अचानक किसानों ने खुदकुशी करनी बंद कर दी है. बेरोजगारी देश से खत्म हो गई है. पेट्रोल-डीजल के दाम की किसे परवाह. महंगाई, गरीबी और भूखमरी के बारे में आखिरी बार कब सुना आपने? अब तो पाकिस्तान की तरफ से भी गोलीबारी की कोई खबर नहीं आ रही है. 26 जनवरी सर पर थी, लेकिन आतंकी खतरे की कोई बात नहीं. कुल मिला कर बस एक पद्मावत को छोड़ दें तो बाकी सब ठीक है. देश में कोई मसला ही नहीं है.
अब देश में कोई समस्या नहीं
भारत-पाक बॉर्डर पर अब कोई मसला नहीं है. सीमा पार से फिलहाल आतंकवाद की कोई खेप नहीं आ रही है. पेट्रोल-डीजल की क़ीमत कोई मुद्दा नहीं है. महंगाई, भूखमरी, बेरोज़गारी, गरीबी जैसे ग़रीबों के मुद्दे पर भला क्या बात करनी. किसानों ने खुदकुशी करना अब बंद कर दिया है. 26 जनवरी के परेड पर भी अब कोई आतंकी खतरा नहीं है. तभी तो पुलिस को राजपथ से उठा कर मनोरंजन घरों की तैनाती पर लगा दिया है. सब ठीक है. एकदम ठीक. देश एकदम सही चल रहा है. देश में और कोई मसला ही नहीं है. हां, एक पद्मावती को छोड़ दें तो.
पद्मावत के सामने सारे मुद्दे हाशिए पर
मंहगाई, ग़रीबी, भूख और बेरोज़गारी जैसे अहम मुद्दों से रोज़ाना और लगातार जूझती देश की अवाम के सामने पद्मावती यानी पद्मावत बन कर यूं समाने आई कि देश के सारे मुद्दे ही हाशिए पर चले गए. कमाल है. कमाल है. एक फिल्म को लेकर मुट्ठी भर लोगों ने परे देश में ऐसा कोहराम मचा रखा है, मानो पाकिस्तान के साथ युद्ध कर रहे हों हम.
पाकिस्तान की आड़ में मुद्दे गायब
अब पाकिस्तान का नाम ना लें तो क्या करें. क्योंकि एक पाकिस्तान ही तो है जो जैसे ही बीच में आता है हम देश के बाकी सारे मुद्दे भूल जाते हैं और बस उसी को लेकर हमारा खून खौला दिया जाता है. इसके बाद फिर कहां हमें महंगाई, बेरोजगारी, भूखमरी याद रहती है. खाली पेट भी तो खून उबाल मारता ही है ना. और ना मारे तो फिर देश भक्त कहां से कहलाएंगे. क्य़ों?
बच्चों पर हमले में राजपूताना शान
पर वो तो अपने ही बच्चे हैं. देश का भविष्य हैं ये. स्कूल से घर को लौट रहे हैं. पर ज़रा राजपूताना शान देखिए. सारी ताकत ब़ॉर्डर की बजाए बच्चों पर आजमा रहे हैं. अब आप ही बताइए इन बच्चों का क्या कुसूर. अभी तो ये इतिहास के उस सिलेबस तक भी नहीं पहुंचे हैं जिनमें रानी पद्मावती और राजपूताना शान का जिक्र है. धू-धू कर जलती गाड़ियां. बिखऱे हुए शीशे. टूटी-फूटी इमारतें, सड़कों पर गुंडागर्दी का ये मंज़र और शहरःशहर सड़कों पर बड़ी तादाद में झोंक दिए गए ये सुरक्षा बल. ये सब तो अपने हैं. लोग भी अपने. और ये सारी मिल्कियत भी अपनी. ना तो संजय लीली भंसाली से इनका कोई ताल्लुक है और ना ही रानी पद्मावती को ये लोग गहराई से जानते होंगे.
