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असम: 23 साल से 'डाउटफुल' वोटर की कैटेगरी में 26 मुस्लिम महिलाएं, SC से लगाई गुहार

संविधान में मतदाताओं के लिए संदिग्ध सूची का प्रावधान नहीं है. इतने सालों में निर्वाचन अधिकारियों ने न तो कभी ये बताया कि किन दस्तावेजों या सत्यापन प्रक्रिया के अभाव में उनका मताधिकार रोका गया है. न ही किसी ने ये बताया कि संदिग्ध सूची से नाम हटवाने और मतदाता सूची में नाम जुड़वाने की प्रक्रिया क्या है?

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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 1997 से 'डाउटफुल' वोटर की कैटेगरी में हैं महिलाएं
  • 'डाउटफुल' होने की वजह प्रशासन को पता नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने असम की 26 मुस्लिम महिलाओं की उस याचिका पर केंद्र और असम सरकार के साथ साथ निर्वाचन आयोग से जवाब तलब किया है जिसमें 23 साल से उनके जैसे हजारों वोटरों को बिना समुचित कारण बताए सिर्फ संदेह के आधार पर मताधिकार से वंचित रखा गया है. 

असम के बारपेटा निर्वाचन क्षेत्र की निवासी तहमीना खातून सहित 26 महिलाओं ने अपनी याचिका में कहा है कि दो साल पहले आरटीआई के तहत दिए आवेदन पर उनको वोटर रजिस्ट्रेशन अधिकारी के दफ्तर से जवाब आया कि 1997 से ही उनके नाम 'डाउटफुल' में दर्ज है. लेकिन वे 'डाउटफुल' किस वजह से हैं, इसका कोई रिकॉर्ड विभाग के पास नहीं है. 

याचिकाकर्ताओं की वकील जयश्री सतपुते और तृप्ति पोद्दार ने दलील रखी कि बारपेटा इलाके के कई गांवों में सत्तर फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है. आरटीआई के जवाब में कहा गया कि रिकॉर्ड ये तो बताते हैं कि 23 साल पहले इस इलाके के कई लोगों के नाम संदिग्ध सूची में आए थे. लेकिन उस समय उनके दस्तावेजों में क्या कोर कसर थी इसका ब्यौरा उपलब्ध नहीं है. 

बता दें कि संविधान में मतदाताओं के लिए संदिग्ध सूची का प्रावधान नहीं है. इतने सालों में निर्वाचन अधिकारियों ने न तो कभी ये बताया कि किन दस्तावेजों या सत्यापन प्रक्रिया के अभाव में उनका मताधिकार रोका गया है. न ही किसी ने ये बताया कि संदिग्ध सूची से नाम हटवाने और मतदाता सूची में नाम जुड़वाने की प्रक्रिया क्या है? रिपोर्ट के अनुसार ये मताधिकार के बुनियादी हक से किसी नागरिक को वंचित रखने का मामला है.

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याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में ये गुहार भी लगाई है कि मतदाता सूची में नाम ना होने की वजह से उनके मतदान पहचान पत्र नहीं बने. इसी वजह से उनको कई सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया.

अब केंद्र, असम की सरकार और निर्वाचन आयोग चार हफ्ते में अपना जवाब सुप्रीम कोर्ट को सौंपेंगे. यानी कि इस बात की बहुत कम उम्मीद है कि इस विधान सभा चुनाव में याचिकाकर्ता वोट डाल पाएंगे. 

असम में 1.08 लाख D-वोटर्स

एक रिपोर्ट के अनुसार असम में 1 लाख 8 हजार डी वोटर्स हैं जो इस विधानसभा चुनाव में वोट डाल नहीं पाएंगे. असम की राजधानी गुवाहाटी के निवासी समीर देवनाथ और उनके पिता धीरेंद्र देवनाथ दोनों ही इस बार डी वोटर्स की कैटेगरी में हैं दोनों ही इस चुनाव में वोट नहीं डाल पाएंगे.

समीर देवनाख ने कहा कि वे भारतीय नागरिक हैं, लेकिन चुनाव आयोग ने उन्हें, उनके पिता और दो बेटियों को संदिग्ध वोटर्स की कैटेगरी में डाल दिया है. 

समीर देवनाथ ने कहा कि 1997 से उनके पिता का नाम डी वोटर्स की कैटेगरी में डाल दिया गया है, उन्होंने कहा कि जब वह लखीमपुर में रहते थे तो वोट देते थे, लेकन जैसे ही वह गुवाहाटी आए उनका नाम डी वोटर्स की कैटेगरी में डाल दिया गया. उन्होंने कहा कि वे कई बार इस बाबत ट्रिब्यूनल गए लेकिन इसकी वजह उन्हें नहीं पता चल पाई. 
 

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