महाराष्ट्र के ठाणे शहर से जुड़े एक संवेदनशील पॉक्सो (POCSO) मामले में अदालत ने बड़ा फैसला सुनाया है. 10 वर्षीय बच्चे के यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार उसकी मां और मामा को जमानत दे दी गई है. यह मामला पारिवारिक विवाद और गंभीर आरोपों के चलते काफी चर्चा में रहा. कोर्ट के फैसले में कई अहम पहलुओं को रेखांकित किया गया है.
बच्चे की पारिवारिक पृष्ठभूमि
पीड़ित बच्चा अपने माता-पिता के अलगाव के बाद मां के साथ थाणे के लोकमान्य नगर इलाके में रह रहा था. पिता से अलग रहने के दौरान ही कथित तौर पर यह घटनाएं हुईं. बच्चे के पिता ने ही इस पूरे मामले की जानकारी पुलिस को दी थी.
कब से शुरू हुआ शोषण
आरोप है कि वर्ष 2021 से बच्चे के साथ उसकी मां और मामा द्वारा यौन शोषण किया जा रहा था. लंबे समय तक यह मामला सामने नहीं आ सका. बच्चा मानसिक दबाव और डर के चलते चुप रहा, जिसके कारण कथित अपराध जारी रहा.
चाइल्ड हेल्पलाइन पहुंचा मामला
इस पूरे मामले का खुलासा तब हुआ जब पीड़ित बच्चे ने 30 जुलाई को चाइल्ड हेल्पलाइन से संपर्क किया. हेल्पलाइन पर मिली सूचना के आधार पर संबंधित एजेंसियों ने सक्रियता दिखाई. इसके बाद पुलिस ने मामले की जांच शुरू की.
FIR और गिरफ्तारी
जांच के बाद 7 अगस्त को पुलिस ने बच्चे की मां और मामा को गिरफ्तार किया. दोनों पर POCSO एक्ट, भारतीय न्याय संहिता और किशोर न्याय अधिनियम 2015 की संबंधित धाराओं में केस दर्ज किया गया. गिरफ्तारी के बाद दोनों न्यायिक हिरासत में भेजे गए.
कोर्ट में जमानत याचिका
गिरफ्तारी के बाद आरोपियों ने थाणे की विशेष POCSO अदालत में जमानत के लिए अर्जी दाखिल की. उनका कहना था कि वे जांच में पूरा सहयोग कर चुके हैं. इसके साथ ही उन्होंने हिरासत में रखने की जरूरत पर सवाल उठाया.
बचाव पक्ष की दलील
बचाव पक्ष के वकील ने अदालत में दलील दी कि POCSO कानून का इस मामले में दुरुपयोग किया गया है. उन्होंने बताया कि जांच पूरी हो चुकी है और चार्जशीट भी दाखिल कर दी गई है. इसके अलावा आरोपियों का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है.
जांच पूरी होने का हवाला
डिफेंस ने यह भी कहा कि आरोपियों से अब किसी तरह की कस्टोडियल पूछताछ की जरूरत नहीं है. सभी जरूरी सबूत पुलिस के पास मौजूद हैं. ऐसे में आरोपियों को जेल में बनाए रखना अनुचित है.
जज की अहम टिप्पणी
विशेष न्यायाधीश आर.यू. मालवंकर ने 10 दिसंबर को दिए आदेश में कहा कि प्रथम दृष्टया यह अपराध ऐसा नहीं है, जिसमें मौत या आजीवन कारावास की सजा अनिवार्य हो. कोर्ट ने मामले की प्रकृति और आरोपों का अवलोकन किया.
आपराधिक इतिहास पर कोर्ट की राय
अदालत ने यह भी कहा कि जांच एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार आरोपियों के खिलाफ पहले कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है. उन्हें ‘हार्डकोर क्रिमिनल’ नहीं माना जा सकता. इस तथ्य को जमानत पर विचार करते समय अहम माना गया.
वैवाहिक विवाद का एंगल
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी उल्लेख किया कि मां और उसके पति के बीच वैवाहिक विवाद लंबित हैं. फिलहाल बच्चा अपने पिता के साथ रह रहा है. इस पृष्ठभूमि में सबूतों से छेड़छाड़ की संभावना से पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता.
हिरासत की जरूरत पर सवाल
हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मौजूदा हालात में आरोपियों को जेल में और रखने का कोई ठोस कारण नहीं है. उनसे आगे किसी तरह की पूछताछ की आवश्यकता नहीं है. संभावित जोखिमों को सख्त शर्तों के जरिए नियंत्रित किया जा सकता है.
जमानत की शर्तें
अदालत ने मां और मामा को 30-30 हजार रुपये के निजी मुचलके और समान राशि की एक जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया. जमानत के साथ कई सख्त शर्तें भी लगाई गई हैं, ताकि जांच और ट्रायल प्रभावित न हो.
किन शर्तों पर मिली राहत
जमानत की शर्तों में गवाहों को प्रभावित न करना, दोबारा अपराध न करना और कोर्ट की अनुमति के बिना भारत से बाहर न जाना शामिल है. कोर्ट ने साफ किया कि शर्तों के उल्लंघन पर जमानत रद्द की जा सकती है. अब आगे ट्रायल के दौरान सबूतों के आधार पर अंतिम फैसला होगा.