दिल्ली के एक डॉक्टर की आलीशान ऑडी कार से एक रोज़ अचानक हादसा हो जाता है. उनकी कार चार लोगों को कुचल देती है. चारों मौके पर ही मारे जाते हैं. हादसे के बाद मौके पर कोई नहीं मिलता. ना डॉक्टर, ना ड्राइवर और ना ही कोई चश्मदीद. इसके बाद अचानक एक शख्स खुद को उन्हीं डॉक्टर साहब का ड्राइवर बता कर अदालत पहुंच जाता है. हादसे की सारी जिम्मेदारी अपने सिर ले लेता है. लगा मामला खत्म. केस सुलझ गया. पर असल में ये तो बस उस गोलमाल की शुरूआत भर थी. इसने कइयों के दिमाग की चूल्हें हिला कर रख दी हैं.
वो 28 सितंबर 2002 की रात थी. मुंबई के बांद्रा इलाक़े में मौजूद एक बेकरी के बाहर कुछ लोग फुटपाथ पर सो रहे थे. लेकिन आधी रात को फ़िल्म स्टार सलमान ख़ान की तेज़ रफ़्तार टोयटा लैंड क्रूज़र इस फुटपाथ से कुछ ऐसे गुज़री कि इसने एक ही झटके में एक शख्स की ज़िंदगी छीन ली. चार लोगों को हमेशा-हमेशा के लिए लाचार कर दिया. दुनिया जानती है कि वो कार सलमान ख़ान की थी. लेकिन एक वो दिन था और एक आज का दिन. 14 साल बाद भी ये राज़ है कि हादसे के वक़्त आख़िर सलमान की उस लैंड क्रूज़र का ड्राइवर था कौन?
अब आइए 2002 से आपको सीधे 2017 में लेकर आते हैं. तब जगह मुंबई थी. इस बार है दिल्ली के क़रीब यूपी का इंदिरापुरम. यहां भी 27 जनवरी 2017 की रात एक ऑडी क्यू सेवन एसयूवी और एक ऑटो की आमने-सामने की टक्कर होती है. इस हादसे में एक ही झटके में चार लोगों की जान चली जाती है. ये कार एक डॉक्टर की है, जो हादसे के वक़्त उसी कार में मौजूद थे. लेकिन ठीक सलमान की कार की तरह यहां भी हादसे को पूरे 10 दिनों का वक़्त गुज़रने के बावजूद ये बात अब भी एक पहेली बनी है कि आख़िर ड्राइवर कौन था?
इस हादसे के ठीक दो दिन बाद बरेली के रहने वाले इसहाक नाम एक शख़्स ने खुद को डॉक्टर की ऑडी कार का ड्राइवर बताते हुए ग़ाज़ियाबाद कोर्ट में सरेंडर कर दिया. जमानत भी हासिल कर ली. यहां तक तो कहानी बिल्कुल सीधी थी, लेकिन ठीक पांच रोज़ बाद उसी पते रहने वाले एक दूसरे शख्स ने जब खुद को इसहाक बताते हुए ये दावा किया कि उसने तो कभी ऑडी कार अंदर से देखी तक नहीं. ये मामला बुरी तरह उलझ गया. इस शख़्स ने कहा कि वो ना तो उस ऑडी का ड्राइवर है और ना ही उसने कोर्ट में सरेंडर कर कोई ज़मानत ही ली है.
उसने ना सिर्फ़ ये दावा किया बल्कि अपने इस दावे के हक में सुबूत भी पेश कर दिए. उसने कहा वो हादसे वाली रोज़ दिल्ली से दूर ट्रक लेकर अहमदाबाद गया था. अब ये मामला पूरी तरह उलझ चुका था. इसके साथ ही कई सवाल भी खड़े हो चुके थे. सवाल ये कि आख़िर हादसे के बाद ख़ुद को इसहाक अहमद बताते हुए कोर्ट में सरेंडर करनेवाला शख्स कौन था? कोर्ट से जमानत मिलते ही आख़िर वो कहां गायब हो गया? यदि वो वाकई इसहाक नहीं था, तो उसने इसहाक बन कर कोर्ट और कानून को गुमराह करने की कोशिश क्यों की गई?
