पश्चिम बंगाल में बारासात लोकसभा सीट उन संसदीय क्षेत्रों में शामिल है, जहां तृणमूल कांग्रेस ने मोदी लहर को दरकिनार कर 2014 में जीत हासिल की थी. कोलकाता से सटी हुई यह सीट अपने ऐतिहासिक भौगोलिक स्थिति के कारण भी प्रसिद्ध है. संसदीय राजनीति में यह सीट ज्यादातर समय वामपंथी दलों के पास रही है जहां मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और फारवर्ड ब्लॉक के प्रतिनिधि संसद पहुंचते रहे हैं. बारासात लोकसभा सीट पर लेफ्ट फ्रंट और कांग्रेस के बीच आमतौर पर मुकाबला रहा है. लेकिन पिछले दो आम चुनावों से इस सीट पर ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस का कब्जा है.
बहरहाल, मुगल काल में जमींदार प्रतापदित्य के कमांडर शंकर चक्रवर्ती को सन् 1600 में बारासात भेजा गया, जहां उन्होंने खुद को स्थापित किया. 1700 में हजरत एकदिल शाह बारासात पहुंचे जिन्हें सामाज सुधारक के तौर पर जाना जाता है. काजीपारा में उनका मकबरा है, जहां उनके मुस्लिम अनुयायी आते रहते हैं. प्रतापदित्य ने जेस्सौर (अब बांग्लादेश में) से कलकता जाने के लिए रास्ते का निर्माण कराया था. कहा जाता है कि सिराजुदौला बारासात के रास्ते ही मुर्शिदाबाद से कोलकाता पहुंचा था. यही रास्ता बाद में चलकर राष्ट्रीय राजमार्ग बना.
ब्रिटिश शासन के सयम ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता में रहने वाले अंग्रेज अधिकारियों के लिए बारासात एक तरह से वीकेंड में छुट्टी मनाने की जगह हुआ करती थी. यहां पर अंग्रेजों ने सुंदर सुंदर गार्डेन और इमारतें बनवाईं. वारेन हेस्टिंग ने बारासात शहर के बीच में अपना महल बनवाया. बंकीम चंद्र चटर्जी इस शहर के पहले भारतीय डिप्टी मैजिस्ट्रेट हुए.
राजनीतिक तस्वीर
जब देश में 1952 में पहला आम चुनाव हुए तो बारासात लोकसभा सीट को शांतिपुर लोकसभा सीट के नाम से जाना जाता था. उस समय कांग्रेस के प्रत्याशी अरुण चंद्र गुहा चुनाव जीते और लोकसभा पहुंचे. अरुण चंद्र गुहा कांग्रेस के ही टिकट पर 1962 में भी दोबारा चुनाव जीते. माकपा के रणेंद्रनाथ सेन 1967 और 1971 के चुनावों में जीते. 1977 और 1980 के लोकसभा चुनावों में फारवर्ड ब्लॉक के चिट्टा बसु सांसद चुने गए. 1984 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और तरुण कांति बोस सांसद चुने गए. लेकिन इसके बाद हुए लगातार तीन लोकसभा चुनावों में फारवर्ड ब्लॉक जीतती रही. 1989,1991 और 1996 के लोकसभा चुनावों में फारवर्ड ब्लॉक के चिट्टा बसु चुनाव जीतते रहे. 1998 के चुनावों में बारासात संसदीय सीट की तस्वीर बदल गई और तृणमूल कांग्रेस ने पहली बार यहां खाता खोला. तृणमूल कांग्रेस के डॉ. रंजीत कुमार पंजा ने 1998 और 1999 के चुनावों में लगातार जीत हासिल की. 2004 के आम चुनावों में फारवर्ड ब्लॉक के सुब्रत बोस चुनाव जीते. 2009 और 2014 के चुनावों में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर तृणमूल कांग्रेस की डॉ. काकोली घोष दास्तिदार चुनाव जीतीं.
सामाजिक ताना बाना
चूंकि बारासात कोलकाता से सटा हुआ शहर है. इसकी ज्यादातर आबादी शहरी है. लोग सांस्कृतिक तौर पर संगीत और कला से जुड़े हुए हैं और सभी धर्मों की इमारतें यहां देखी जा सकती हैं. जनगणना 2011 के मुताबिक बरसात की कुल आबादी 278,235 है जिनमें 140,882 (51 %) पुरुष और 137,613 (49 %) महिलाएं हैं. इसमें 22,605 उनकी आबादी है जिनकी उम्र 6 साल से कम बताई गई थी. बारासात संसदीय क्षेत्र की साक्षरता दर 89.69 फीसदी है. बारासात में 4.77% आबादी गांवों में रहती है जबकि 65.23% लोग शहरों में रहते हैं. इनमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का अनुपात क्रमशः 18.8 और 1.45 फीसदी है. मतदाता सूची 2017 के अनुसार बरसाद संसदीय क्षेत्र में 1638780 मतदाता है जो 1835 पोलिंग बूथों पर वोटिंग करते हैं. 2014 के चुनावों में यहां 83.96% वोटिंग हुई थी जबकि 2009 में यह आंकड़ा 83.6% था.
बारासात संसदीय क्षेत्र के तहत सात विधानसभाएं आती हैं. इनमें हावड़ा, अशोक नगर, राजरहाट न्यू टॉउन, बिधाननगर, मध्यमग्राम और देगंगा शामिल हैं. इन सात विधानसभा सीटों में से छह पर तृणमूल कांग्रेस के विधायक हैं.
2014 के जनादेश का संदेश
बारासात संसदीय सीट पर कांग्रेस, फॉरवर्ड ब्लॉक, माकपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच टक्कर रहती है. इस सीट पर सबसे अधिक बार फॉरवर्ड ब्लॉक की ही जीत हुई है. मगर 2009 में ममता की लहर से यह सीट पर तृणमूल के खाते में चली गई. 2009 के संसदीय चुनावों में तृणमूल की डॉ. काकोली घोष दस्तिदार 50 फीसदी से भी अधिक वोट पाकर विजेता बनीं. जबकि 2014 के चुनावों में मोदी लहर को मात देते हुए काकोली यहां जीतने में कामयाब रहीं.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
सियासी मुद्दों को लेकर मुखर रहने वालीं काकोली घोष संसद में 60 फीसदी उपस्थित रहीं और 17 डिबेट में हिस्सेदारी की. www.prsindia.org के सात फरवरी 2019 तक के आंकड़े बताते हैं कि इस दौरान उन्होंने सदन की कार्यवाही में 10 सवाल भी पूछे. हालांकि वह कोई प्राइवेट मेंबर बिल नहीं लाईं. बारासात संसदीय क्षेत्र के लिए संसदीय निधि के तहत 25 करोड़ रुपये निर्धारित हैं. इसमें से विकास संबंधी कार्यों के लिए पूरे पैसे मंजूर कर दिये गए जिनमें से 94.43 फीसदी राशि खर्च की जा चुकी है.