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Punjab Election: 20 की उम्र में थामा बल्ला और फिर सियासी पारी, नवजोत सिंह सिद्धू के जीवन का करिश्माई सफर

Punjab Assembly Election: पंजाब की पॉलिटिक्स में एक नाम बेहद महत्वपूर्ण है, वह है प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू का. सिद्धू अपने बगावती तेवरों के लिए जाने जाते हैं. क्रिकेट हो या राजनीति, वह हर जगह मुखर रहे हैं.

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पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (फाइल फोटो)
पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • साल 1987 में वर्ल्डकप में चयन होने के बाद बदली किस्मत
  • 1983 में सिद्धू ने एक क्रिकेटर के तौर पर डेब्यू किया था
  • सिद्धू ने 2004 में राजनीति की पिच पर कदम रखा था

Punjab Assembly Election: पटियाला का वो लड़का जो अपने पिता की ख्वाहिश पूरी करना चाहता था. उस युवा ने महज 20 साल की उम्र में बल्ला थाम लिया. फिर क्रिकेट की पिच पर ऐसी बल्लेबाजी की, कि साथी खिलाड़ी उसे 'सिक्सर सिद्धू' (Sixer Sidhu) बोलने लगे. फील्डिंग करने में ऐसी महारत हासिल की कि लोगों ने नाम दिया जोंटी सिंह.

खेल का मैदान हो या राजनीति का दंगल. उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों को जोरदार पटखनी दी. हर जगह अपना लोहा मनवाया. हम बात कर रहे हैं पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) उर्फ शैरी की. बहुमुखी प्रतिभा के धनी नवजोत सिंह सिद्धू ने क्रिकेट, कॉमेंट्री, टीवी, फिल्म और राजनीति में अपनी प्रतिभा दिखाई. वहीं पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले सिद्धू की गतिविधियों ने भी राजनीतिक माहौल में रविश बनाए रखी. बता दें कि नवजोत सिंह सिद्धू  इस बार अमृतसर पूर्व से चुनाव लड़ रहे हैं. 

'शैरी' ने पिता की चाहत पूरी करने को थामा बल्ला

क्रिकेट की पिच से राजनीति के मैदान में कदम रखने वाले नवजोत सिंह सिद्धू वर्तमान में पंजाब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष (Punjab Congress Chief) हैं. लेकिन यहां तक पहुंचने का उनका सफर बेहद दिलचस्प रहा है. नवजोत सिंह सिद्धू के पिता सरदार भगवंत सिंह (Sardar Bhagwant Singh) क्रिकेटर थे. वह चाहते थे कि उनका बेटा भी उनकी तरह खिलाड़ी बने. उनका नाम रौशन करे. अपने पिता की इस इच्छा को पूरी करने के लिए सिद्धू ने 1983 में एक क्रिकेटर के तौर पर डेब्यू किया. करीब 17 साल यानी 1999 में क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद उन्होंने कॉमेंट्री में हाथ आजमाया. 

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क्रिकेट छोड़ राजनीति में आजमाई किस्मत

सिद्धू साल 2004 में राजनीति में आए. वह बीजेपी की ओर से अमृतसर लोकसभा सीट से 2004 से लेकर 2014 तक सांसद रहे. इसके बाद अप्रैल, 2016 में सिद्धू राज्यसभा के सांसद बनाए गए, लेकिन उन्होंने महज 3 महीने बाद अपना इस्तीफा दे दिया. फिर चर्चा चली कि सिद्धू आम आदमी पार्टी का दामन थामेंगे और राज्य में पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे. हालांकि उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का 'हाथ' पकड़ लिया. 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में पंजाब की जनता ने कांग्रेस पर भरोसा जताया. लिहाजा कांग्रेस ने सूबे में सरकार बनाई. तब सिद्धू को कैबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी दी गई. इसके बाद साल आया 2019 का. जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कैबिनेट में बदलाव करते हुए सिद्धू का मंत्रिमंडल बदल दिया. इसके विरोध में सिद्धू ने पदभार ग्रहण किए बिना ही इस्तीफा दे दिया.

 

नवजोत सिंह सिद्धू (फाइल फोटो)

सिद्धू को क्यों देना पड़ा सांसद पद से इस्तीफा?

सिद्धू 2004 में बीजेपी के टिकट पर अमृतसर से लोकसभा पहुंचे. तब उन पर एक पुराना मुकदमा चल रहा था. उनपर कथित तौर पर पाटियाला निवासी गुरनाम सिंह को पार्किंग विवाद को लेकर पीटने का आरोप था. बाद में गुरनाम सिंह की अस्पताल में मौत हो गई. इस मामले में 2006 में नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 3 साल कैद की सजा सुनाई थी. सिद्धू को तब अमृतसर के सांसद पद से इस्तीफा देना पड़ा था.

