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किसान आंदोलन की भूमि मथुरापुर लोकसभा सीट पर TMC लगा पाएगी हैट्रिक

Mathurapur constituency पश्चिम बंगाल में मथुरापुर लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. यह सीट मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का मजबूत गढ़ रही है. पार्टी की राधिका रंजन 1989 से लेकर 1999 तक लगातार पांच बार इस सीट से सांसद रहीं. मगर 2009 में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा और टीएमसी के चौधरी मोहन जतुआ सांसद चुने गए.

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Mathurapur constituency
Mathurapur constituency

मथुरापुर एक सामुदायिक विकास खंड है जो पश्चिम बंगाल में दक्षिण 24 परगना जिले के डायमंड हार्बर उपखंड का एक प्रशासनिक प्रभाग है. यह क्षेत्र भी तेभाग किसान आंदोलन का हिस्सा रहा है. यह वही क्षेत्र है जब 1943 के बंगाल के अकाल के दौरान भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने सुंदरवन क्षेत्र के किसानों को राहत मुहैया कराई थी.

अकाल के बाद उपजी परिस्थिति की वजह से सितंबर 1946 में बंगीय प्रदेशिक किसान सभा ने तेभागा आंदोलन शुरू करने का फैसला किया. काकद्वीप, सोनारपुर, भांगर और कैनिंग में किसान आंदोलन शुरू हो गया. काकद्वीप और नामखाना आंदोलन का केंद्र था, किसानों की हिस्सेदारी में सुधार के उद्देश्य से इस आंदोलन को शुरू किया गया था. मथुरापुर में तेभागा आंदोलन के प्रमुख नेताओं में कंसारी हलदर, अशोक बोस और राश बिहारी घोष का नाम सामने आता है.  किसान नेता जैसे गजेन मलिक, माणिक हाजरा, जतिन मैती, बिजॉय मंडल भी उभर कर सामने आए. 1950 तक यह आंदोलन जारी रहा, जब बरगदरी अधिनियम लागू किया गया. इस अधिनियम ने बंटाईदारों को दो-तिहाई उपज के हिस्सेदार के रूप में अधिकार देने की स्वीकृति दी.

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राजनीतिक पृष्ठभूमि

तेभागा आंदोलन का असर मथुरापुर संसदीय क्षेत्र पर देखने को मिलता है. यह सीट मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के मजबूत गढ़ के रूप में उभरी और ज्यादातर समय इस दल के उम्मीदवार यहां से जीत दर्ज कराते रहे हैं. यह सीट 1962 के लोकसभा चुनाव में अस्तित्व में आई. 1962 के चुनावों में कांग्रेस ने पूर्णेंदु शेखर नस्कर को उम्मीदवार बनाया जिन्होंने जीत हासिल की. 1967 के चुनावों में माकपा के कंसारी हल्दर चुनाव जीतने में कामयाब हुए जबकि 1971 के आम चुनावों में माकपा के मधुरज्या हल्दर ने विजय हासिल की. इसी तरह माकपा के मुकुंद राम मंडल 1977 और 1980 के आम चुनावों में लगातार जीत दर्ज की. 1984 में कांग्रेस के मनोरंजन हल्दर ने जीत दर्ज की. माकपा की राधिका रंजन 1989 से लेकर 1999 तक लगातार पांच बार इस सीट से सांसद रहीं. मगर 2004 में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा और तृणमूल कांग्रेस (TMC) के बासुदेब बर्मन सांसद चुने गए. 2009 और 2014 के आम चुनावों में टीएमसी के चौधरी मोहन जतुआ लगातार जीत हासिल की.

सामाजिक ताना-बाना

दक्षिण 24 परगना जिले में स्थित मथुरापुर लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. जनगणना 2011 के मुताबकि मथुरापुर क्षेत्र की कुल आबादी 2216787 है जिसमें  94% लोग गांवों में रहते हैं जबकि 6% शहरी आबादी है. इसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी क्रमशः 29.06 और 0.53 फीसदी है. मतगणना 2017 के अनुसार मथुरापुर संसदीय क्षेत्र में 1574319 वोटर्स हैं जो 1825 मतदान केंद्रों पर अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं. इस संसदीय क्षेत्र के तहत विधानसभा सीटे आती हैं. इनमें पाथरप्रतिमा (Patharpratima),काकद्वीप (Kakdwip) सागर (Sagar), कल्पी (Kulpi), रायदिघी (Raidighi), मंदिरबाजार (Mandirbazar) सुरक्षित, मगरहाट पश्चिम शामिल है.

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2014 के जनादेश का संदेश

मथुरापुर संसदीय क्षेत्र किसानों का इलाका माना जाता है. जनसंख्या के आंकड़े भी बताते हैं कि ज्यादातर आबादी गांवों में रहती है. किसानों के मुद्दों को मुखर रहने वाली माकपा अधिकतर समय यहां से लोकसभा चुनाव जीतती रही है. हालांकि 2009 की तरह 2014 के आम चुनावों में माकपा को हार का सामना करना पड़ा और इस दौरान तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार चौधरी मोहन जतुआ लगातार जीत हासिल करते रहे.  2014 के चुनावों में 85.39% लोगों ने मतदान में हिस्सा लिया था जबकि 2009 में यह आंकड़ा 85.45% था. तृणमूल कांग्रेस, बीजेपी, माकपा और कांग्रेस को क्रमशः 49.59%, 5.24%, 38.67% और 3.73% वोट मिले थे.

सांसद का रिपोर्ट कार्ड

बतौर सांसद चौधरी मोहन जतुआ संसदीय कार्यवाही के दौरान सदन में 75 फीसदी उपस्थित रहे जबकि उन्होंने इस दौरान पटल पर कोई प्रश्न नहीं रखा और न ही किसी डिबेट में हिस्सा लिया. मथुरापुर लोकसभा सीट के लिए सांसद निधि के तहत 25 करोड़ रुपये निर्धारित हैं जिसमें से जतुआ ने 81.20 फीसदी रकम विकास संबंधी कार्यों पर खर्च कर पाये हैं.

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