कोविड 19 यानी कोरोना वायरस पूरी दुनिया में कोहराम मचा रहा है. लोगों की जान ले रहा है. अमेरिका, चीन और इटली जैसे बड़े-बड़े देश जहां इसका मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं, वहीं ताइवान, सिंगापुर, हांगकांग और क्यूबा जैसे छोटे देश इस खतरे को वक्त रहते भांप गए थे. जब दुनिया के बाकी देश इसे चीन की अंदरूनी बीमारी मान कर चल रहे थे. तब ताइवान की तरह हांगकांग और सिंगापुर अपने लोगों को इस वायरस से बचाने के तरीके ढूंढने में लग गए थे. इसका नतीजा ये हुआ कि जहां आज पूरी दुनिया लॉक डाउन है, वहीं इन देशों के लोग आम और आजाद जिंदगी जी रहे हैं.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन यानी WHO ने पिछले साल 31 दिसंबर को ही चीन में 'सार्स जैसी रहस्यमय निमोनिया' के मामलों की जानकारी दी थी. उस वक्त तक इंसानों से एक-दूसरे में इसके फैलने की पुष्टि तक नहीं हुई थी. वायरस को लेकर ज्यादा जानकारी भी नहीं थी. और चीन समेत बाकी दुनिया इस खतरे से अनजान थी. तभी सिंगापुर, ताइवान, हांगकांग और क्यूबा जैसे देश इससे निपटने के लिए तैयार हो चुके थे.
तो फिर सवाल ये कि आखिर बाकी दुनिया ने ये गलती क्यों की. क्यों इन तमाम देशों ने कोरोना के खतरे को हल्के में लिया. कैसे चीन से निकलकर ये वायरस आधी से ज़्यादा दुनिया तक पहुंच गया. और सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी रह गईं. चीन ने संक्रमण फैलने की बात बताने में जो देर की वो इन देशों के लिए भी उतनी ही थी, जितनी तमाम दुनिया के लिए थी. फिर क्यों ये बीमारी महामारी बन गई.
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इसमें शक नहीं कि कोरोना के वायरस को देश में आने और उससे संक्रमित लोगों की पहचान करना ना तो आसान था और ना ही मुमकिन. लिहाज़ा तमाम सेफ्टी मेजर्स के अलावा सिंगापुर ने ताइवान से भी एक हाथ आगे निकलकर इसके मरीज़ों का पता लगाने और उसके संपर्क में आए लोगों की जानकारी के लिए जासूसों की मदद ली.
ऐसे हुई कोरोना के संक्रमित लोगों की पहचान
सिंगापुर ने 6 हज़ार ऐसे लोगों को ट्रेस किया जो संक्रमित लोगों के संपर्क में आए थे. वहां की सरकार ने जासूसों के जरिए और सीसीटीवी की मदद से ये काम किया. उनके संपर्क में आने वाले हर शख्स का टेस्ट किया गया, और उनके रिकॉर्ड रखे गए, ताकि वक्त पड़ने पर पहचान में आसानी रहे.
उल्लंघन करने पर जेल और जुर्माने रखा गया. एक शख्स से तो उल्लंघन करने पर सिंगापुर में रहने का अधिकार ही छीन लिया गया. इतने कड़े नियमों की वजह से ही यहां मरीज़ों की तादाद साढे 800 के करीब आकर रुक गई है. अब यहां ज़िंदगी सामान्य है.
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कुछ ऐसी ही रणनीति हांगकांग ने भी अपनाई. हांगकांग में तो उन लोगों को भी ट्रेस किया जाता है, जो किसी संक्रमित व्यक्ति में लक्षण दिखने से दो दिन पहले तक उसके संपर्क में आए हों. जिन लोगों को अकेले रहने के लिए कहा गया है, वे ऐसा कर रहे हैं या नहीं. ये जांचने के लिए कई तरीके अपनाए गए हैं.
हांगकांग में विदेश से आने वाले लोगों को हाथों में एक इलेक्ट्रिक ब्रेसलेट पहनना होता है जो उनकी मूवमेंट को ट्रैक करता है. लोगों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए एक ऐप बनाई गई. ये एक तरह का ऑनलाइन डैशबोर्ड है, जहां पर मैप में दिखता है कि किन-किन इमारतों में लोगों को कोरोना संक्रमित पाया गया है.
हालांकि हांगकांग में एहतियातन स्कूल, कॉलेज और ऑफिस बंद हैं. मगर रेस्तरां और बार खुले हैं. मगर वहां लोग अब भी सोशल डिस्टेंसिंग कर रहे हैं. सैनिटाइजेशन का काम भी रुटीन के तौर पर लगातार चल रहा है. ये वो कदम थे जिसके चलते इन देशों ने कोरोना के संक्रमण को तो रोक दिया, हालांकि खतरा हर पल बना हुआ है और इसको लेकर ये देश अभी भी अलर्ट हैं, क्योंकि ये भी जानते हैं कि अगर इनके देश में कोरोना ने बैक गियर लगा दिया तो मुश्किल होगी.