अमृतसर के अटारी वाघा बॉर्डर के पास, विधानसभा एरिया अटारी की बात करें, तो यहां पर ज्यादातर किसानी वोट हैं. आज तक ये विधानसभा के विधायक ज्यादातर अकाली दल के रहे हैं और ये अकाली दल का गढ़ माना जाता है. यहां रहने वाले ज्यादातर लोगों की जमीन तारों के पार है, जिस वजह से उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. आज हम बात करेंगे अमृतसर के विधानसभा एरिया अटारी की.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
इस विधानसभा की शुरुआत 1977 में हुई थी और यहां से सीपीएम के दर्शन सिंह ने कांग्रेस के उम्मीदवार गुरदित सिंह को करीब साढ़े 4 हजार वोट से हराया था. 1980 में दर्शन सिंह यहां से दोबारा विधायक बने और एक बार फिर 11 हजार वोट से गुरदित सिंह को हराया, लेकिन 1985 में अकाली दल ने इस सीट से अपने उम्मीदवार को पहली बार इस सीट से उतारा. तब उनका मुक़ाबले कांग्रेस के उम्मीदवार से हुआ, लेकिन तारा सिंह 22503 वोट और कांग्रेस की उमीदवार स्वर्ण कौर को 11101 वोट मिले और पहली बार अकाली दल के उमीदवार ने इस सीट से जीत दर्ज की.
1992 में एक बार फिर ये सीट कांग्रेस के हाथों चली गई और सुखदेव सिंह कांग्रेस के उमीदवार ने जीत दर्ज की अकाली दल ने इस सीट से 1997 के विधानसभा चुनावों में गुलज़ार सिंह रानीके को उतारा और अकाली दल को इसका फायदा भी मिला, क्योंकि गुलज़ार सिंह रानीके उसी विधानसभा के रहने वाले थे और वह इस विधानसभा एरिया के लोगों की मुश्किलों को अच्छी तरह से जानते थे. रानीके ने करीब 40 हजार वोट के बड़े मार्जन से बड़ी जीत दर्ज की और सीपीआई के उम्मीदवार को हराया. उसके बाद ये सीट अकाली दल के पास ही रही और 2012 तक गुलज़ार सिंह रानीके ही यहां से विधायक रहे और अकाली दल की सरकार में मछली पालन विभाग उन्हें दिया गया.
2017 का जनादेश
2017 में कांग्रेस के उम्मीदवार तरसेम सिंह डीसी ने गुलज़ार सिंह रानीके को हराया. करीब 10,000 वोट से तरसेम सिंह डीसी ने गुलज़ार सिंह रानीके को हरा कर उनकी जीत को खत्म किया.
उत्तरी विधानसभा अटारी वाघा सरहद के साथ लगती है और बॉर्डर के आस पास रहने वाले लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. बीएसएफ की तरफ से उन्हें तारों पार अपने जमीन की खेती करने के लिए काफी कम समय दिया जाता है और किसान ज्यादातर मांग करते हैं कि सरकार उनकी मुश्किलों को हल करे.
सामाजिक ताना-बाना
इस विधानसभा में करीब 1,45,000 वोट हैं. ये ज्यादातर सिख वोट हैं. वहां पर लोगों को ड्रग्स जैसे मुद्दों का सामना करना पड़ता है. वहीं विधानसभा में, बेरोजगारी हर बार चुनाव में मुद्दा होता है. राजनीतिक पार्टियों के लोग बेरोजगारी खत्म करने का वादा जरूर करते हैं, लेकिन ये वादा चुनावों के बाद भी पूरा नहीं हो पाता.
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