
केरल, गोवा और मिजोरम तीनों राज्य भारत में 90 प्रतिशत से ज्यादा साक्षरता दर पार कर चुके हैं. लेकिन इन शानदार आंकड़ों के पीछे एक बड़ा सवाल छिपा है कि जब इतने लोग पढ़े-लिखे हैं तो फिर इतने शिक्षित युवा बेरोजगार क्यों हैं? पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) 2022-23 के मुताबिक ये राज्य भले ही साक्षरता और सामाजिक विकास में आगे हों लेकिन युवाओं में बेरोजगारी की दर भी यहीं सबसे ज्यादा है.
कहां युवाओं की कितनी बेरोजगारी दर
केरल में युवाओं की बेरोजगारी दर करीब 30% है. वहीं गोवा में 19% और मिजोरम में लगभग 12% है. ये स्थिति दिखाती है कि अगर शिक्षा और रोजगार के बीच तालमेल न हो तो केवल साक्षरता विकास का पूरा लक्ष्य नहीं बन सकती.
साक्षरता का मतलब और उसकी सीमाएं
पॉलिसी लेवल पर साक्षर होने का मतलब होता है कि कोई व्यक्ति पढ़ और लिख सकता है. लेकिन आज के समय में रोजगार योग्य होने का मतलब डिजिटल स्किल्स, व्यावसायिक प्रशिक्षण, नई तकनीक से तालमेल और नवाचार की क्षमता होना है. केरल, गोवा और मिजोरम ने शिक्षा तक पहुंच तो आसान कर दी लेकिन उसे रोजगार से जोड़ने में कमी रह गई. इन राज्यों में डिग्रीधारी युवा तो बहुत हैं पर अर्थव्यवस्था में उनके लिए पर्याप्त अवसर नहीं हैं. इसे ही अर्थशास्त्री Educated Unemployment यानी शिक्षित बेरोजगारी कहते हैं.
केरल: शिक्षा ज्यादा, नौकरियां कम
केरल की शिक्षा प्रणाली ऐतिहासिक रूप से मजबूत रही है लेकिन इसका रोजगार ढांचा उतना विकसित नहीं हो सका. यहां के ज्यादातर पढ़े-लिखे युवा आर्ट्स और कॉमर्स में डिग्रीधारी हैं जबकि नौकरी के अवसर टेक्नोलॉजी और सर्विस सेक्टर में बढ़ रहे हैं. निजी क्षेत्र सीमित है इसलिए कई युवा विदेशों में काम ढूंढने या सरकारी नौकरी की प्रतीक्षा करने लगते हैं.
उच्च आकांक्षाएं, सीमित उद्योग और संकीर्ण नौकरी के दायरे ने एक ऐसा चक्र बना दिया है जहां शिक्षा तो सार्वभौमिक है लेकिन रोजगार असमान हैं.
गोवा: पढ़े-लिखे और कुशल, फिर भी अस्थिर रोजगार
गोवा में साक्षरता दर लगभग 90-100% है लेकिन युवा बेरोजगारी करीब 19% तक है. यहां की अर्थव्यवस्था पर्यटन और आतिथ्य (हॉस्पिटैलिटी) पर निर्भर है जो सीजनल यानी मौसमी काम देता है. कई शिक्षित युवाओं को स्थायी या अपने स्तर की नौकरी नहीं मिल पाती. इसका नतीजा अच्छी शिक्षा, लेकिन अस्थिर रोजगार है.
मिजोरम: 98% साक्षर, पर सीमित आर्थिक अवसर
मिजोरम की साक्षरता दर 98.2% है जो भारत में सबसे ऊंची है. फिर भी, यहां युवाओं की बेरोजगारी दर लगभग 12% है. इसका कारण कम उद्योग, निजी निवेश की कमी और सरकारी नौकरियों पर अत्यधिक निर्भरता है. कई स्नातक (ग्रेजुएट) युवाओं को अपनी योग्यता के अनुरूप काम नहीं मिल पाता.
हिमाचल प्रदेश और सिक्किम: शिक्षा और रोजगार का संतुलन
हिमाचल प्रदेश (88% साक्षरता) और सिक्किम (81%) ने बेहतर संतुलन बनाया है. यहां बेरोजगारी दर 10% से कम है. इसका कारण विविध अर्थव्यवस्था है. यहां पर्यटन, बागवानी, जलविद्युत और छोटे उद्योग जैसे सेक्टरों में लगातार रोजगार के अवसर हैं. दोनों राज्यों ने तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण पर निवेश किया है जिससे शिक्षा को सीधे रोजगार से जोड़ा जा सका है.

साक्षरता बनाम जीविका: असली बहस यहीं है
अगर केरल भारत का साक्षरता मॉडल है तो हिमाचल और सिक्किम उसका रोजगार मॉडल है. अब सवाल ये नहीं होना चाहिए कि कितने लोग पढ़े-लिखे हैं? बल्कि ये होना चाहिए कि कितने लोग कमा पा रहे हैं? भारत की साक्षरता मुहिम ने शिक्षा तक पहुंच तो आसान की है लेकिन अब जरूरत स्किल डेवलपमेंट, उद्यमिता (एंटरप्रेन्योरशिप) और टेक्नोलॉजी आधारित प्रशिक्षण की है ताकि पढ़ाई को रोजगार में बदला जा सके.
केरल, गोवा और मिजोरम हमें याद दिलाते हैं कि साक्षरता विकास की नींव है, लेकिन मंजिल नहीं. वास्तविक प्रगति तभी है जब हर शिक्षित व्यक्ति रोजगार योग्य और उत्पादक बन सके. दूसरी ओर, हिमाचल और सिक्किम दिखाते हैं कि थोड़ी कम साक्षरता के बावजूद अगर अर्थव्यवस्था संतुलित और शिक्षा व्यावहारिक हो तो रोजगार और विकास दोनों संभव हैं. बात साफ है 'शिक्षा दिमाग खोलती है लेकिन रोजगार भविष्य के रास्ते खोलता है.'