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हज से कितना अलग है उमरा? जहां जा रहे 42 भारतीय की एक्सीडेंट में हुई मौत

उमरा में मक्का जाकर काबा शरीफ की ज़ियारत, तवाफ़ और सई करना होता है. वहीं, हज में पूरा इस्लामी सफर, कई दिनों की आध्यात्मिक यात्रा, जिसमें अराफात, मिना, मुझदलिफ़ा के बड़े बड़े काम शामिल होते हैं.

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उमरा साल के किसी भी दिन किया जा सकता है और कुछ घंटों में पूरा हो जाता है, जिसमें तवाफ़, सई और बाल कटवाना शामिल है. ( Photo: Pexels)
उमरा साल के किसी भी दिन किया जा सकता है और कुछ घंटों में पूरा हो जाता है, जिसमें तवाफ़, सई और बाल कटवाना शामिल है. ( Photo: Pexels)

सऊदी अरब में मक्का से मदीना जा रही एक बस के डीजल टैंकर से टकरा जाने से कम से कम 42 भारतीय उमराह तीर्थयात्रियों के मौत की खबर है.  आपको बता दें कि उमरा और हज दोनों इस्लाम में बेहद महत्वपूर्ण इबादतें हैं, लेकिन दोनों में कई बड़े अंतर हैं. तो चलिए जानते हैं उमरा और हज कब किए जाते हैं, कितने दिनों में पूरे होते हैं, किन रुक्न (कदमों) को करना जरूरी है, और इनकी अहमियत क्या है. 

उमरा और हज में कितना फर्क है? 
उमरा को आमतौर पर "छोटी हज" कहा जाता है. यह किसी भी महीने, किसी भी दिन किया जा सकता है. हज की असली यात्रा 5 दिनों की होती है. यह 8 ज़िल-हिज्जा से शुरू होकर 12 ज़िल-हिज्जा तक चलती है. लेकिन ज़्यादातर लोग हज शुरू होने से पहले मक्का पहुंच जाते हैं और खत्म होने के बाद भी कुछ दिन रुकते हैं, इसलिए कुल मिलाकर उनकी पूरी यात्रा थोड़ी लंबी हो जाती है.

उमरा के चार मुख्य कदम हैं:

  • एहराम बांधना – नीयत करना और सफेद कपड़े पहनना.
  • तवाफ करना – काबा शरीफ के सात चक्कर लगाना.
  • सई करना – सफा और मरवा पहाड़ियों के बीच सात चक्कर लगाना.
  • हल्क या कसर – बाल मुंडवाना या छोटे करवाना.
  • किस समय किया जाता है उमरा

उमरा कुछ घंटों में भी पूरा हो सकता है. यह फर्ज़ नहीं, बल्कि सुन्नत और मुस्तहब है (ऐसा कहा जाता है कि उमरा करने पर सवाब मिलता है).इसे साल में कई बार किया जा सकता है. 

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हज क्या है?
हज इस्लाम का पांचवां फंर्ज (Farz) है. यह सिर्फ साल में एक बार, इस्लामी महीने जिल-हिज्जा में किया जाता है. यह हर मुसलमान पर फर्ज है जो शारीरिक रूप से सक्षम और आर्थिक रूप से समर्थ हो. हज इस्लाम का पांचवां फर्ज है.

हज में क्या-क्या होता है?

  • एहराम बांधना
  • तवाफ़
  • सई
  • ज़िलहिज्जा: अराफ़ात में वक़ूफ (हज का सबसे बड़ा रुक्न)
  • मुझदलिफ़ा में रात बिताना
  • ज़िलहिज्जा: शैतान को पत्थर मारना, क़ुर्बानी करना, बाल कटवाना
  • तवाफ़-ए-इफ़ाज़ा-तवाफ-ए-विदा (विदाई तवाफ़)

किस समय होता है हज
हज पूरा करने में कम से कम 5–6 दिन लगते हैं. यह मुस्लिम समुदाय के लिए एक फर्ज है. यदि इंसान सक्षम हो तो जिदंगी में सिर्फ एक बार करना जरूरी है. 

क्यों दोनों को अलग माना जाता है?
उमरा और हज को अलग इसलिए माना जाता है क्योंकि हज में भीड़ बहुत ज़्यादा होती है. इसकी रस्में काफी कठिन होती हैं.इसका समय तय है. यह इस्लाम का फर्ज है. जबकि उमरा आराम से, कभी भी किया जा सकता है. इसमें कम मेहनत लगता है और नीयत और दिल की सफाई के लिए बड़ी इबादत है.

हज और बकरीद का कनेक्शन
1. बकरीद हज की याद में मनाई जाती है
बकरीद उस क़ुर्बानी की याद में मनाई जाती है, जो हज़रत इब्राहीम (अ.स.) ने अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे इस्माईल (अ.स.) की कुर्बानी देने के लिए तैयार होकर दी थी. अल्लाह ने उनकी नीयत देखकर एक दुम्बा (भेड़) कुर्बानी के लिए भेज दिया था. हज के दौरान भी इस क़ुर्बानी की सुन्नत अदा की जाती है.

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2. बकरीद का दिन हज के सबसे अहम रुक्न से जुड़ा है
हज की सबसे महत्वपूर्ण रस्म —“क़ुरबानी” (Sacrifice) होती है. यह 10 ज़िल-हिज्जा को की जाती है.इसी दिन पूरी दुनिया के मुसलमान भी अपने-अपने शहरों में बकरीद की नमाज़ और क़ुर्बानी करते हैं.इसलिए बकरीद की तारीख हज की तारीख से ही जुड़ी होती है.

3. हज सिर्फ मक्का में होता है, लेकिन बकरीद दुनिया भर में

हज: साल में एक बार, सिर्फ मक्का में किया जाता है.

बकरीद: दुनिया भर में मुसलमान इसे मनाते हैं, चाहे वे हज कर रहे हों या नहीं.

4. हज पूरा करने वालों के लिए क़ुर्बानी फ़र्ज़ है
जो लोग हज कर रहे होते हैं, उन्हें 10 ज़िल-हिज्जा को क़ुर्बानी करनी ज़रूरी होती है.बाकी मुसलमानों के लिए यह सुन्नत-ए-इब्राहीमी है.

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