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BEd पास किसान के बेटे ने क्रैक किया NEET, अब बनेगा गांव का पहला डॉक्‍टर

आशु ने बताया कि उसके पिता राजेश किराड़ ने BEd किया था. नौकरी नहीं मिली तो खुद को खेती में खपा दिया. मां पढ़ी लिखी नहीं हैं. घर की आर्थिक स्थति ठीक नहीं है, फिर भी वे उसको डॉक्टर बनाना चाहते थे.

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NEET Topper Ashu (Left) with Father (Right)
NEET Topper Ashu (Left) with Father (Right)

Success Story: जिंदगी में कुछ पाना हो तो खुद पर ऐतबार रखना, सोच पक्की और कदमों में रफ्तार रखना. कामयाबी मिल जाएगी एक दिन निश्चित ही तुम्हें, बस खुद को आगे बढ़ने के लिए तैयार रखना... यह लाइनें राजस्‍थान के बारां जिले के समरानियां के निकट स्थित रामपुर उप्रेती के आशु किराड़ पर सटीक बैठती हैं. आशु ने हौसला खोए बिना एक नहीं, दो नहीं, तीन बार NEET एग्‍जाम दिया और आखिरकार सफलता पाई. अब वह अपने गांव का पहला डॉक्टर बनाने वाला है.

आशु ने बताया कि उसने 10वीं कक्षा में 91.6% और 12वीं में 92% से अधिक नंबर हासिल किए थे. 12वीं के साथ NEET परीक्षा दी तो 370 ही नंबर आए. थोड़ा झटका लगा लेकिन अगले साल ऑनलाइन कोचिंग की. इसमें इतने नंबर नहीं आ सके कि सरकारी मेडिकल कॉलेज मिल जाए. एक बार तो हिम्मत जवाब दे गई. लेकिन उसके सामने अपना सपना था, इसलिए फौरन हौसला बटोरा और अपनी कमियों को समझने और भावी रणनीति बनाने में जुट गया. 

आशु ने पाया कि ऑनलाइन कोचिंग में क्लासरूम वाली बात नहीं है. यह उबाऊ और थका देने वाली है. इसमें न तो समझाकर रोकने-टोकने वाले शिक्षक हैं ओर न ही क्लासरूम की प्रतिस्पर्धा का चैलेंज, इसलिए अगले साल से मोशन एजुकेशन से नीट की क्लासरूम कोचिंग लेना शुरू की.

मोशन में स्कॉलरशिप के रूप में उसकी 80 प्रतिशत फीस माफ हो गई. वह रेगुलर क्‍लासेज़ लेने लगा. कोचिंग के मॉड्यूल समय पर हल करता और कोई डाउट रह जाता तो तत्काल क्लीयर करता. उसने खूब प्रैक्टिस की, पिछले सालों में हुए NEET पेपर के सवाल हल किए. कोचिंग के सभी टेस्ट दिए. टेस्ट में जो सवाल गलत होते, उनको दोस्तों के साथ हल करता. आखिरकार आशु और मोशन टीम की मेहनत रंग लाई. इस बार NEET एक्जाम में 657 नंबर आए जिसके साथ ही ऑल इंडिया रैंक (AIR) 5254 और कैटेगरी रैंक 1796 मिली.

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आशु ने बताया कि उसके पिता राजेश किराड़ ने BEd किया था. नौकरी नहीं मिली तो खुद को खेती में खपा दिया. मां पढ़ी लिखी नहीं हैं. घर की आर्थिक स्थति ठीक नहीं है, फिर भी वे उसको डॉक्टर बनाना चाहते थे. ऐसे में जब टेस्ट में नंबर काम आते थे तो भविष्य को लेकर चिंता होती थी. कई बार मन घबराता था, लेकिन अक्सर निराशा के इन पलों में वह 2-3 घंटे सो जाता था. इसके बाद बाहर निकलकर दोस्तों के साथ चाय पीता. जब देखता की सभी पढाई में लगे हैं तो वह भी जुट जाता, फिर कुछ याद नहीं रहता.

आशु के पिता राजेश बताते हैं कि मोशन कोचिंग के बारे में उनको इंटरनेट से पता चला था. YouTube पर एनवी सर के वीडियो देखे थे. मोशन हमारे भरोसे पर भी खरा उतरा. आशु की सफलता में मोशन के फैकल्टीज का बड़ा योगदान है. मोशन में हर बच्चे पर पूरा ध्यान दिया जाता है. अब वे अपने दूसरे बेटे अंकेश को भी नीट की तैयारी के लिए लिए मोशन की हवाले कर रहे हैं.

 

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