमलों की शुरुआत 1 जनवरी 2021 को ही हो गई थी जब होशियारपुर मैं पूर्व कैबिनेट मंत्री तीक्ष्ण सूद के घर के बाहर गोबर से भरी एक ट्रैक्टर ट्रॉली उड़ेल दी गई.

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हालांकि बीजेपी नेताओं ने इन घटनाओं के पीछे सत्तारूढ़ कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों का हाथ होने के आरोप लगाए थे. किसान प्रदर्शनकारी बीजेपी के अलावा शिरोमणि अकाली दल, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के समारोहों को भी निशाना बना रहे हैं लेकिन बीजेपी के कार्यक्रम सबसे पहले निशाने पर लिए जा रहे हैं.

किसान आंदोलन का चुनावों पर नहीं होगा ज्यादा असर: विशेषज्ञ

सुनने में यह तर्क भले ही अटपटा लग रहा हो, लेकिन पंजाब से ताल्लुक रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक निदेशक इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन डॉ प्रमोद कुमार के मुताबिक किसान संगठनों में भले ही कृषि कानूनों को लेकर नाराजगी हो, लेकिन विधानसभा चुनावों पर इसका कोई ज्यादा असर नहीं होगा. उनका मानना है कि मत किसे गिरेगा यह इस बात पर निर्भर करेगा कि मतदाता कौन सी जाति ,धर्म और संप्रदाय से ताल्लुक रखता है. उनके मुताबिक पंजाब के मतदाता धार्मिक और जातीय आधार पर बंटे हुए हैं.

यही कारण है कि बीजेपी जाट समुदाय को छोड़कर दलित और हिंदू वोट बैंक मजबूत करने में लगी हुई है. इसके अलावा भाजपा सिख समुदाय के लिए गए कई फैसलों पर भी अपनी पीठ थपथपा रही है. इन फैसलों में दरबार साहिब (स्वर्ण मंदिर परिसर) में विदेशों से आने वाले चढ़ावे की FCA की मंजूरी देना, लंगर पर जीएसटी खत्म करना, आतंकवाद के दौरान बनी काली सूची से सिखों को हटाना और करतारपुर कॉरिडोर की शुरुआत करना शामिल है.

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कृषि कानूनों को लेकर दिवाली के आसपास हो सकता है फैसला

उधर भाजपा से जुड़े सूत्र बता रहे हैं कि केंद्र सरकार दिवाली के आसपास कृषि कानूनों को लेकर कोई बड़ा फैसला ले सकती है. पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और भाजपा नेताओं के बीच हो रही बैठकों को भी कृषि कानूनों से जोड़कर देखा जा रहा है. भाजपा कैप्टन अमरिंदर सिंह के जरिए किसानों तक पहुंचना चाहती है. कैप्टन खुद भी कई बार कह चुके हैं कि बीजेपी से उनका गठबंधन सिर्फ तभी संभव होगा अगर किसान आंदोलन खत्म होता है. कुल मिलाकर कैप्टन का राजनीतिक भविष्य भी आप इस फैसले पर निर्भर करेगा. अगर कैप्टन इस फैसले को करवाने में अहम भूमिका निभाते हैं तो वह किसानों के मत आकर्षित कर सकते हैं.

 

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