अररिया लोकसभा सीट पर वोटों की गिनती पूरी हो गई है. अररिया सीट पर बीजेपी उम्मीदवार प्रदीप कुमार जीत गए हैं. प्रदीप कुमार ने 1,37,241 वोटों से जीत दर्ज की है. प्रदीप को कुल 6,18,004 वोट हासिल हुए हैं. दूसरे नंबर पर आरजेडी के उम्मीदवार सरफराज आलम को 4,81,120 मत प्राप्त हुए हैं.
अररिया बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से एक है. अररिया सीमांचल क्षेत्र का हिस्सा है और यह क्षेत्र मुस्लिम बहुल है. यहां 45 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम और यादव मतदाता हैं. वर्तमान हालात में एमवाई समीकरण के कारण आरजेडी की यहां काफी मजबूत स्थिति है.
कब और कितनी हुई वोटिंग
अररिया लोकसभा सीट पर 23 अप्रैल को तीसरे चरण में वोट डाले गए थे. चुनाव आयोग के मुताबिक, इस सीट पर 1804584 पंजीकृत मतदाता हैं, जिनमें से 1168714 लोगों ने वोट डाला. इस सीट पर 64.76 फीसदी मतदान हुआ.
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प्रमुख उम्मीदवार
अररिया लोकसभा सीट पर इस बार आरजेडी और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला था. आरजेडी ने इस बार भी बाहुबली तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम पर दांव लगाया. वहीं, बीजेपी से प्रदीप कुमार सिंह फिर से चुनावी मैदान में थे.
2014 का चुनाव
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी से दूरी बनाकर जेडीयू ने अकेले चुनाव लड़ा था. मोदी लहर के बावजूद तस्लीमुद्दीन चुनाव जीत गए थे. तस्लीमुद्दीन को 41 प्रतिशत वोट मिले थे. इस चुनाव में आरजेडी के तस्लीमुद्दीन को 407978, बीजेपी के प्रदीप कुमार सिंह को 261474, जेडीयू के विजय कुमार मंडल को 221769 और बीएसपी के अब्दुल रहमान को 17724 वोट मिले थे.
सामाजिक ताना-बाना
बिहार में नेपाल की तराई से सटा हुआ अररिया जिला पहले पूर्णिया का हिस्सा था जिसे 1990 में जिला बना दिया गया. यह जिला प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु की कर्मभूमि रहा है. 2001 की जनगणना के मुताबिक, इस जिले की जनसंख्या 1587348 है. बाढ़ प्रभावित इस इलाके में रोजगार और नौकरी के लिए पलायन सबसे बड़ी समस्या है. अररिया लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं- नरपतगंज, रानीगंज (सुरक्षित), फारबिसगंज, अररिया, जोकिहाट और सिकटी. जिसमें से 4 पर NDA काबिज है वहीं 1 सीट कांग्रेस और एक आरजेडी के पास है.
सीट का इतिहास
अररिया सीट आजादी के बाद के शुरुआती दशकों में कांग्रेस का गढ़ बनी रही. इसके बाद जनता दल और फिर बीजेपी ने यहां से जीत हासिल की. इतिहास पर नजर डालें तो 1967 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के तुलमोहन सिंह ने चुनाव जीता. इसके बाद फिर 1971 के चुनाव में भी वे विजयी रहे. 1977 में यहां से भारतीय लोक दल के महेंद्र नारायण सरदार विजयी रहे. इसके बाद 1980 और 1984 के चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के डुमर लाल बैठा के हाथ जीत लगी. इसके बाद के तीन चुनावों 1989, 1991 और 1996 में जनता दल के टिकट पर सुखदेव पासवान इस सीट से जीतकर दिल्ली गए. 1998 में बीजेपी के रामजी दास ऋषिदेव जीते. फिर 1999 के चुनाव में सुखदेव पासवान आरजेडी के टिकट पर जीते. लेकिन 2004 के चुनाव में सुखदेव पासवान बीजेपी के खेमे से उतरे और फिर इस सीट पर कब्जा किया.
2009 के चुनाव में बीजेपी ने प्रदीप कुमार सिंह को उतारा और ये सीट जीतने में फिर कामयाब रही. 2014 के चुनाव में आरजेडी ने इस सीट से मोहम्मद तस्लीमुद्दीन को उतारा. मुस्लिम-यादव वोटों के समीकरण से तस्लीमुद्दीन इस सीट को जीतने में कामयाब रहे. उनके निधन के बाद फिर मार्च 2018 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ जिसमें आरजेडी के टिकट पर तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम बीजेपी-जेडीयू उम्मीदवार को हराने में कामयाब रहे.
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