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कोटा में छात्रों पर दोहरा बोझ! कोचिंग के साथ डमी स्कूलों से भी कर रहे पढ़ाई

कोटा के जिला कलेक्टर ओपी बुनकर ने पीटीआई को बताया कि हमने यह भी देखा है कि कुछ छात्र जिन्होंने डमी स्कूलों में दाखिला लिया है, वे प्रवेश परीक्षा में पास तो होते हैं, लेकिन बोर्ड परीक्षा में 75 प्रतिशत अंक प्राप्त नहीं कर पाते हैं जोकि आईआईटी में प्रवेश के लिए यही एक शर्त होती है. इसी कारण छात्र दोहरे बोझ के नीचे रहते हैं.

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प्रतीकात्मक फोटो
प्रतीकात्मक फोटो

इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए हर साल 2.5 लाख से अधिक छात्र कोटा आते हैं. बिजी शेड्यूल, कड़ा कंपटीशन, बेहतर करने का लगातार दबाव, माता-पिता की अपेक्षाओं का बोझ और घर की याद वहां के छात्रों के आम संघर्षों में से हैं. 

यहां इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करने वाले करोड़ों छात्र डमी स्कूलों में प्रवेश लेना पसंद करते हैं ताकि वे पूरी तरह से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी पर ध्यान केंद्रित कर सकें. डमी स्कूलों में दाख‍िले के बाद छात्रों को कक्षाओं में हिस्सा लेने की आवश्यकता नहीं है और वे सीधे बोर्ड परीक्षा में शामिल हो सकते हैं. 

एक छात्रा ने पीटीआई को बताया कि‍ कई छात्र अपने गृहनगर के डमी स्कूल में दाख‍िला लेते हैं ताकि वे बोर्ड परीक्षा से दो महीने पहले घर वापस जा सकें. कोचिंग पाठ्यक्रम भी तब तक खत्म हो जाते हैं. फिर दो महीने बोर्ड परीक्षाओं के लिए समर्पित होते हैं और फिर मुख्य परीक्षा के लिए रिवीजन करते हैं. 

मेडिकल प्रवेश परीक्षा NEET की तैयारी कर रहे रुड़की के हर्षवर्धन ने भी अपने गृहनगर के एक डमी स्कूल में दाखिला लिया है. उन्होंने कहा कि स्कूल में अटेंडेंस की कोई समस्या नहीं है और छात्रों से किसी इंटरनल एग्जाम में शामिल होने की भी उम्मीद नहीं की जाती है. 

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कोटा में खुले हैं कई डमी स्कूल

कोटा शहर का आलम यह है कि यहां अलग-अलग डमी स्कूलों के पोस्टर पूरे शहर में फैले हुए हैं. इनमें 15,000 रुपये से लेकर 50,000 रुपये तक के रेट भी लिखे हैं. दरअसल डमी स्कूल उन बोर्डों के आधार पर अलग-अलग दरें लेते हैं जिनसे वे संबद्ध हैं. 

कुछ राज्यों के छात्रों के लिए मेडिकल और इंजीनियरिंग संस्थानों में उपलब्ध कोटे को ध्यान में रखते हुए अभ्यर्थी डमी स्कूलों का चयन करते हैं. उदाहरण के लिए जिन उम्मीदवारों ने अपनी कक्षा 11 और 12 की शिक्षा दिल्ली में पूरी की है, उन्हें दिल्ली में स्टेट कोटे के तहत दिल्ली के मेडिकल कॉलेजों में कोटा मिलता है. 

कोटा में प्रतियोगी परीक्षा के अभ्यर्थियों के बीच आत्महत्याओं की संख्या इस साल रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने के कारण ही सरकार और विशेषज्ञों ने "डमी स्कूलों" की अवधारणा के खिलाफ चेतावनी दी है. इसमें कहा गया है कि नियमित स्कूलों में न जाने वाले छात्रों के पर्सनेलिटी डेवलपमेंट पर असर करता है. 

कोटा में बढ़ रही आत्महत्या दर
आध‍िकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इस साल कोटा में 23 छात्रों ने आत्महत्या की है, जो देश के कोचिंग हब के लिए सबसे ज्यादा है. वहीं पिछले साल यह आंकड़ा 15 था. उन्होंने कहा कि हमने डमी स्कूलों का मुद्दा सरकार के सामने उठाया है. यह अवधारणा वास्तव में नकारात्मक है और इस प्रथा को रोकने की जरूरत है. 

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कोटा के जिला कलेक्टर ओपी बुनकर ने पीटीआई को बताया कि हमने यह भी देखा है कि कुछ छात्र जिन्होंने डमी स्कूलों में दाखिला लिया है, वे प्रवेश परीक्षा में पास तो होते हैं, लेकिन बोर्ड परीक्षा में 75 प्रतिशत अंक प्राप्त नहीं कर पाते हैं. वहीं, आईआईटी में प्रवेश के लिए यही एक शर्त होती है कि बोर्ड परीक्षा में 75 प्रतिशत नंबर होना अनिवार्य होता है. इसी कारण छात्र दोहरे बोझ के नीचे रहते हैं. इसलिए कोचिंग 12वीं कक्षा के बाद ही शुरू होनी चाहिए. 

मुख्यमंत्री भी उठा चुके हैं ये मुद्दा
बढ़ती छात्र आत्महत्याओं के मद्देनजर पिछले महीने बुलाई गई बैठक में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस मुद्दे को उठाया था. उन्होंने डमी स्कूलों को "फर्जी स्कूल" कहा. 
उन्होंने कहा था कि कक्षा 9 और 10 के छात्रों को कोचिंग संस्थानों में रजिस्टर्ड किया जाता है. आप एक तरह से अपराध कर रहे हैं. जैसे कि आईआईटी भगवान है. जैसे ही छात्र कोचिंग संस्थानों में आते हैं, उनका नामांकन फर्जी स्कूलों में हो जाता है. 

गहलोत ने कहा था कि यह माता-पिता की भी गलती है... छात्रों को डमी स्कूलों में नामांकित किया जाता है और वे स्कूल नहीं जाते हैं. उन पर बोर्ड परीक्षा पास करने और प्रवेश परीक्षा की तैयारी का दोहरा बोझ है. 

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हाल ही में पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी कहा था कि डमी स्कूलों के मुद्दे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. प्रधान ने कहा था, "हालांकि ऐसे छात्रों की संख्या कुल छात्रों की संख्या की तुलना में बहुत अधिक नहीं है...लेकिन समय आ गया है कि इस विषय पर गंभीर चर्चा और विचार-विमर्श किया जाए."

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