देश में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री हुआ करती थीं, उस दौरान उन पर राज्यों के अधिकारों के हनन के आरोप लगा करते थे. दक्षिण भारत के कई राज्यों में गैर कांग्रेसी राज्यों के मुख्यमंत्री दिल्ली के फरमानों के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाया करते थे. उन दिनों कर्नाटक में रामकृष्ण हेगड़े, पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु, आंध्र प्रदेश में एनटी रामाराव और तमिलनाडु में एमजी रामचंद्रन और एम करुणानिधि जैसे मुख्यमंत्री राज्यों के अधिकारों को लेकर बेंगलुरु और चेन्नई में बैठक करते और राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र के खिलाफ आवाज उठाया करते थे और पत्र लिखकर केंद्र के फैसलों का विरोध करते.
इंदिरा गांधी के बाद ऐसी नौबत भारतीय जनता पार्टी के नेता नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आई. असल में, 2017 में मोदी सरकार ने बीफ को लेकर नया नियम बनाया, लेकिन केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इस कानून को राज्यों के अधिकारों का हनन बताया और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चिट्टी लिख डाली. विजयन का कहना था कि केंद्र सरकार ने मवेशियों के व्यापार पर कानून बनाकर राज्यों के अधिकारों का उल्लंघन किया है.
अस्सी के दशक के बाद विजयन संभवतः पहले ऐसे मुख्यमंत्री थे जो केंद्र सरकार के विरोध में तनकर खड़े हुए. केरल के मुख्यमंत्री के तौर पर विजयन उस दौरान भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ खड़े रहे जब उसने सबरीमाला मंदिर में 50 वर्ष कम उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी. राज्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) सहित दक्षिणपंथी शक्तियां सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ थीं. इन संगठनों ने महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से रोकने की कोशिश की. लेकिन 24 मई 1945 को जन्मे विजयन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को लागू करने की कोशिश की.
हैंडलूम वर्कर से मुख्यमंत्री तक की यात्रा
कन्नूर जिले के पिनरायी में एक गरीब परिवार जन्मे विजयन के माता-पिता काफ़ी गरीब थे. इस गरीबी को विजयन ने भी झेला. आजीविका के लिए विजयन ने एक हैंडलूम वर्कर के तौर पर भी काम किया. इसी दौरान मजदूरों पर होने वाले अत्याचार उन्हें अंदर तक झकझोरते थे. इसके लिए उन्होंने काम छोड़कर आगे पढ़ाई करने का फैसला किया और गर्वमेंट ब्रेनन कॉलेज में प्रवेश ले लिया. यहीं से वह छात्र राजनीति के जरिये माकपा की छात्र इकाई एसएसफआई में शामिल हो गए. यहां से केरल स्टूडेंट फेडरेशन के सचिव और अध्यक्ष पद से होते हुए वह केरल स्टेट यूथ फेडरेशन के अध्यक्ष तक पहुंचे और अंततः कम्युनिस्ट पार्टी 1964 में शामिल हो गए.
2016 में चुनाव से पहले विजयन ने राज्यव्यापी दौरा करते हुए नए केरल के निर्माण का नारा दिया. इस दौरान उन्होंने अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने की कोशिश की. धरमदोम विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर कामयाबी हासिल की और फिर राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
विधानसभा चुनाव के बाद मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने मई 2016 में विजयन को मुख्यमंत्री के लिए चुना. पार्टी को इस बात का अहसास था कि केरल की पृष्ठभूमि विजयन सबसे कारगर उम्मीदवार होंगे. वह लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट सरकार के नेता चुने गए. कुन्नूर जिले के धर्मादम विधानसभा से विधायक चुने गए विजयन ने 25 मई 2016 को सीएम पद की शपथ ली. उनके पास अन्य विभागों के साथ गृह मंत्रालय भी है. उनके शासन में राज्य में हरित केरल मिशन, प्रोजेक्ट लाइफ, अद्रम मिशन और व्यापक शिक्षा सुधार जैसी योजनाएं लागू की गईं. विजयन के कार्यकाल में ही भारत में पहली बार सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा चाकचौबंद करने के लिए केरल में पिंक पेट्रोल नाम से महिला पुलिस दस्ते की शुरुआत की गई.
नए केरल की चुनौती
अपने कल्याणकारी कार्यक्रमों और शासन व्यवस्था में केरल को सबसे ऊपरी पायदान पर पहुंचाकर विजयन ने पार्टी की उम्मीदों को कायम रखा. केरल उन राज्यों में सबसे पहले पायदान पर शुमार किया जाता है जहां शिक्षा, स्वास्थ्य और शासन व्यवस्था बेहतरीन है. थिंक टैंक पब्लिक अफेयर्स सेंटर की रिपोर्ट इसकी तस्दीक करती है. वैसे केरल पहले से ही शिक्षा सहित अन्य मामलों में देश के कई राज्यों से बेहतर स्थिति में रहा है, लेकिन 1998 से 2015 तक माकपा पोलिल ब्यूरो के सदस्य रहे पिनराई विजयन इस कड़ी को आगे लेकर गए.
केरल के विधानसभा चुनावों में एक परिपाटी सी रही है कि लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकारें बारी-बारी से बनती रही हैं. केरल में मतदातओं की यह पुरानी समझदारी है, लेकिन लोकसभा 2019 का चुनाव विजयन के लिए चुनौती है कि वह अपनी पार्टी को कैसे जीत दिलाते हैं? क्योंकि माकपा को अब शायद सिर्फ केरल में ही अपनी पार्टी के लिए उम्मीद बची हुई है.