महाराष्ट्र के नागपुर में करोड़ों रुपए की हेराफेरी का एक बड़ा मामला सामने आया है. यहां पुलिस ने 155 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी का पर्दाफाश किया है, जिसमें नागपुर के व्यापारियों के एक समूह ने अनजान व्यक्तियों की असली पहचान का इस्तेमाल करके फर्जी कंपनियां पंजीकृत की थीं. इसके बाद हवाला लेनदेन के जरिए काला धन एकत्र किया था. इस मामले में चार आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है.
एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि धोखाधड़ी का ये मामला इससे भी बड़ा हो सकता है, क्योंकि आरोपियों ने लेनदेन करने के लिए प्रथम दृष्टया 50 से 60 फर्जी कंपनियां बनाई थीं. चौंकाने वाली बात यह है कि आरोपियों ने आपराधिक गतिविधि के लिए विभिन्न राज्यों के जरूरतमंद लोगों की असली पहचान का इस्तेमाल किया. लोगों के साथ धोखाधड़ी का ये सिलसिला अगस्त 2024 से बदस्तूर चल रह था.
इस का पर्दाफाश तब हुआ जब एक पीड़ित ने पुलिस से संपर्क किया, जिसकी पहचान का इस्तेमाल जालसाजों ने फर्जी कंपनी पंजीकृत करने के लिए किया था. उसकी शिकायत के बाद पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की विभिन्न धाराओं के तहत लकड़गंज पुलिस स्टेशन में केस दर्ज किया था. शिकायतकर्ता बिस्वजीत रॉय मूल रूप से पश्चिम बंगाल के रहने वाले हैं. वो नागपुर में फूड स्टॉल चलाते थे.
जून 2024 में अपने पिता के निधन के बाद आर्थिक तंगी के चलते वे नागपुर चले गए. इसके बाद वे खुद को वित्तीय अपराध के एक चौंकाने वाले जाल में फंसा हुआ पाया. उनके दोस्त सूरज उर्फ प्रीतम केडिया ने उन्हें 'कारोबारी' बंटी शाहू, जयेश शाहू, अविनाश शाहू, ऋषि लखानी, आनंद हरदे, राजेश शाहू, बृजकिशोर मनिहार और अंशुल मिश्रा से मिलवाया. आरोपियों ने उनके नाम पर बाजार में पैसा लगाने का प्रस्ताव रखा.
इसके साथ ही हर महीने मुनाफे में हिस्सा देने का वादा किया. काम की तलाश कर रहे पीड़ित ने सहमति जता दी. उसने अपना आधार और पैन कार्ड जमा करा दिया. उनसे कई दस्तावेजों पर हस्ताक्षर भी करवाए गए. इसके बाद में उन्हें वाथोडा इलाके में राजेश शाहू के गोदाम में ठहराया गया. 3 अगस्त 2024 को अविनाश शाहू ने उनके नाम से सिम कार्ड खरीदा, लेकिन उसे अपने पास ही रख लिया.
बिस्वजीत रॉय को शुरुआत में 25 हजार रुपए दिए गए. आरोपियों ने उनकी पहचान का इस्तेमाल करके एक कंपनी को वैध जीएसटी नंबर के साथ एक लघु-स्तरीय औद्योगिक इकाई के रूप में पंजीकृत किया. उन्होंने इस फर्म के लिए दो बैंक खाते खोले. आरोपियों ने वास्तविक लेनदेन किए बिना माल के लिए नकली चालान बनाए. विभिन्न व्यवसायों से भुगतान प्राप्त करने के बाद, वे राशि निकाल लेते थे.
इसे नकद में वापस कर देते थे, जिससे वैध व्यावसायिक गतिविधि का भ्रम पैदा होता था. 9 सितंबर से 30 दिसंबर, 2024 के बीच 96.39 करोड़ रुपए के लेनदेन किए गए. इसी तरह मिथुन राजू राजपांडे की पहचान के जरिए आरोपियों ने अवध एंटरप्राइजेज नामक फर्म बनाई. इसके जरिए 59.51 करोड़ रुपए के फर्जी लेनदेन किए गए. इसी दौरान बिस्वजीत रॉय को पता चला कि उनके नाम का गलत इस्तेमाल हो रहा है.
उन्होंने आरोपियों से लेनदेन बंद करने को कहा. इस पर आरोपियों ने उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी और चुप रहने की चेतावनी दी. इस मामले में एफआईआर दर्ज किए जाने के बाद डीसीपी (डिटेक्शन) राहुल मकनीकर ने जांच के आदेश दिए. क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने प्रारंभिक जांच शुरू की, जिसमें आरोपों की पुष्टि हुई और बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी का पर्दाफाश हुआ. पुलिस धोखाधड़ी देखकर दंग रह गई.
इस मामले की जांच के दौरान गिरफ्तार किए गए चार आरोपियों की पहचान बंटी शाहू, जयेश शाहू, ऋषि लखानी और बृजकिशोर मनिहार के रूप में हुई है. पुलिस के अनुसार, यह तो बस एक झलक है. अनुमान है कि आरोपियों ने 60 से 70 फर्जी कंपनियां पंजीकृत की हैं. उनके जरिए हजारों करोड़ की ठगी की गई है. पुलिस नेटवर्क के दायरे की जांच कर रही है. उनके सहयोगियों की पहचान करने की कोशिश कर रही है.