ज़ाहिर है, इन सवालों के जवाब में ही फिलहाल ऑडी के इस पेचीदा एक्सीडेंट की पूरी कहानी छुपी है. लेकिन उन जवाबों को ढूंढ़ने से पहले आइए आपको एक बार उस ऑडी क्यू सेवन के मालिक से भी मिलाए देते हैं, जो हादसे के वक्त उसी कार में ही मौजूद था. ऑडी मालिक का नाम डॉ. मनीष रावत है, जो सफदरजंग अस्पताल के न्यूरो सर्जन हैं. उनका कहना है अचानक ओवरटेक की वजह से यह हादसा हुआ. हादसे के बाद ड्राइवर डर से भाग गया. लोगों की भीड़ तेजी से जमा हो गई थी. भीड़ उसे ही ड्राइवर ना समझे इसलिए वो घर चला गया.
खुद को डाक्टर की ऑडी का ड्राइवर बता कर सरेंडर करनेवाला शख्स अब भी सीन से ग़ायब है. उधर, इशाक खुद को ड्राइवर मानने से इनकार कर रहा है. जबकि इशाक के घरवाले सरेंडर के इस पूरे खेल के पीछे अपने ही एक रिश्तेदार इश्तियाक का नाम ले रहे हैं. यानी मामला अब भी पूरी तरह से गोलमाल का है. सवाल ये कि क्या इश्तियाक ही इशाक बन कर अदालत की आंखों में धूल झोंक रहा था? अगर हां, तो क्यों? और किसके इशारे पर? इस मामले में सामने आया एक नया किरदार इश्तियाक. कुछ समझ में आया? यदि नहीं, तो चलिए हम ही समझाते हैं.
बरेली में रहने वाले इसहाक के घरवाले जो दावा कर रहे हैं कि उनके बेटे ने कभी ऑडी कार देखी ही नहीं, चलाना तो दूर की बात है. दावा ये भी कर रहे हैं कि जब इंदिरापुरम में ऑडी का एक्सीडैंट हुआ तो उनका बेटा दिल्ली से दूर अहमदाबाद में था. लेकिन बात सिर्फ़ इतनी सी नहीं है. उसके घरवालों का ये भी कहना है कि ऑडी कांड में खुद को इसहाक बता कर ड्राइवर के तौर पर अदालत में पेश होने वाला शख्स कोई और नहीं बल्कि उन्हीं का एक रिश्तेदार इश्तियाक है. जी हां, उन्हीं का रिश्तेदार इश्तियाक, जिसने पैसों की लालच में ये सारा खेल किया है.
इसहाक अपने एक रिश्तेदार इश्तियाक के साथ कुछ समय पहले तक किराए के एक मकान में ही रहता था. उन्हें शक है कि उन्हीं दिनों में इश्तियाक ने धोखे से उनके बेटे इसहाक की ड्राइविंग लाइसेंस की फोटो कॉपी निकाल ली थी. उस पर अपनी तस्वीर चिपका कर उसने खुद को इसहाक का नाम दे दिया. ऑडी के मालिक से मिल कर खुद को इसहाक बताते हुए अदालत से ज़मानत भी ले ली. मामला तब खुला जब इसहाक बता कर सरेंडर करने के बाद मामले की तफ़्तीश करती हुई मीडिया बरेली में इसहाक के इस घर तक पहुंची.
इसहाक और इश्तियाक के इस पेंच पर ऑडी के मालिक और दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में न्यूरोसर्जन डॉ. मनीष रावत का कुछ और ही कहना है. डॉ. मनीष कह रहे हैं कि जब उन्होंने इसहाक को नौकरी पर रखा था, तो उन्होंने उसके ड्राइविंग लाइंसेस का वैरीफिकेशन भी कराया था. तब से वही शख्स इसहाक के तौर पर उनकी गाड़ी चला रहा है, जिसने गाज़ियाबाद कोर्ट में सरेंडर किया है. ऐसे में अगर उसने कोई धांधली की है, तो इसका जवाब भी वही दे सकता है. इधर, मंगलवार को आजतक ने बृजेश नाम के उस शख्स को ढूंढ़ निकाला.
वह अदालत में इसहाक के दो ज़मानती में से एक था. दरअसल, बृजेश ने अदालत में अपना आधा-अधूरा पता दिया था और ऐसे में पुलिस सरेंडर करनेवाले शख्स के साथ बृजेश को भी ढूंढ़ रही थी. हालांकि फ़ोन पर बातचीत करते हुए बृजेश ने कहा कि उसने कुछ भी ग़लत नहीं किया. अब सवाल ये उठता है कि क्या डॉ. मनीष भी इश्तियाक को ही इसहाक के नाम से जानते हैं? और क्या अब तक इश्तियाक ही उनके पास इसहाक बन कर काम कर रहा था? अगर, यही सच है तो आख़िर उसके फ़र्ज़ी ड्राइविंग लाइसेंस का वेरीफिकेशन डॉक्टर मनीष रावत ने कैसे करा लिया?