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26/11 आतंकी हमले के साजिशकर्ता अबू जंदल को बड़ा झटका, बॉम्बे हाईकोर्ट ने खारिज कर दी ये मांग

मुंबई हमलों के आरोपी अबू जंदल को बड़ा झटका लगा है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसकी ओर से मांगे गए गोपनीय दस्तावेजों की मांग को फिशिंग एंड रोविंग इंक्वायरी बताते हुए खारिज कर दिया है. इस फैसले से साल 2018 से ठप पड़े मुकदमे की राह फिर खुल गई है.

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7 साल बाद फिर खुलेगा 26/11 का केस, दस्तावेजों की मांग पर बड़ा फैसला. (File Photo: ITG)
7 साल बाद फिर खुलेगा 26/11 का केस, दस्तावेजों की मांग पर बड़ा फैसला. (File Photo: ITG)

26/11 के मुंबई आतंकी हमले के आरोपी जबीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू जंदल को बॉम्बे हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है. हाईकोर्ट ने उस विशेष अदालत के आदेश को रद्द कर दिया जिसमें अबू जंदल की मांग पर गोपनीय दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया गया था. अदालत ने कहा कि यह पूरी मांग 'फिशिंग एंड रोविंग इंक्वायरी' जैसी है, जिसका उद्देश्य मुकदमे को बेवजह लंबा खींचना है.

इस फैसले के साथ साल 2018 से रुकी हुई 26/11 हमले की सुनवाई अब फिर शुरू हो सकेगी. न्यायमूर्ति आर एन लड्ढा की एकल पीठ ने सोमवार को दिल्ली पुलिस, नागरिक उड्डयन मंत्रालय और विदेश मंत्रालय की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया. ये याचिकाएं उस आदेश के खिलाफ थीं, जिसमें अदालत ने अबू जंदल को गोपनीय दस्तावेज़ उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था.

अदालत ने साफ कहा कि निचली अदालत के आदेश के कारण इस केस की सुनवाई 2018 से अटकी हुई थी, जबकि ऐसे गंभीर अपराधों में न्याय और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए तेज सुनवाई जरूरी है. न्यायमूर्ति ने कहा कि निचली अदालत को अभियुक्तों के इशारे पर भटकावपूर्ण जांच का रास्ता नहीं खोलना चाहिए था. सरकार की ओर से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में दलील दी.

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उन्होंने कहा कि अबू जंदल जिन दस्तावेजों की मांग कर रहा है, उनका केस से कोई संबंध नहीं है. इनमें दिल्ली पुलिस के उन अधिकारियों के पासपोर्ट शामिल थे, जो सऊदी अरब गए थे. दम्मम से दिल्ली तक की जेट एयरवेज उड़ान की यात्री सूची, विदेश मंत्रालय के आपातकालीन यात्रा दस्तावेज और संबंधित आव्रजन रिकॉर्ड भी शामिल हैं. ये सभी दस्तावेज मूल आरोपों से असंबंधित हैं.

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि इन दस्तावेजों को प्रस्तुत करने से मुकदमे की दिशा भटक जाएगी. उन्होंने अदालत को बताया कि इन दस्तावेजों की मांग का कोई न्यायसंगत उद्देश्य नहीं है. यह केवल बाहरी तर्कों के जरिए कार्यवाही पटरी से उतारने की चाल है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में विस्तार से कहा कि जब कोई अभियुक्त वैध हिरासत में होता है, तो उसे बचाव का पूरा अवसर दिया जाता है.

अबू जंदल ने अदालत में दावा किया था कि दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ ने उसे जून 2012 में सऊदी अरब से अनधिकृत रूप से हिरासत में लेकर भारत लाया था. लेकिन विशेष प्रकोष्ठ ने इसका खंडन करते हुए कहा कि उसको दिल्ली हवाई अड्डे के बाहर से गिरफ्तार किया गया था, जहां वो घूमता हुआ पाया गया. इसके बाद उसकी हिरासत दिल्ली पुलिस ने मुंबई पुलिस को विधिवत सौंप दी थी.

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अदालत ने कहा कि यदि गिरफ्तारी में कोई गड़बड़ी होती तो अभियुक्त को दिल्ली के मजिस्ट्रेट के समक्ष पहली पेशी के दौरान इसका उल्लेख करना चाहिए था. जब अभियुक्त ने ऐसा नहीं किया, तब अब इस मुकदमे में इन दावों को उठाना केवल देरी की रणनीति है. न्यायमूर्ति ने कहा कि अबू जंदल द्वारा लगाए गए आरोप और उनकी गिरफ्तारी से जुड़े दावे दिल्ली पुलिस के एक अन्य मामले से संबंधित हैं.

इसमें जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ी साजिशों की जांच चल रही है. इसलिए इन दावों का 26/11 हमले के मुकदमे से कोई संबंध नहीं है. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ''यह स्पष्ट है कि अभियुक्त द्वारा गलत गिरफ्तारी के बारे में किया गया दावा मौजूदा मुकदमे से जुड़ा नहीं है. यह केवल मुकदमे को विलंबित करने की रणनीति है. इसका कोई ठोस औचित्य नहीं है.''

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