दिल्ली में कांग्रेस के लिए अजीबोगरीब हालत पैदा हो गई है. आम आदमी पार्टी से लेकर बीजेपी ने अपने हिस्से वाली सारी सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, लेकिन कांग्रेस अब तक नाम तय नहीं कर पाई है. दिल्ली में दरअसल इस समय कांग्रेस के भीतर ही लोकल और हाईकमान को लेकर जबरदस्त खींचतान चल रही है.
खींचतान इसलिए है, क्योंकि पार्टी के हिस्से 7 में से महज 3 सीटें आईं हैं और उनके लिए भी दावेदार कई हैं. दावेदारों की ये लिस्ट और लंबी हो गई हैं क्योंकि कई सारे बाहरी उम्मीदवारों ने भी इन सीटों पर अपना दावा ठोंक दिया है. दिल्ली में कांग्रेस को मिली सीटों में चांदनी चौक, उत्तरपूर्वी दिल्ली और उत्तरपश्चिमी दिल्ली की सीटें शामिल हैं. इन सभी सीटों पर पार्टी में दिग्गज माने जा रहे नेताओं का दावा है.
उत्तरपूर्व दिल्ली में क्या ध्रुवीकरण का डर दावेदारों को डरा रहा है?
नार्थ ईस्ट सीट पर पूर्व सांसद संदीप दीक्षित, मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष चौधरी अनिल कुमार, इस संसदीय क्षेत्र से पहले सांसद रहे जेपी अग्रवाल का नाम पहले से ही चल रहा था, वहीं अब देश भर में एनएसयूआई की कमान संभालने वाले पूर्व जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार और पूर्वांचली लोक गायिका नेहा सिंह राठौर का नाम भी इस लिस्ट में जुड़ गया है. यही वो सीट है जहां 2020 में सांप्रदायिक दंगे हुए और उसके बाद कई लोग मानते हैं कि ये अब ध्रुवीकरण की प्रयोगशाला बन गया है.
ध्रुवीकरण का डर इस सीट के दावेदारों को भी डरा रहा है इसलिए कई सारे दिग्गज इस सीट पर दांव खेलने को तैयार नहीं दिखाई दे रहे हैं और इसलिए कई बाहरी उम्मीदवारों को भी दावेदारों की लिस्ट में शामिल कर लिया गया है. पिछली बार तो आलम ये ता कि दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित खुद इस सीट से चुनाव लड़ीं लेकिन मुस्लिम बहुल सीलमपुर विधानसभा के अलावा किसी और सीट पर बढ़त नहीं बना पाईं. ऐसे ही कई आंकड़े अलग-अलग नेताओं को परेशान कर रहे हैं.
कारोबारी और अल्पसंख्यक बहुल चांदनी चौक: क्यों चाहते हैं नेता यहां से दावेदारी
बात सिर्फ नॉर्थईस्ट दिल्ली की ही नहीं है, तगड़ी मुश्किल तो चांदनी चौक सीट पर भी है. इस सीट से पिछली बार जेपी अग्रवाल लड़े थे और डॉ. हर्षवर्धन के बाद दूसरे नंबर पर रहे. 2019 में जेपी को शीला दीक्षित से भी ज्यादा वोट मिला था और तब शीला नॉर्थईस्ट दिल्ली से उम्मीदवार थीं. इसलिए जेपी अग्रवाल तो चांदनी चौक से दावेदार हैं ही, बताया जा रहा है कि शीला दी क्षित के बेटे और पूर्व सांसद संदीप दीक्षित अब नॉर्थईस्ट सीट से ज्यादा चांदनी चौक सीट में रुचि ले रहे हैं.
इस सीट को लेकर जेपी अग्रवाल और संदीप दीक्षित के बीच ही नहीं बल्कि महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष अल्का लांबा भी अपना पूरा दम टिकट के लिए लगा रहीं हैं. अल्का पहले चांदनी चौक विधानसभा सीट आम आदमी पार्टी के टिकट पर जीत चुकीं हैं, लेकिन 2020 में जब कांग्रेस के टिकट पर वो एसेंबली चुनाव लड़ीं थीं तो जमानत तक बचा नहीं पाईं थीं. पेंच ये है कि आम आदमी पार्टी ने अपने चार उम्मीदवारों में एक भी महिला प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया है जबकि बीजेपी ने 7 में से 2 प्रत्याशी महिलाओं को बनाया है. ऐसे में कांग्रेस पर दबाव है कि वो 3 में से कम से कम एक सीट तो किसी महिला प्रत्याशी को दे.
कांग्रेस ने क्यों ली उत्तरपश्चिम दिल्ली की सीट?
चांदनी चौक और नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के बाद अब बात नॉर्थवेस्ट दिल्ली लोकसभा इलाके की भी कर लेते हैं. ये सीट तो और ज्यादा मज़ेदार है. जब कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच सीटों के तालमेल को लेकर बातचीत चल रही थी तो इस बात पर भी चर्चा हुई कि आखिरकार दिल्ली की एकमात्र अनुसूचित जाति रिजर्व सीट किसके खाते में आएगी. पिछले लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी सात में जिन दो सीटों पर दिल्ली में रनर-अप यानि दूसरे नंबर पर रही थी उनमें एक ये भी सीट थी. इसलिए सीट जानी तो अरविंद केजरीवाल की ही पार्टी को चाहिए थी, लेकिन कहानी में यहीं ट्विस्ट आया.
स्थानीय नेतृत्व नहीं हैं खुश
सीटों की घोषणा से ठीक पहले कांग्रेस ने ये मांग की कि आम आदमी पार्टी ईस्ट दिल्ली अपने पास रखे और नॉर्थवेस्ट सीट कांग्रेस को दे. कांग्रेस सूत्र बताते हैं कि ऐसा सीधे पार्टी के हाईकमान के कहने पर हुआ. केजरीवाल ने बात मान ली, लेकिन सवाल यही रहा कि जिस सीट पर 2019 में कांग्रेस तीसरे नंबर पर आई थी वो सीट जिद कर कांग्रेस ने मांगी क्यों? ऐसा शायद बीजेपी से कांग्रेस में पिछले चुनावों से ठीक पहले आए उदित राज के लिए जगह बनाने के लिए किया गया. लेकिन कांग्रेस का स्थानीय नेतृत्व अपने केंद्रीय नेतृत्व की पसंद से सहमत नहीं है.
उदितराज को लेकर उठ रहे सवाल
एक तो उदित राज को कोई भी पार्टी का इनसाइडर मानने को तैयार नहीं है और दूसरा ये कि वो 2014 में भले बीजेपी के टिकट पर इसी लोकसभा क्षेत्र से चुने गए हों, लेकिन बीजेपी ने भी 2019 में इनका टिकट काट दिया था फिर कांग्रेस कार्यकर्ता ये भी पूछ रहे हैं कि पहले से ही कमजेर सीट पर ऐसे उम्मीदवार को उतारने का क्या मकसद? दूसरी तरफ, दिल्ली के पूर्व मंत्री और मंगोलपुरी से कई बार विधायक रहे राजकुमार चौहान स्थानीय नेतृत्व की पसंद बने हुए हैं. बवाना के पूर्व विधायक सुरेंद्र कुमार और सुल्तानपुर माजरा से पूर्व विधायक जयकिशन भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं.