बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 121 सीटों पर वोटिंग में महज तीन दिन बाकी हैं, जिसके लिए प्रचार जोर-शोर से जारी है। पहले फेज की 121 सीटों पर मंगलवार को प्रचार का शोर थम जाएगा. 6 नवंबर को होने वाले चुनाव में लालू प्रसाद यादव के सियासी वारिस तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव की अग्निपरीक्षा होनी है तो बीजेपी के दोनों उपमुख्यमंत्रियों के भाग्य का फैसला होने वाला है.
बीजेपी के बिहार में सिपहसालार माने जाने वाले सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा का इम्तिहान पहले चरण में होना है. उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी तारापुर विधानसभ सीट से किस्मत आजमा रहे हैं तो उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा लखीसराय सीट से एक बार फिर मैदान में हैं.
वहीं, लालू प्रसाद यादव के दोनों ही बेटों- तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव का इम्तिहान पहले फेज में है. तेजस्वी यादव राघोपुर सीट से जीत की हैट्रिक लगाने उतरे हैं तो तेज प्रताप यादव इस बार महुआ सीट से किस्मत आजमा रहे हैं. तेजस्वी जहां आरजेडी से हैं तो तेज प्रताप अपनी पार्टी से उतरे हैं.
सम्राट चौधरी के लिए साख का सवाल
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सम्राट चौधरी पहली बार अपने गृह जिला तारापुर सीट से चुनाव लड़ने जा रहे हैं. तारापुर से सम्राट चौधरी के पिता शकुनी चौधरी 23 वर्षों तक प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. इस सीट पर 3 साल तक सम्राट चौधरी की मां पार्वती देवी भी यहां से विधायक रही हैं. अब परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सम्राट चौधरी के कंधों पर है, लेकिन तारापुर की सीट हमेशा जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के पास रही है.
2015 के चुनाव में जेडीयू के मेवालाल चौधरी यहां से चुनाव जीते थे. 2020 में भी मेवालाल चौधरी फिर से चुनाव जीते. हालांकि उनका निधन होने के कारण उपचुनाव हुआ और जेडीयू के राजीव कुमार सिंह यहां से चुनाव जीते. पिछले 30 सालों से यह विधानसभा सीट बीजेपी के पास नहीं थी. इस बार जेडीयू ने सम्राट चौधरी के लिए यह सीट बीजेपी को दी है। सम्राट चौधरी के लिए भी लड़ाई आसान नहीं है.
सम्राट चौधरी के सामने कुल 13 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन उनकी असल लड़ाई आरजेडी के अरुण कुमार साहू और प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज के उम्मीदवार संतोष सिंह से है। साथ ही बसपा से लेकर दूसरी पार्टियां भी किस्मत आजमा रही हैं. ऐसे में सम्राट चौधरी जीत जाते हैं तो उनका सियासी रुतबा बढ़ेगा और यदि हार गए तो उनका कद घट जाएगा. आरजेडी के अरुण कुमार साहू बीजेपी के परंपरागत वोटों में सेंधमारी करते नजर आ रहे हैं, जिसके चलते सम्राट चौधरी की दिक्कतें काफी बढ़ गई हैं.
विजय कुमार सिन्हा क्या होंगे विजय?
भूमिहार बहुल माने जाने वाली लखीसराय सीट से बीजेपी के दिग्गज नेता और उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा मैदान में हैं. लखीसराय सीट से लगातार विजय कुमार सिन्हा चुनाव जीतते रहे हैं, लेकिन इस बार सियासी राह काफी मुश्किलों भरी मानी जा रही है. बीजेपी के फायर ब्रांड नेता माने जाने वाले विजय कुमार सिन्हा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर (एंटी इनकंबेंसी) का भी असर है, जिसे खत्म करने के लिए काफी मशक्कत भी करनी पड़ रही है.
लखीसराय सीट से जीत की हैट्रिक लगा चुके विजय कुमार सिन्हा चौथी बार जीत दर्ज करने की उम्मीद लेकर उतरे हैं, लेकिन महागठबंधन की ओर से कांग्रेस प्रत्याशी बड़हिया के अमरेश कुमार अनीश ने ताल ठोक रखी है. विजय कुमार सिन्हा के सभी विरोधी इस बार एकजुट हैं और कांग्रेस के लिए मशक्कत कर रहे हैं.
पिछली बार पूर्व विधायक फुलैना सिंह और सुजीत कुमार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उतरने से अमरेश कुमार जीत नहीं सके थे. फुलैना सिंह को 10,938 और सुजीत कुमार को 11,570 वोट मिला था। इस बार पूर्व विधायक फुलैना सिंह और सुजीत कुमार दोनों ही कांग्रेस प्रत्याशी अमरेश कुमार अनीश का समर्थन कर उन्हें जिताने में लगे हैं. इसके चलते विजय कुमार सिन्हा की राह आसान नहीं है. इस बार लड़ाई कठिन है और ऐसे में यदि वह चुनाव जीतते हैं तो विजय सिन्हा का कद पार्टी में और बढ़ेगा.
तेजस्वी यादव लगा पाएंगे जीत की हैट्रिक?
पहले ही चरण में तेजस्वी यादव की सीट का फैसला हो जाएगा. तेजस्वी यादव राघोपुर सीट से लगातार दो बार के विधायक हैं और इस बार जीत की हैट्रिक लगाने के लिए उतरे हैंय बीते चुनावों में कोई भी दल उनके मतों के अंतर के करीब तक नहीं पहुंच पाया है.
इस बार तेजस्वी यादव महागठबंधन से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं, जिनके सामने कुल 19 उम्मीदवार मैदान में हैं. इस सीट पर बीजेपी के सतीश कुमार यादव ने ताल ठोक रखी है तो जन सुराज पार्टी से चंचल कुमार और तेज प्रताप की पार्टी जनशक्ति जनता दल के प्रेम कुमार मैदान में हैं.
2020 के चुनाव में यहां पर आरजेडी और बीजेपी के बीच ही सीधी टक्कर थी. यहां तेजस्वी यादव को 97,404 वोट और सतीश कुमार यादव को 59,230 वोट मिले थे. दोनों ही उम्मीदवार यादव समाज से थे और बीजेपी ने फिर भरोसा जताया है. यहां करीब 35 फीसद यादव समुदाय की आबादी है, जो निर्णायक मानी जाती है.
यादव के बाद राघोपुर में दलित मतदाता करीब 18 फीसद हैं और करीब इतनी ही राजपूत मतदाताओं की भी संख्या है. राघोपुर में ब्राह्मण करीब 3 फीसद और करीब इतनी ही मुस्लिम आबादी भी है. 1998 के बाद से राघोपुर सीट पर लगभग आरजेडी का एकछत्र दबदबा रहा है, सिवाय 2010 के विधानसभा चुनाव के, जब पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था. लालू परिवार की परंपरागत सीट माने जाने वाली राघोपुर सीट पर तेजस्वी को बीजेपी से ही नहीं बल्कि अपने भाई की पार्टी से भी दो-दो हाथ करना पड़ रहा है.
तेज प्रताप क्या महुआ में फंस गए हैं?
आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव वैशाली के महुआ से किस्मत आजमा रहे हैं, लेकिन इस बार उनकी राह आसान नहीं है. तेज प्रताप पार्टी और परिवार से बाहर हैं, जिसके चलते महुआ के सियासी समीकरण में उलझे हुए हैं. 2015 में तेज प्रताप महुआ सीट से जीत कर सियासी पारी का आगाज किया था, लेकिन 2020 में हसनपुर चले गए थे और अब दोबारा से आए हैं.
तेज प्रताप अपनी पार्टी जनशक्ति जनता दल से चुनावी मैदान में हैं, जिनके सामने आरजेडी से विधायक मुकेश रौशन और एनडीए की तरफ से लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के संजय सिंह मैदान में हैं. दोनों प्रमुख गठबंधन की ओर से जबरदस्त मोर्चाबंदी के बीच तेज प्रताप और डॉ. आसमां के मैदान में डटे होने से महुआ उलझन में फंस गया है. इन सबके बीच महुआ में वोटों के बिखराव ने तेज प्रताप की टेंशन बढ़ा रखी है, क्योंकि लालू परिवार मुकेश रौशन के साथ खड़ा है. ऐसे में तेज प्रताप के लिए महुआ में इस बार जीत के लिए कड़ा मशक्कत करना पड़ रहा है.