यूपी-बिहार को देश की सियासत की धुरी ऐसे ही नहीं कहा जाता. इन राज्यों की सत्ता में किसी भी बड़े फेरबदल का असर सीधे देश की सियासत पर दिखता है. यूपी चुनाव में तो अभी डेढ़ साल से अधिक वक्त बचा है लेकिन बिहार चुनाव सर पर है. इसलिए देशभर में इसकी चर्चा अभी से होने लगी है. बिहार में भी सभी दल और गठबंधन अपनी रणनीति को अंतिम रूप देने और खेमेबंदी मजबूत करने के लिए कमर कस चुके हैं.
वैसे तो लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मुद्दे और हालात अलग-अलग देखे जाते हैं लेकिन बिहार में 2019 के लोकसभा चुनाव में जो दल जिस खेमे में थे वे दल इस चुनाव में भी उसी खेमे में दिख रहे हैं. जैसे जेडीयू-बीजेपी-एलजेपी नीतीश कुमार की अगुवाई में हैं तो तेजस्वी के चेहरे के पीछे आरजेडी-कांग्रेस और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव की खेमेबंदी भी ठीक यही थी. इसके अलावा जीतनराम मांझी की पार्टी HAM, मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी, शरद यादव की पार्टी समेत कई छोटे दल भी इन्हीं दोनों खेमों में बंटे हुए दिख रहे हैं.
कैसा रहा था लोकसभा चुनाव 2019 का वोटिंग पैटर्न
पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में बिहार की बात करें तो 40 सीटों में से एनडीए ने 39 सीटें जीती थीं. जबकि 53.25% फीसदी वोट हासिल किए थे. वहीं यूपीए को सिर्फ एक सीट और 30.76% फीसदी वोट हासिल हुए थे. एनडीए की ओर से बीजेपी को 17, जेडीयू को 16 और एलजेपी को 6 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. यूपीए की ओर से कांग्रेस को एक सीट मिली थी जबकि आरजेडी का खाता तक नहीं खुल सका था.
विधानसभा सीटों के अनुसार इन नतीजों को देखें तो 243 में से 96 विधानसभा सीटों पर बीजेपी, 92 पर जेडीयू और 35 पर एलजेपी को बढ़त मिली थी. यानी 243 विधानसभा सीटों में से एनडीए को 223 सीटों पर बढ़त मिली थी. जबकि आरजेडी को 9, कांग्रेस को 5, जीतनराम मांझी की HAM को दो और रालोसपा को एक सीट पर बढ़त मिली थी. हालांकि आरजेडी की अगुआई वाली यूपीए को 30 फीसदी से अधिक वोट हासिल हुए थे.
2015 में अलग कैसे थे हालात
हालांकि, 2015 के पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो बिहार के सियासी खेमों के हालात काफी अलग थे. नीतीश कुमार की जेडीयू, लालू यादव की आरजेडी और कांग्रेस एक साथ मिलकर चुनाव में उतरी थीं. जबकि बीजेपी अकेले. महागठबंधन को इस चुनाव में भारी जीत मिली थी और बीजेपी को करारी हार. बीजेपी को सिर्फ 53 सीटें मिली थीं जबकि सहयोगी एलजेपी को 2 सीट. वहीं आरजेडी को 80, जेडीयू को 71 और कांग्रेस को 27 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. हालांकि, बाद में समीकरण बदले और नीतीश कुमार बीजेपी के साथ आ गए. बीजेपी और जेडीयू के साथ आने का असर 2019 के लोकसभा चुनाव में साफ दिखा. मोदी लहर पर सवार एनडीए ने 39 सीटें जीतते हुए बिहार में विपक्ष का सफाया कर दिया. आरजेडी खाता तक नहीं खोल सकी. कांग्रेस को भी सिर्फ एक सीट मिली.
लालू जेल से बाहर आए तो बदल सकता है गणित!