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अरुण जेटली कैंडिडेट बने तो सिद्धू नहीं लड़े चुनाव

सिद्धू की अरुण जेटली से संबंधों की शुरुआत होती है एक केस के सिलसिले में उनकी पैरवी से. दरअसल, गुरनाम सिंह केस में बीजेपी के वरिष्ठ अरुण जेटली ने सुप्रीम कोर्ट में सिद्धू की ओर से पैरवी की थी. बाद में उन्हें जमानत मिली. इसके बाद अमृतसर में उपचुनाव हुए और सिद्धू दोबारा चुनाव जीत. इसके बाद सिद्धू और अरुण जेटली के बीच प्रगाढ़ रिश्ते बन गए थे. 2014 में जब बीजेपी ने अरुण जेटली को अमृतसर सीट से कैंडिडेट बनाया तो सिद्धू ने चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर दी.

नवजोत सिंह सिद्धू (फाइल फोटो)

बगावती तेवरों वाले सिद्धू खोल देते हैं मोर्चा

पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू राज्य के प्रमुख नेताओं में से एक हैं. पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) से सिद्धू की नाराजगी जग-जाहिर है. दोनों विभिन्न मुद्दों को लेकर लगातार एक-दूसरे को घेरते रहे हैं. मुखर सिद्धू जिस पार्टी में रहे, उसके खिलाफ भी मोर्चा खोलते रहे हैं. गौरतलब है कि सिद्धू जब भाजपा में थे तब वह अकाली दल-बीजेपी गठबंधन सरकार की जमकर कड़ी आलोचना करने से पीछे नहीं हटते थे. सिद्धू ने भ्रष्टाचार, केबल माफिया, खनन माफिया जैसे मुद्दों पर अकाली दल पर निशाना साधा था.

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अज़हरूद्दीन से बिगड़ी तो छोड़ी इंग्लैंड सीरीज

इससे पहले वह भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसद रहे. फिर कांग्रेस में विधायक और मंत्री रहे. क्रिकेट हो या राजनीति. बगावत करने का नवजोत सिंह सिद्धू का पुराना इतिहास है. सिद्धू को जानने वाले बताते हैं कि 1996 के इंग्लैंड दौरे के वक्त नवजोत सिंह सिद्धू कप्तान मोहम्मद अज़हरूद्दीन से बगावत कर बीच दौरे में स्वदेश लौट आए थे.

नवजोत सिंह सिद्धू (फाइल फोटो)

छोटे पर्दे पर भी सिद्धू ने छोड़ी छाप

नवजोत सिंह सिद्धू ने क्रिकेट ही नहीं टीवी में भी अपना हुनर दिखाया. 17 साल तक क्रिकेट खेलने के बाद सिद्धू ने टेलीविजन के छोटे पर्दे पर भी अपनी पहचान बनाई. टीवी पर कॉमेंट्री करने के अलावा नवजोत रियलिटी शो बिग बॉस का भी हिस्सा रहे हैं. इसके अलावा वह कपिल शर्मा के कॉमेडी शो समेत कई कॉमेडी शो में लंबे समय तक जज की भूमिका में रहे हैं. नवजोत सिंह सिद्धू ने फिल्मों में भी हुनर दिखाया है. लिहाजा उन्होंने 'मुझसे शादी करोगी' और 'एबीसीडी 2' के कैमियो किया है. साथ ही पंजाबी फिल्म 'मेरा पिंड' में भी सिद्धू ने एक्टिंग की है.

नवजोत सिंह सिद्धू (फाइल फोटो)

ऐसा रहा शैरी का क्रिकेट करियर

नवजोत सिंह सिद्धू का जन्म पंजाब के पटियाला में हुआ. वह साल 1983 से 1999 तक टीम इंडिया का हिस्सा रहे. उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ पहला टेस्ट मैच खेला. सिद्धू ने कुल 51 टेस्ट मैच और 136 वनडे मैच खेले हैं. उन्होंने टेस्ट में 3202 और वनडे में 4413 रन बनाए हैं. 

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पत्नी राजनेता तो बेटी फैशन डिजाइनर

नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी का नाम डॉ. नवजोत कौर सिद्धू हैं. वह भी राजनीति में एक्टिव हैं. बता दें कि शैरी की पत्नी पंजाब विधानसभा सदस्य रह चुकी हैं. सिद्धू के परिवार में पत्नी नवजोत के अलावा दो बच्चे हैं. बेटे का नाम करन सिद्धू और बेटी का नाम राबिया सिद्धू है. राबिया फैशन की शौक़ीन है. राबिया ने अपनी स्कूली पढ़ाई पंजाब के पटियाला से की है. फैशन डिजाइनिंग के लिए विदेश गईं थी.

 

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