बिहार के विधानसभा चुनाव को लेकर सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी महागठबंधन, दोनों ही गठबंधन घटक दलों के बीच की गांठें दुरुस्त करने में जुट गए हैं. एनडीए के घटक दलों के नेता जगह-जगह प्रेस कॉन्फ्रेंस कर, समन्वय बैठकें कर एकजुटता का संदेश दे चुके हैं. वहीं, विपक्षी महागठबंधन भी तेजस्वी यादव की अगुवाई में कोऑर्डिनेशन कमेटी गठित कर चुका है. दोनों ही गठबंधन एकजुटता होकर चुनाव मैदान में उतरने के दावे कर रहे हैं. ऐसे में बात उन छोटे दलों को लेकर भी हो रही है, जो गठबंधन की सियासत में अहम हो जाते है. बिहार सीरीज में आज बात ऐसे ही छोटे, लेकिन अहम दलों की.
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास)
चाचा पशुपति पारस की बगावत के बाद चिराग पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) नाम से अपनी पार्टी बनाई. चिराग की पार्टी सत्ताधारी एनडीए में शामिल है और वह खुद अपनी पार्टी के कोटे से केंद्र सरकार में मंत्री हैं. एलजेपी (आर) का बेस वोट दलित, पासवान वोटबैंक है. बिहार की जातिगत जनगणना के मुताबिक सूबे में 69 लाख 43 हजार पासवान हैं. यह सूबे की कुल जनसंख्या के अनुपात में देखें तो करीब 5.31 फीसदी है.
यह आंकड़े अकेले जीत सुनिश्चित करने की स्थिति में भले ही नहीं नजर आ रहे हों, किसी के साथ आ जाएं तो उसकी जीत के चांस जरूर बढ़ा सकते हैं. ऐसा पिछले चुनाव में देखने को भी मिला था, जब चिराग ने एनडीए से अलग राह ले ली थी और नीतीश की अगुवाई वाली जेडीयू की सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए थे. जेडीयू सीटों के लिहाज से तीसरे नंबर पर खिसक गई तो उसके लिए नीतीश कुमार ने चिराग की पार्टी के सिर ही ठीकरा फोड़ा था.
राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी
राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस की पार्टी है. पशुपति पारस ने रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग को लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा दिया था. पशुपति ने पार्टी के नाम और निशान पर दावेदारी कर केंद्र की एनडीए सरकार को समर्थन दे दिया था. पशुपति केंद्र में मंत्री भी रहे. चुनाव आयोग ने लोक जनशक्ति पार्टी का नाम-निशान फ्रीज कर दिया था.
पशुपति ने आरएलजेपी नाम से अपनी पार्टी बनाई. इसका दावा भी पासवान वोटबैंक पर ही है. चिराग की पार्टी लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए में शामिल हो गई थी. इसके बाद से ही पशुपति गठबंधन में हाशिए पर चले गए. आरएलजेपी को पिछले साल लोकसभा चुनाव में एनडीए ने एक भी सीट नहीं दी थी. पशुपति खुद अपनी सीट अपने लिए भी नहीं ले सके थे. अब वह एनडीए से नाता तोड़ने का ऐलान कर चुके हैं. पशुपति पारस की पार्टी के महागठबंधन में शामिल होने के कयास हैं. पशुपति की पार्टी को साथ लाकर आरजेडी की रणनीति दलित मतदाताओं को संदेश देने की हो सकती है.
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (लोकतांत्रिक)
केंदीय मंत्री जीतनराम मांझी की अगुवाई वाली हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (लोकतांत्रिक) एनडीए का घटक है. बिहार में एनडीए की अगुवाई मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) कर रही है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी मुसहर जाति से आते हैं, जो महादलित कैटेगरी में शामिल है. मांझी की पार्टी जिस महादलित वोटबैंक पर दावा करती है, उसकी आबादी सूबे में करीब 14 फीसदी है. महादलित वर्ग में भी जीतनराम मांझी की अपनी जाति मुसहर की आबादी 3.09 फीसदी है. जीतनराम मांझी खुद केंद्र सरकार में मंत्री हैं, वहीं उनके बेटे संतोष सुमन नीतीश कुमार की अगुवाई वाली बिहार सरकार में मंत्री हैं.
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा
केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की अगुवाई वाली राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा (आरएलएम) भी सत्ताधारी एनडीए में शामिल है. उपेंद्र कुशवाहा, कोइरी जाति से आते हैं. कोइरी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लव-कुश (कुर्मी-कुशवाहा) समीकरण की एक अहम धुरी है. कोइरी समाज की आबादी बिहार में 4.21 फीसदी है. शून्य विधायकों वाली पार्टी आरएलएम की अहमियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उपेंद्र कुशवाहा को लोकसभा चुनाव में हार के बाद राज्यसभा से संसद में लाकर एनडीए ने केंद्र सरकार में मंत्री बनाया.
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विकासशील इंसान पार्टी
मुकेश सहनी की अगुवाई वाली विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) पिछले बिहार चुनाव में एनडीए के साथ थी. वीआईपी के उम्मीदवारों को चार सीटों पर जीत भी मिली थी लेकिन बाद में यह सभी विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे. मुकेश सहनी इस बार विपक्षी महागठबंधन में हैं और सरकार बनने की स्थिति में डिप्टी सीएम के लिए अपनी दावेदारी कर रहे हैं. आबादी के लिहाज से देखें तो बिहार में सहनी यानी मल्लाह बिरादरी की आबादी 2.61 फीसदी है.
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वीआईपी निषाद वोटों पर दावेदारी जताती है. मल्लाह के साथ ही समाज की अन्य उपजातियों को भी जोड़ लें तो जातिगत सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक निषाद जाति की कुल आबादी 9.65 फीसदी पहुंचती है. एक-एक उपजाति के हिसाब से देखें तो अमात की जनसंख्या 0.21, केवट की 0.71, केवर्त की 0.20, कोल की 0.01, गोड़ी छाबी की 0.26, गोंड, 0.40, गंगई (गणेश) की 0.11 फीसदी है.
गंगोता की 0.49, घटवार की 0.09, चायं की 0.07, तियर की 0.18, तुरहा की 0.35, घिमर की 0.0007, नोनिया की 1.91, बिंद की 0.98, बेलदार की 0.36, मझवार की 0.002 फीसदी आबादी है. निषाद समाज की उपजातियों में मोरियारी जाति की आबादी कुल आबादी का 0.019 और वनपर की आबादी 0.015 फीसदी है.
इन छोटे दलों का वोट चंक देखें तो दो से छह फीसदी के बीच है. देखने में यह आंकड़ों के कैनवास पर बहुत छोटा नजर आता है. यह वोटबैंक अकेले जीत सुनिश्चित करने की स्थिति में भले ही न हो, किसी दल के साथ जु़ड़ जाए तो उसकी जीत की संभावनाएं बढ़ाने की स्थिति में जरूर है. करीबी मुकाबले वाली सीटों पर इन छोटे-छोटे वोटबैंक वाली पार्टियां जी-हार तय करने में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं.