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सरकारी इंतजाम: ट्रैक्टर में भरकर सेंटर पहुंचाए जा रहे बोर्ड परीक्षा छात्र

ये ट्रैक्टर दरअसल सरकारी शिक्षा का बोझ खींच रहा है. झारखंड के एक सरकारी आवासीय विद्यालय के बच्चों की जान के साथ खिलवाड़ करके उन्हें परीक्षा केंद्र ले जाया जा रहा है. इन 52 बच्चों को परीक्षा केंद्र पहुंचाने के लिए सरकार ने कुछ ऐसे ही इंतजाम किए हैं.

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ट्रैक्टर से स्कूल जाते वक्त (Photo: aajtak.in)
ट्रैक्टर से स्कूल जाते वक्त (Photo: aajtak.in)

झारखण्ड की हेमंत सरकार सरकारी स्कूल को प्राइवेट स्कूल की टक्कर में लाने का लाख दावा करती है, लकिन जमीनी हकीकत वही ढाक के तीन पात हैं. यहां बेहतर गुणवत्तापूर्ण सरकारी शिक्षा का बोझ ट्रैक्टर पर है. इन दिनों झारखण्ड में मैट्रिक और इंटर की परीक्षा चल रही है. ऐसे में चक्रधरपुर के चैनपुर से आई एक तस्वीर ने सबको चौंका दिया है. इस तस्वीर को देख सब सरकारी व्यवस्था की खिल्ली उड़ा रहे हैं. लेकिन इस तस्वीर को देखकर झारखण्ड के शिक्षा विभाग को शर्म भी नहीं आ रही है.

चक्रधरपुर के चैनपुर में स्थित कोल्हान आवासीय विद्यालय के 52 बच्चों को सोमवार को एक साथ एक ही ट्रैक्टर में भेड़-बकरी मवेशियों की तरह भरकर परीक्षा दिलाने के लिए परीक्षा केंद्र तक ले जाया गया. इस तस्वीर को देखकर आप सहज अंदाज़ा लगा सकते हैं की कोल्हान आवासीय विद्यालय में बच्चों के लिए व्यवस्था कैसी है. सबसे बड़ी बात है कि झारखण्ड सरकार कोल्हान आवासीय विद्यालय की तुलना नेतरहाट स्कूल से करती है, लेकिन स्कूल में व्यवस्था नाम की कोई चीज ही नहीं है. सबकुछ इस स्कूल में जुगाड़ तंत्र से चल रहा है.

भेड़-बकरी की तरह ठुंसे बच्चे 

अब खुद मैट्रिक की परीक्षा देने जा रहे इन बच्चों की परेशानियों को समझने की कोशिश कीजिये. परीक्षा देना इनके लिए बहुत जरूरी है, लिहाजा इनकी जरुरत भरी मज़बूरी का फायदा उठाते हुए सरकार ने एक ट्रैक्टर की व्यवस्था इनके परीक्षा केंद्र तक जाने के लिए कर दी गई है. कुल 52 बच्चे ट्रेक्टर में सवार हैं. बच्चों में डर भी है की कहीं कुछ अनहोनी ना हो जाए लेकिन बच्चों की मज़बूरी है कि इसी ट्रैक्टर में सवार होकर उन्हें परीक्षा देने जाना है. ट्रैक्टर को सवारी गाड़ी की तरह इस्तेमाल करने पर सरकार ने ही खुद रोक लगा रखी है, लेकिन उसी ट्रैक्टर पर बच्चे सरकारी शिक्षा का बोझ उठा रहे हैं.  

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इसे आप बच्चों की जान के साथ खिलवाड़ भी कह सकते हैं. ठूस-ठूसकर एक ट्रैक्टर की ट्रॉली में खड़े डगमगाते बच्चे ट्रेक्टर से परीक्षा केंद्र जाने को मजबूर हैं. किसी ने भी संतुलन खोया तो एक बड़ी अनहोनी हो सकती है. लेकिन इसकी चिंता कौन करे. सरकारी अधिकारी और नेताओं के बच्चे तो ट्रेक्टर में खड़े होकर भेड़ बकरी की तरह परीक्षा देने तो जाते नहीं हैं, लिहाजा इस अव्यवस्था की गंभीरता को भी समझने का किसी के पास वक्त ही नहीं है.

जिम्मेदारी कौन लेगा?

चक्रधरपुर कोल्हान आवासीय विद्यालय के बच्चों को सपना दिखाया गया था कि उन्हें नेतरहाट आवासीय विद्यालय की तरह सभी सुविधाओं से लैस अत्याधुनिक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी आएगी. इसके लिए बच्चों ने प्रतियोगी परीक्षा पास कर इस विद्यालय में नामांकन प्राप्त किया था. लेकिन बच्चों का जिस तरह से हकीकत से अब सामना हो रहा है. उससे बच्चे खुद अपनी किस्मत को रो रहे हैं. सरकार हवा हवाई दावों और वादों से जनता का मन बहला रही है, वहीं हकीकत में सरकार की शिक्षा व्यवस्था ट्रेक्टर पर चल रही है. ट्रेक्टर पर परीक्षा देने जाते इन बच्चों के साथ किसी तरह की घटना घट गयी तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा.

लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी

हालांकि इस मामले में चक्रधरपुर प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी अविनाश कुमार राम संज्ञान लेते हुए इसे गंभीर मामला बताया है. उन्होंने साफ कहा है कि इस तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी. स्कूल को सभी व्यवस्था के लिए फंड आवंटित किया जाता है. फंड का इस्तेमाल कर बच्चों को बड़ी सवारी गाड़ी में परीक्षा केंद्र तक ले जाया जाना चाहिए. उन्होंने पुरे मामले की जांच कर उचित कार्रवाई की बात कही है. यहीं चाइबासा जिले में कस्तूरबा गांधी विद्यालय से छात्राओं का दीवार फांदकर डीसी से गुहार लगाने के लिए आधी रात को जोखिम उठाकर जिला मुख्यालय 15km से ज्यादा पैदल चलकर आने की खबर वायरल हुई थी. वहीं कुछ दिनों पहले छात्राएं आवासीय स्कूल की बदहाली से बेहद परेशान थी. 

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