सेंसर बोर्ड और सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी बेमतलब
मगर राजपूताना शान क्या होती है, इन्हें अब जरूर पता चल गया होगा. ये अपना ही देश है जहां एक फिल्म तक नहीं देख सकते लोग. संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’. जो राजपूतना शान बचाने के चक्कर में ‘पद्मावत’ हो गई उसे बाकायदा कानूनी तौर पर सेंसर बोर्ड ने रिलीज की इजाजत दी. सेंसर बोर्ड भारत सराकर के अधीन है. सुप्रीम कोर्ट तक ने कह दिया कि फिल्म को पर्दे पर ले जाइए. मगर इसके बाद भी देश भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. थिएटरों में तोड़फोड़ की जा रही है.
बीजेपी और कांग्रेस भी चुप
फ़िल्म निर्माताओं के ख़िलाफ़ थानों में शिकायतें दी गई हैं. राजपूत संगठनों ने फ़िल्म में रानी पद्मावती का किरदार निभाने वाली दीपिका पादुकोण की नाक काटने तक की धमकी दे रखी है. और कमाल देखिए कि सरकारें खामोश हैं. दिल्ली की भी और ज्यादातर राज्यों की भी. बीजेपी भी चुप, तो कांग्रेस भी कन्नी काट रही है. राजपूताना शान के लिए नहीं बल्कि उस वोट के लिए जो वहां आने से हैं.
देश में बढ़ रही बेरोजगारी, और बढ़ेगी दर
पद्वमावत को छोड़ कर बाकी सब किस तरह ठीक है, आइए अब जरा उस पर भी एक नजर डाल लेते हैं. देश में पिछले तीन सालों में बेरोजगारी बढी है. अगले दो साल में भी बेरोजगारी में कोई कमी नहीं आने वाली. देश में 2017 से 2019 के बीच रोजगार दर 3.4 से 3.5 फीसदी रहेगी. 5 से 24 साल की उम्र के युवाओं के बीच बेरोजगारी दर 2014 में जहां 10 फीसदी थी, वो 2019 में बढ़ कर 10.7 फीसदी हो जाएगी. 2017 से 2019 के बीच 77 फीसदी कामगारों के पास असुरक्षित और निम्न स्तर की नौकरी होगी. यानी 2019 में भारत के 53.5 करोड लेबर फोर्स में से 39.86 करोड के पास कायदे की नौकरी नहीं होगी. 2019 तक 6 करोड बेरोजगार और बढ जायेगें.
तेल की कीमतों में आग
जिस नेशनल करियर सर्विस पोर्टल को खुद पीएम ने बड़े धूमधाम से जुलाई 2015 में लॉन्च किया था, और दावा किया था कि इसके जरिए नौकरियों की बहार आएगी-उसका हाल यह है कि पोर्टल के जरिए 4 करोड़ लोगों ने नौकरी के लिए आवेदन किया लेकिन नौकरी मिली सिर्फ ढाई लाख को और ये हाल तब है,जब इस पोर्टल पर 15 लाख से ज्यादा नौकरी देने वाले रजिस्टर्ड हैं. पेट्रोल की क़ीमतों में तीन सालों में सबसे ज़्यादा उछाल आया. पिछले सोमवार को पेट्रोल दिल्ली में 72.08 रुपये प्रति लीटर और मंगलवार को 72.23 रुपये प्रति लीटर था. इसी तरह दिल्ली में मंगलवार को डीज़ल की क़ीमत 63.01 रुपये प्रति लीटर रही. सिर्फ इसी महीने पेट्रोल-डीजल की क़ीमतें ढाई से तीन रुपये तक बढ़ गई.
लाखों रोजगार खत्म, बैड लोन बढ़ा
साल 2017 के पहले चार महीने यानी जनवरी से अप्रैल के दरम्यान 15 लाख लोगों के रोज़गार ख़त्म हुए. बेरोजगारी की दर जुलाई 2017 में 3 फ़ीसदी थी, जबकि अक्टूबर 2017 में बढ़ कर 5.7 फ़ीसदी हो गई. सरकारी बैंकों के नेट वर्थ का 75.53 फीसदी बैड लोन यानी डूबने वाले क़र्ज़ में फंसा हुआ है. पर ये भी कोई मुद्दा है भला? हटाइए इसके बारे में क्या सोचना. अभी जैसे-तैसे जी लीजिए. जरूरी है सात सौ साल पुराने इतिहास को याद रखना. पद्मावती को याद रखना और पद्वामावती के जरिए राजपूताना शान को याद रखना. बाकी सब ठीक है.