महात्मा गांधी का चंपारण सत्याग्रह हो या जेपी की संपूर्ण क्रांति, देश की सियासत को दिशा दिखाते आए बिहार में इस साल अक्टूबर-नवंबर तक विधानसभा के चुनाव होने हैं. चुनावी तैयारियों में जुटी सियासी पार्टियां अपना-अपना 'वोट गणित' सेट करने में जुट गई हैं. अगले पांच साल तक बिहार की सत्ता पर किसका राज होगा? यह तय करने के लिए विधानसभा चुनाव के कार्यक्रम का ऐलान अभी होना है लेकिन तैयारियों के मोर्चे पर दुंदुभि बज चुकी है. हर दल का फोकस युवा आबादी पर है.
बिहार की कुल आबादी में 25 वर्ष से कम उम्र के युवाओं की हिस्सेदारी आधे से अधिक है. 2023 के जातिगत सर्वे के मुताबिक बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 है. इसमें से करीब 58 फीसदी आबादी 25 साल से कम उम्र के युवाओं की है. युवा आबादी के लिहाज से देखें तो देश के सबसे अधिक युवा आबादी वाले राज्य में चुनाव से पहले हर दल संख्याबल के लिहाज से इस बड़े वर्ग को साधने, अपने पाले में लाने की कवायद में जुटा दिख रहा है. विधानसभा चुनाव से पहले युवा बिहार की सियासत का सेंटर पॉइंट बन गए हैं.
हर दल का युवाओं पर फोकस
सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) हो या विपक्षी महागठबंधन, या फिर बिहार में चुनावी डेब्यू करने को तैयार जन सुराज, हिंद सेना और इंडियन इंकलाब पार्टी जैसे दल, सभी का फोकस युवाओं पर है. लोकतंत्र में संख्याबल का ही महत्व है. संख्याबल के लिहाज से देखें तो युवा वर्ग जातीय गणित में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) आबादी हटा दें तो बाकी वर्गों की कुल आबादी से भी अधिक है. नैरेटिव की जंग भी एक बड़ी वजह है. एक वजह यह भी हो सकती है कि राजनीतिक दलों की कोशिश जातीय राजनीति मकड़जाल में उलझी बिहार की सियासत में इस भावना से परे अलग-अलग जाति, वर्ग के लोगों को एक बैनर तले लाया जाए.
युवाओं को लेकर हिंदी पट्टी का एक बहुत चर्चित नारा रहा है- जिस ओर जवानी चलती है, उस ओर जमाना चलता है. साल 2014 के आम चुनाव और इसके बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के विजय रथ के पीछे भी युवाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को श्रेय दिया जाता है. पिछले विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) 75 विधानसभा सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरा और उसकी अगुवाई वाला महागठबंधन 110 सीटें जीतने में सफल रहा, तो इसके पीछे 10 लाख सरकारी नौकरी के वादे का बड़ा रोल माना जाता है. 2019 के लोकसभा चुनाव में 40 में से महज एक सीट ही जीत सके महागठबंधन को 2024 में नौ सीटें जीतने में सफल रहा तो इसके पीछे भी युवाओं के बीच तेजस्वी यादव की लोकप्रियता और बढ़ी स्वीकार्यता को ही वजह बताया गया.
युवाओं से जुड़े मुद्दे क्या
बिहार की युवा आबादी की बात करें तो सबसे बड़ा मुद्दा शिक्षा और रोजगार है. सामाजिक समस्या की शक्ल ले चुका पलायन भी अब राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. पलायन करने वाली आबादी में बड़ी भागीदारी अच्छी शिक्षा, बेहतर रोजगार की चाह रखने वाले युवाओं की है. श्रम एवं रोजगार मंत्रालय (केंद्रीय) के आंकड़ों के मुताबिक बिहार के करीब तीन करोड़ लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में रह रहे हैं. हर साल करीब 50 लाख लोग शिक्षा और रोजगार के लिए बिहार से पलायन करते हैं.
युवाओं को लेकर किसका प्लान क्या
युवा मतदाताओं को अपने पाले में लाने की कोशिश में जुटी पार्टियों की भी अपनी-अपनी रणनीति है. एनडीए के सबसे बड़े घटक भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की रणनीति ही युवाओं पर केंद्रित रहती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'GYAN' फॉर्मूले में वाई युवाओं का ही प्रतिनिधित्व करता है. पीएम मोदी ऐसे युवाओं को राजनीति में लाने के मिशन का ऐलान भी कर चुके हैं, जिनका कोई राजनीतिक बैकग्राउंड न हो. सम्राट चौधरी जैसे फेस को आगे करना भी बीजेपी की यूथ सेंट्रिक पॉलिटिक्स से जोड़कर ही देखा जाता है.
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बिहार में एनडीए सरकार की अगुवाई कर रही जनता दल (यूनाइटेड) नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री रहते रोजगार की दिशा में किए काम जनता के बीच लेकर जा रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2020 में सात निश्चय- दो लागू होने के बाद 9 लाख 38 हजार से अधिक लोगों को सरकार नौकरियां दिए जाने, विधानसभा चुनाव तक सरकारी नौकरी पाने वालों की संख्या 12 लाख के पार पहुंचने के दावे कर रहे हैं. नीतीश कुमार सरकारी नौकरियों समेत 50 लाख लोगों को रोजगार बड़ी उपलब्धि बता रहे हैं. चिराग पासवान भी युवाओं को एनडीए के पक्ष में एकजुट करने की कवायद में जुटे हैं.
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तेजस्वी यादव और आरजेडी नीतीश कुमार की अगुवाई वाली महागठबंधन सरकार के समय सरकारी नौकरियों को अपनी उपलब्धि के रूप में जनता के बीच लेकर जा रहे हैं. वहीं, कांग्रेस ने भी कन्हैया कुमार के रूप में अपना युवा चेहरा आगे कर दिया है. युवाओं के बीच महागठबंधन की जमीन मजबूत करने को कोशिश में कन्हैया कुमार ने 'पलायन रोको, रोजगार दो' पदयात्रा निकाली थी. चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर (पीके) पलायन के मुद्दे को लगातार उठा रहे हैं.
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पीके यह वादा कर रहे हैं कि 10 हजार तक के रोजगार के लिए युवाओं को बिहार से बाहर नहीं जाना होगा. भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी शिवदीप लांडे की हिंद सेना और पान समाज के आईपी गुप्ता की इंडियन इंकलाब पार्टी का टार्गेट भी वोटर युवा ही है. सभी दल पलायन रोकने की बात तो कर रहे हैं, लेकिन रोकेंगे कैसे? इसे लेकर कोई फूलप्रूफ प्लान किसी के पास नहीं है.