मुंबई में चोरी छिपे तहखानों और बंद कमरों के अंदर चल रहे डांस बारों को आखिरकार दस साल बाद खुली हवा में सांस लेने की इजाजत मिल ही गई. पिछले दस सालों से बॉम्बे पुलिस एक्ट की जिस धारा की बदौलत मुंबई में डांस बारों पर पाबंदी लगी हुई थी, देश की सबसे बड़ी अदालत ने उसे गलत करार दे दिया है. डांस बार के फिर से गुलजार होने के बाद जाहिर है तहखानों में चल रहे डांस बार अब जल्दी ही तहखाने में ही दफन हो जाएंगे.
दस साल से बंद मुंबई के डांस बार ने अपने अंदर से ऐसे-ऐसे तहखाने उगले थे कि देखने वालों की आंखें फटी की फटी रह गईं. जमाने के लिए डांस बार बंद हो चुका था. पर हुक्का बार, बीयर बार और ना जाने किस-किस बार के नाम पर डांस बार अब भी जिंदा था. बस फर्क ये था कि डांस बार की थिरकती लड़कियां अब फ्लोर से उठा कर तहखाने में पहुंचा दी गई थीं. सारा धंधा अब भूलभुलैया जैसे रास्तों, कमरों और सुरंगनुमा तहखानों में उतर आया था. धंधा ओपन डांस फ्लोर से काले तहखाने में पहुंचा तो धंधे की कालिख भी और काली होती गई. डांस के नाम पर तहखानों में जिस्मफरोशी का धंधा तेजी से फलने-फूलने लगा.
तहखानों में परोसी जाने लगी अश्लीलता
कैमरे से मुंह छुपाती ये लड़कियां, अपने हाथ से अपना चेहरा ढकंते ये लोग और सादे कपड़ों में मौजूद पुलिस टीम. पिछले दस सालों में ये मंजर मुंबई के लिए आम हो चुका था. ऐसे तहखानों का मिलना, ऐसे छापे आए दिन की बात हो गई थी. पुलिस एक तहखाना ढूंढती तब तक दर्जनों नए तहखाने पैदा हो चुके होते. जिस अश्लीलता और कानून-व्यवस्था के नाम पर महाराष्ट्र सरकार ने दस साल पहले डांस बार बंद करवा दिया था, वो दरअसल कभी पूरी तरह बंद हुआ ही नहीं था. उलटे खुले बार के मुकाबले बंद बारों में अश्लीलता ज्यादा परोसी जाने लगी थी. हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है बंद डांस बार को फिर से गुलजार करने का. तो जाहिर है इन तहखानों की मौत तय है क्योंकि अब मुंबई में तमाम डांस बार एक बार फिर से तहखानों से निकल कर ऊपरी फ्लोर पर आ जाएंगे.
सरकार ने डांस बार बंद करने के लिए दी थी ये दलील
एक सच यह भी है कि डांस बार बंद होने के बाद वहां काम करने वाली 70 हजार से ज्यादा लड़कियां बेरोजगारी के चलते देश-विदेश में फैल गई थीं. उनमें से बहुतों को मजबूरन जिस्मफरोशी के गलीज धंधे तक में उतरना पड़ा था. अब वो भी दोबारा खुलेआम सामने आकर अपनी रोजी-रोटी कमा सकती हैं. और यही सबसे बड़ी वजह थी जिसे पहले मुंबई हाई कोर्ट फिर जुलाई 2013 में पहली बार सुप्रीम कोर्ट और अब गुरूवार को दोबारा देश की सबसे बड़ी अदालत ने माना और महाराष्ट्र सरकार के दस साल पुराने फैसले को पलटते हुए हुक्म दे दिया कि अब डांस बार फिर से गुलजार होंगे.
महाराष्ट्र सरकार का कहना था कि मुंबई में डांस बार की आड़ में जिस्मफरोशी और दूसरे गलत धंधे हो रहे थे. जिससे अश्लीलता बढ़ रही थी और कानून-व्यवस्था बिगड़ रही थी. लेकिन दुनिया जानती है कि डांस बार के बंद होने भर से मुंबई में कुछ भी नहीं बदला, सिवाय इसके कि इस धंधे से जुड़ी लड़कियों की जिंदगी थोड़ी और दुश्वार हो गई. शायद यही वजह है कि अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये माना कि ये संविधान के उस अधिकार का उल्लंघन है जिसमें हर इंसान को अपनी मर्जी से अपना काम चुनने का हक मिला हुआ है.
