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Batala Assembly Seat: कांग्रेस की राह में रोड़े तो नहीं अटकाएगी आपसी गुटबाजी!

बटाला विधानसभा सीट: 2012 के पंजाब चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अश्विनी सेखरी को भारी बहुमत मिली थी. उन्हें कुल 18,885 वोटों के अंतर से जीत मिली थी. कांग्रेस उम्मीदवार अश्विनी सेखरी को कुल  66,806 वोट मिले थे.

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Punjab Assembly Election 2022( Batala Assembly Seat)
Punjab Assembly Election 2022( Batala Assembly Seat)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • अकाली दल से रहता है मुकाबला
  • पिछली बार महज कुछ वोटों से जीती कांग्रेस

बटाला विधानसभा सीट पंजाब की महत्वपूर्ण विधानसभा सीटों में से एक है. 2017 विधानसभा चुनाव में इस सीट पर शिरोमणि अकाली दल ने जीत दर्ज की थी. बटाला सीट, पंजाब विधनसभा में निर्वाचन क्षेत्र संख्या 7 के नाम से जाना जाता है. यह सीट गुरदासपुर जिले में पड़ता है और गुरदासपुर लोकसभा सीट अंतर्गत ही आता है. इलेक्शन कमीशन की डाटा के मुताबिक, बटाला विधानसभा में कुल मतदताओं की संख्या 1,62,353 है. इनमें से पुरुष मतदाताओं की संख्या 85,046 और महिला मतदाताओं की संख्या 77,307 है. 

2012 के पंजाब चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अश्विनी सेखरी को भारी बहुमत मिली थी. उन्हें कुल 18,885 वोटों के अंतर से जीत मिली थी. कांग्रेस उम्मीदवार अश्विनी सेखरी को कुल  66,806 वोट मिले थे. जबकि दूसरे नंबर पर रहे शिरोमणि अकाली दल उम्मीदवार लखबीर सिंह लोधी को 47,921 वोट मिले थे. 2012 में यहां 73.90 % मतदान हुआ था.

वहीं 2017 में यह सीट शिरोमणि अकाली दल के खाते में गई थी. 2017 में शिरोमणि अकाली दल उम्मीदवार लखबीर सिंह लोधी ने कांग्रेस के अश्विनी सेखरी को महज 485 वोटों के मार्जिन से हराया था. ऐसे में इस बार शिरोमणि अकाली दल के पास एक बार फिर से अपनी खोयी हुई सीट वापस पाने का मौका है. लेकिन दिक्कत यह है कि इस बार बीजेपी, अकाली दल से अलग हो चुकी है. ऐसे में उनके लिए कांग्रेस बड़ी चुनौती खड़ा कर सकता है. 

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राजनीतिक समीकरण

हालांकि इस सीट पर कांग्रेस के अंदर की गुटबाजी भी बेहद परेशान करती रही है. राहत की बात यह है कि मौजूदा दौर में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदर सिंह को समर्थन देने के लिए अश्विनी सेखड़ी और राज्यसभा सदस्य प्रताप सिंह बाजवा दोनों एक साथ खड़े हो गए थे. जबकि बटाला विधानसभा टिकट को लेकर दोनों कई बार आमाना-सामना कर चुके हैं. लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाहर होने से इन दोनों के समीकरण पर क्या असर होगा, इसके लिए इंतजार करना होगा. वहीं किसानों के मुद्दे और महंगाई की वजह से भाजपा के लिए बेहद मुश्किल होने वाली है. 

 

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