Indian Penal Code: कई बार ऐसा होता है कि कोई भी शख्स किसी के बहकावे में आकर (Being deceived) या उकसाने (Provoking) से किसी को भी नुकसान पहुंचाने से गुरेज नहीं करता. वो बहकावे में आकर संगीन अपराध (Major offence) तक करने से पीछे नहीं हटता और सजा का हकदार (Deserving of punishment) बन जाता है. ऐसे मामलों को लेकर ही भारतीय दंड संहिता की धारा 113 (Section 113) में प्रावधान किया गया है. आपको बताते हैं कि आईपीसी की धारा 113 इस बारे में क्या जानकारी देती है?
आईपीसी की धारा 113 (Indian Penal Code Section 113)
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 113 (Section 113) के मुताबिक जब कि कार्य का दुष्प्रेरण (Abetment of work) दुष्प्रेरक द्वारा किसी विशिष्ट प्रभाव (Specific effect) को कारित करने के आशय से किया जाता है और दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप (as a result of abetment) जिस कार्य के लिए दुष्प्रेरक दायित्व के अधीन है, वह कार्य दुष्प्रेरक के द्वारा आशयित प्रभाव से भिन्न प्रभाव कारित करता है तब दुष्प्ररेक कारित प्रभाव के लिए उसी प्रकार और उसी विस्तार तक दायित्व के अधीन (Subject to liability) है, मानो उसने उस कार्य का दुष्प्रेरण उसी प्रभाव को कारित करने के आशय से किया हो परन्तु यह तब जब कि वह यह जानता था कि दुष्प्रेरित कार्य से वह प्रभाव कारित होना सम्भाव्य (Likely to cause effect) है.
आसान भाषा में समझें तो मान लें कि राकेश, अनिल को पंकज को गंभीर चोट पहुंचाने के लिए उकसाता है. अनिल उकसावे में आकर उत्तेजित हो जाता है और पंकज को गंभीर चोट पहुंचाता है. जिसके चलते पंकज की मौत हो जाती है. ऐसे में अगर राकेश जानता था कि इस हमले के कारण पंकज की मौत हो सकती है, तो राकेश हत्या के लिए उपबंधित दण्ड से दण्डित होने का भागी है.
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क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.