कभी मुंबई में आम होता था ये नजारा
धमाकेदार म्यूजिक, चकाचौंध भरी रोशनी और फिजा में घुलती महदोशी अब से कोई दस साल पहले ये तस्वीर मुंबई की जिंदगी का एक अहम हिस्सा हुआ करती थी. तब मायानगरी में शायद ही कोई ऐसी रात होती होगी, जब ऐसी महफिलें कद्रदानों से खाली रहती हों. लेकिन 2005 में महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे पुलिस एक्ट में तब्दीली क्या की, मुंबई के डांस बारों पर अंधेरा छा गया. दलील थी डांस बारों में डांस के नाम पर चल रही अश्लीलता और बार की आड़ में चलते दूसरे गैर-कानूनी धंधे . सरकार के इस फैसले ने ना सिर्फ होटल और रेस्तरां मालिकों के हाथ-पांव बांध दिए, बल्कि 70 हजार से ज्यादा बार डांसर के सामने रोजी-रोटी की मुश्किल खड़ी हो गई. इसी के बाद बात लोअर कोर्ट से शुरू से होकर हाई कोर्ट के गलियारों से होती हुई हिंदुस्तान की सबसे बड़ी अदालत में जा पहुंची थी. हालांकि जुलाई 2013 में भी सुप्रीम कोर्ट ने डांस बार को खोलने का हुक्म दिया था. मगर उस फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी. जिसके बाद अंतिम फैसले तक सुप्रीम कोर्ट के स्टे ऑर्डर की बदौलत डांस बारों में ताला लटकता रहा.
गुरूवार को आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने डांस बारों पर अपना फैसला सुना ही दिया ये फैसला था अश्लीलता पर भूख की जीत का. ये फैसला था, अपनी मर्जी से कोई भी पेशा चुनने और सिर उठा कर जीने का. और बस अब इसी खुशी में मुंबई के डांस बार एक बार फिर से गुलजार होंगे. दरअसल, साल 2005 में महाराष्ट्र सरकार ने बांबे पुलिस एक्ट में दो धाराएं सेक्शन 33ए और बी को शामिल किया था. 33ए के मुताबिक, किसी भी बीयर बार, इटिंग हाउस या रेस्तरां में हर तरह के डांस पर रोक लगा दी गई. जबकि 33बी में थ्री स्टार या फिर उससे महंगे होटलों में डांस परर्फामेंस की छूट दी गई क्योंकि सरकार का मानना था इन डांस बारों की आड़ में मुंबई में जिस्मफरोशी समेत दूसरे गलत धंधे चल रहे हैं. सरकार ने बताया था कि रोक के वक्त तक मुंबई में चल रहे कुल 2845 डांस बारों में से सिर्फ 345 बार ही लाइसेंसशुदा थे, जबकि 2500 बार बिना लाइसेंस के ही चल रहे थे. हालांकि रेस्तरां और बार मालिकों के साथ-साथ कई सामाजिक संगठनों ने महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले का विरोध करते हुए इसे संविधान और जीने के अधिकार के खिलाफ करार दिया था और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने इसी बात पर अपनी मुहर लगाई.
