झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी मात्र 25 सीटों पर सिमट कर रह गई, जबकि बहुमत के लिए उन्हें 41 सीटों की ज़रूरत थी. वहीं 47 सीटों पर जीत के साथ जेएमएम गठबंधन नेतृत्व को सरकार बनाने के लिए स्पष्ट जनादेश मिला है.
ऐसे में झारखंड चुनाव के नतीजों का सबसे पहले सियासी असर पड़ोसी राज्य बिहार में पड़ेगा, जहां अगले साल 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में बिहारी के रण में कमल खिलाना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा.
झारखंड की सियासी जंग जीतने के लिए बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. इसके वाबजूद, बीजेपी को झारखंड में करारी हार का सामना करना पड़ा है. बीजेपी को झारखंड में 25 सीटों तक पहुंचने में एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा. जबकि, जेएमएम गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला है. जेएमएम को 30, कांग्रेस को 16 और आरजेडी को एक सीट पर जीत मिली है. इस तरह हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड में सरकार बनने वाली है.
झारखंड के नतीजों का सीधा असर बगल के पड़ोसी राज्य बिहार में स्वाभाविक रूप से पड़ेगा. बिहार की सत्ता में मौजूदा समय में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की सरकार हैं जबकि, विपक्ष में आरजेडी-कांग्रेस हैं. झारखंड में जिस प्रकार सत्ता विरोधी लहर के चलते रघुवर दास को नुकसान उठाना पड़ा है, उसी तरह से बिहार में भी सत्ता विरोधी लहर का सामना जेडीयू-बीजेपी को सामना करना पड़ सकता है. झारखंड में आरजेडी को जिस प्रकार जीरो से बढ़कर 1 सीटें पहुंची है. इसका सीधा फायदा उसे बिहार में मिलने की संभावना है.
हालांकि बीजेपी ने बिहार के नेताओं की पूरी फौज झारखंड के सियासी रणभूमि में लगा दिया था. इस कड़ी में बीजेपी ने चुनाव से ऐन पहले झारखंड के सहप्रभारी की जिम्मेदारी बिहार के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकिशोर यादव को दिया था और पूर्व केंद्रीय मंत्री और बिहार के दिग्गज नेता रामकृपाल यादव लगातार डेरा जमाए हुए थे. इसके बाद भी बीजेपी झारखंड में कमल खिलाने में कामयाब नहीं रही.
इसका साफ संकेत है कि राज्य के चुनाव में राष्ट्रीय से ज्यादा क्षेत्रीय मुद्दे लोगों को काफी प्रभावित कर रहे हैं. ऐसे में बिहार में 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी क्षेत्रीय मुद्दों के इर्द-गिर्द सियासी संग्राम समेट नजर आएगा. इसके अलावा हाल ही में हुए उपचुनाव में आरजेडी का ग्राफ जिस तरह से बढ़ा है और जेडीयू को जिस प्रकार नुकसान उठाना पड़ा है. इससे साफ संकेत है कि 2021 में होने वाला बिहार विधानसभा चुनाव सत्ता पर असीन बीजेपी-जेडीयू के लिए सियासी राह आसान नहीं है.