दिल्ली धमाकों के बाद, फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी एंटी-टेरर एक्टिविटीज़ को पनाह देने के आरोप में जांच के दायरे में आ गई है. NIA की जांच में पाया गया है कि यूनिवर्सिटी के मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर के भेष में आतंकवादी फैकल्टी के तौर पर काम कर रहे थे.
जब इस संस्थान से जुड़ी ऐसी खबरों चल रही थी. तब नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल (NAAC) भी एक्टिव हुआ. नैक ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी को ऐसे संस्थान के तौर पर चिह्नित किया जो A ग्रेड यूनिवर्सिटी होने का दावा करती है, लेकिन 2018 में ही उसका एक्रेडिटेशन खत्म हो गया था.
बिना नैक ग्रेड के चल रहे कई संस्थान
हालांकि,ए ग्रेड यूनिवर्सिटी के दावों के साथ बिना एक्रिडेशन के चलने वाली अल-फलाह यूनिवर्सिटी अकेली नहीं है. पार्लियामेंट में पेश किए गए सरकारी डेटा से पता चलता है कि कई भारतीय यूनिवर्सिटी और हजारों कॉलेज अभी भी बिना वैलिड NAAC ग्रेड के चल रहे हैं.
इतने यूनिवर्सिटीज को मिला है एक्रिडिटेशन
शिक्षा मंत्रालय के AISHE सर्वे के डेटा के मुताबिक, 8 जुलाई, 2023 तक भारत में 690 यूनिवर्सिटी और 34000 से ज़्यादा कॉलेज NAAC एक्रेडिटेशन के साथ काम कर रहे थे. UGC से मिली जानकारी के मुताबिक, 1,113 यूनिवर्सिटी और 43,796 कॉलेजों में से NAAC ने 418 यूनिवर्सिटी और 9,062 कॉलेजों को एक्रेडिटेशन दिया है.
लोगों को गुमराह करने पर वापस हो सकता है एक्रेडिटेशन
अल-फलाह का केस शायद उन कुछ मामलों में से एक है, जहां NAAC ने किसी यूनिवर्सिटी को NAAC एक्रेडिटेशन के लिए अप्लाई न करने पर पब्लिकली फ़्लैग किया है. क्योंकि उसकी एक्सपायरी हो गई थी. NAAC ने चेतावनी के तौर पर एक “कॉशनरी नोट” जारी किया था - NAAC से मान्यता प्राप्त संस्थान, अगर गुमराह करने वाले पाए जाते हैं या अपने एक्रेडिटेशन स्टेटस के बारे में जनता और छात्रों को गुमराह करने के लिए गलत जानकारी देते हैं, तो उन पर कार्रवाई हो सकती है, जिसमें एक्रेडिटेशन वापस लेना भी शामिल है.
झूठे एक्रेडिटेशन का दावा करने वाले संस्थानों की नहीं है कोई लिस्ट
अल-फलाह मामले के अलावा, NAAC झूठे एक्रेडिटेशन दावों के लिए सज़ा पाए गए संस्थानों की पूरी लिस्ट पब्लिश नहीं की है. मीडिया सर्च से सिर्फ़ कुछ ही रेफरेंस मिलते हैं. यह अस्पष्टता अपने आप में एक लूपहोल है. छात्र और माता-पिता आसानी से यह नहीं देख सकते कि NAAC लेबल का गलत इस्तेमाल करते हुए कौन पकड़ा गया है.
शिकायत मिलने पर होती है कार्रवाई
NAAC साफ़ तौर पर संस्थानों के अपने नाम का गलत इस्तेमाल करने के रिस्क को पहचानता है, लेकिन झूठे दावों के लिए सज़ा पाए गए सभी संस्थानों की कोई पब्लिक, कंसोलिडेटेड ब्लैकलिस्ट नहीं है. अधिकतर मामलों में कार्रवाई केस-बाय-केस और रिएक्टिव होती है. शिकायतों, FIR या मीडिया एक्सपोज़र के बाद ही कार्रवाई की जाती है. इसके लिए कोई प्रोएक्टिव मॉनिटरिंग नहीं होती.
नैक ग्रेडिंग का समय खत्म होने संस्थान को हटा लेनी चाहिए जानकारी
इस मामले पर बात करते हुए NAAC के डायरेक्टर प्रोफ़ेसर गणेशन कन्नाबिरन ने कहा कि हमने वेबसाइट पर एक पब्लिक नोटिस डाला है, जिसमें हमने कहा है कि वैलिडिटी पीरियड खत्म होने के बाद इंस्टीट्यूशन को ऐसी जानकारी हटा देनी चाहिए और सिर्फ़ सही डिटेल्स ही डालनी चाहिए. जब भी यह हमारे ध्यान में आता है, हम तुरंत इंस्टीट्यूशन को लिखते हैं और इसे ठीक करवाते हैं.
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उन्होंने कहा कि ज़्यादातर तो अपनी वेबसाइट पर यह भी नहीं बताते कि वे NAAC से एक्रेडिटेड हैं. कई बार वे बस अपने ब्रोशर में लिख देते हैं. कई बार जब लोग हमसे शिकायत करते हैं, तो हम एक्शन लेते हैं.
अल-फलाह का एक्रेडिटेशन खत्म होने की नहीं थी नैक को जानकारी
जब पूछा गया कि क्या नेशनल बॉडी को अल फलाह यूनिवर्सिटी की एक्रेडिटेशन खत्म होने के बारे में पता था, तो प्रोफ़ेसर गणेशन ने कहा -नहीं, हमें इसकी जानकारी नहीं थी. यह इंस्टीट्यूशन की ज़िम्मेदारी है कि वह गुमराह करने वाला डेटा पब्लिश न करे.
नैक असेसमेंट सिस्टम में हैं कई खामियां
झूठे दावे प्रॉब्लम का सिर्फ़ एक पहलू हैं. 2025 के NAAC रिश्वत कांड में, जिसमें CBI ने आंध्र प्रदेश में KL यूनिवर्सिटी के NAAC असेसर और अधिकारियों समेत 10 लोगों को गिरफ्तार किया था, यह सामने आया कि कैसे इंस्टीट्यूशन ज़्यादा ग्रेड पाने के लिए एक्रेडिटेशन सिस्टम में हेरफेर कर सकते हैं. बाद में NAAC ने KL यूनिवर्सिटी पर पांच साल का बैन लगा दिया. इस मामले से पीयर-रिव्यू सिस्टम में गहरी कमज़ोरियों का पता चला, जिसमें अलग-अलग इवैल्यूएशन स्टैंडर्ड और गलत असर की गुंजाइश शामिल है.