बार गर्ल्स को शेखों के हरम में तलाशनी पड़ी अपनी जिंदगी
डांस बार के बंद होने से मुंबई में जिस्मफरोशी बंद हुई या नहीं, ये तो सब जानते हैं लेकिन इन बारों के बंद होने से इनमें काम करने वाली 70 हजार से ज्यादा लड़कियों के सामने गुजर बसर की मुश्किल जरूर पैदा हो गई. ऐसे में बार गर्ल के टैग के साथ जी रही लड़कियों में से ज्यादातर ऐसी रहीं, जिन्हें या तो मजबूरी में जिस्मफरोशी का रास्ता चुनना पड़ा या फिर शेखों के हरम में जिंदगी तलाशनी पड़ी. एक बार डांसर के टैग के साथ जिंदगी कितनी दुश्वार हो सकती है, ये इन लड़कियों को साल 2006 में पहली बार तब पता चला जब मुंबई में डांस बारों पर कानून का शिकंजा कसने लगा. हालात से हार कर कुछ बार जहां बंद हो गए, वहीं कई बार वर्दीवालों को कुछ ले-देकर या फिर उनकी नजरों से बच कर तहखानों में चलने लगे. लेकिन कानून और जिंदगी की इस जंग में अगर किसी ने सबसे ज्यादा नुकसान उठाया, तो ये वो बार गर्ल्स ही थी, जिनके दम पर डांस बारों की रौनक हुआ करती थी. डांस बारों में काम करने वाली लड़कियों में 68 फीसदी लड़कियां तो ऐसी थीं, जो अपने परिवार में अकेली कमाने वाली थी और ऐसे में डांस बारों के बंद होने से उनके सामने गुजर बसर की कैसी मुसीबत खड़ी हुई, ये समझना मुश्किल नहीं है.
डांसर के टैग ने नहीं छोड़ा पीछा
लोगों ने लड़कियों की इस मजबूरी का फायदा भी खूब उठाया. हसीन जिंदगी के ख्वाब दिखा कर जहां सैकड़ों डांस बारों को मानव तस्करों ने उनके बारों से उठा कर सीधे दुबई समेत दूसरे खाड़ी देशों में शेखों के हरम तक पहुंचा दिया, वहीं ऐसी बार बालाएं भी कम नहीं थी, जिन्हें लाचारगी में जिस्मफरोशी का रास्ता चुनना पड़ा. डांस बारों में काम करनेवाली सारी लड़कियां मुंबई की नहीं थी. लिहाजा, काम बंद हो जाने पर कई लड़कियों ने अपने-अपने घरों का रुख किया, लेकिन यहां भी बार डांसर के टैग ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और आखिरकार ज्यादातर लड़कियों ने जिस्मफरोशी के धंधे के साथ ही समझौता करना पड़ा. चोरी छिपे मुंबई के तहखानों में नाच रही लड़कियों की हालत भी अच्छी नहीं रही और अश्लीलता के खिलाफ बने इस एक कानून ने लड़कियों को बंद कमरे के अंदर वो सबकुछ करने के लिए मजबूर कर दिया, जो कोई भी लड़की अपने लिए ख्वाबों में भी नहीं सोचना चाहेगी. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक बार फिर से नई उम्मीद जगाई है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने डांस बार चालू करने का अंतरिम आदेश दे दिया है. मगर माहाराष्ट्र सरकार का कहना है कि इस फैसले के खिलाफ वो सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर इसे रोकने की मांग करेगी.
'अश्लीलता फैलाने की इजाजत नहीं देता है ये आदेश'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 33 ए की बदौलत मुंबई के डांस बारों से जुड़े हजारों लोग अपनी मर्जी से रोजी रोटी कमाने से महरूम हो गए थे, जो सही नहीं है. हालांकि कोर्ट ने आगाह भी किया है कि महाराष्ट्र पुलिस एक्ट की धारा 33 ए पर रोक लगाने का मतलब ये कतई नहीं है कि डांस बारों में अश्लीलता संबंधी नियम-कानूनों की अनदेखी की जाए. कोर्ट ने कहा है कि ये तय करना बार लाइसेंस अथ़ॉरिटी और बार मालिकों की जिम्मेदारी है कि वो बार डांसरों की मर्यादा का उल्लंघन ना होने दें और अश्लीलता रोकें. अब सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद जहां मुंबई के डांस बार एक बार फिर से गुलजार होंगे, वहीं महाराष्ट्र सरकार को डांस-बार और रेस्तरां के लिए कानून के मुताबिक लाइसेंस देने होंगे. हालांकि महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि वो डांस बार के रोक के हक में पहले ही कोर्ट में अपना हलफनामा दे चुकी है. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश सरकार को अश्लीलता संबंधी मामलों को रोकने का हक देता है. अब इस मामले पर आखिरी सुनवाई 5 नवंबर को होनी है, लेकिन फिलहाल इस आदेश ने डांस बार से जुड़े लोगों के चेहरों पर चमक जरूर लौटा दी है.