अब बिहार में बढ़ती चुनावी सरगर्मी के बीच ये चर्चा भी तेज हो रही है कि चारा घोटाले में रांची में सजा काट रहे लालू यादव चुनाव से पहले क्या जमानत पर बाहर आएंगे? लालू ने जमानत अर्जी दाखिल की है और जल्द ही इसपर सुनवाई हो सकती है. अगर लालू बाहर आते हैं और चुनाव में सक्रिय होते हैं तो विपक्षी खेमे के प्रचार अभियान को तेजी मिलेगी और लालू का करिश्माई चेहरा जेडीयू-बीजेपी को टक्कर देते हुए दिख सकता है.
ये चेहरे भी डालेंगे असर
इसके अलावा प्रशांत किशोर की सक्रियता, नीतीश से अलग हुए शरद यादव का महागठबंधन के साथ आना और असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी का अधिकांश सीटों पर दांव भी बिहार चुनाव में गणित बदल सकता है तो वहीं मुजफ्फरपुर इलाके में निषाद समुदाय के मुकेश सहनी का यूपीए के साथ जाना असर डाल सकता है.
क्या हैं इस बार के मुद्दे?
लोकसभा की तरह विधानसभा चुनाव में भी वोटिंग हो ये जरूरी नहीं. मोदी सरकार का काम, नीतीश का चेहरा जहां एनडीए की बड़ी पूंजी है वहीं स्थानीय मुद्दे भी कई सारे हैं जो चुनाव पर असर डाल सकते हैं. लॉकडाउन के कारण बिहार लौटे प्रवासी मजदूर, 4 लाख नियोजित शिक्षकों का मुद्दा, कोसी बेल्ट में बाढ़ का खतरा, बरसात के मौसम में बिहार की राजधानी पटना की बदहाली की तस्वीरें, कोरोना संकट पर उठे सवाल समेत कई ऐसे मुद्दे हैं जो इस चुनाव को अलग एंगल दे सकते हैं.
घर लौटे प्रवासी मजदूर बदलेंगे समीकरण?
बिहार चुनाव का सबसे बड़ा फैक्टर इस बार प्रवासी मजदूर माने जा रहे हैं. कोरोना संकट और मार्च में लॉकडाउन लगने से अबतक दूसरे राज्यों से 25 लाख से अधिक प्रवासी मजदूर बिहार लौटे हैं. बिहार सरकार ने इन्हें राज्य में काम दिलाने के लिए कई योजनाएं लॉन्च की है. लेकिन लॉकडाउन ने रोजी रोटी के लिए बिहार से पलायन के मुद्दे को फिर से उभारकर रख दिया है. विपक्षी दल आरजेडी के साथ ही प्रशांत किशोर ने भी इस सवाल को उछालना शुरू कर दिया है कि नीतीश कुमार जब 15 साल से बिहार में शासन कर रहे हैं तो उद्योग-धंधों के हालात क्यों नहीं बदले. इतनी बड़ी संख्या में लोगों को अब भी बाहर क्यों जाना पड़ता है कामकाज के लिए. इसके अलावा बाढ़ से बदहाली को लेकर कोई ठोस प्लान नहीं बन पाना भी बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है.
क्या है चुनाव की तैयारी?
कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच आरजेडी और एलजेपी चुनाव टालने के पक्ष में दिख रहे हैं लेकिन जेडीयू और बीजेपी समय पर चुनाव कराने के. 243 विधानसभा क्षेत्र वाले बिहार विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर तक है. 12 करोड़ से अधिक की आबादी वाले बिहार में इस बार 7 करोड़ 31 लाख मतदाता होंगे. चुनाव आयोग ने तमाम दलों के साथ बैठकें की हैं चुनाव तैयारियों को लेकर. माना जा रहा है कि सितंबर तक चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा हो सकती है. 2015 में बिहार विधानसभा का चुनाव पांच चरणों में आयोजित किया गया था.